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बैटल ऑफ बक्सर? सुधाकर सिंह और मिथिलेश तिवारी में घमासान, जीत का रास्ता नहीं है आसान!

बैटल ऑफ बक्सर? सुधाकर सिंह और मिथिलेश तिवारी में घमासान,  जीत का रास्ता नहीं है आसान!

बक्सर- व्याघ्रसर यानी बाघों का निवास स्थल आज बक्सर के नाम से जाना जाता है. भगवान राम की शिक्षा स्थली रही बक्सर में 1539 ई. में हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच हुए युद्ध में हुमायूं को पराजित कर शेरशाह  बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया था. साल 1764 ई में ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और  मुगल बादशाह के बीच युद्ध में  अंग्रेजों की जीत से तत्कालीन बिहार और बंगाल के दीवानी और राजस्व के अधिकार कंपनी के हाथ में चले गए. भारत में अंग्रेजी हुकूमत की नींव इसी युद्ध ने डाली थी. 

जातीय आंकड़ा

बहरहाल 1957 में बक्सर लोकसभा क्षेत्र बना. कहा जाता है कि बक्सर चुनाव की खासियत ये है कि जिसने भी यहां का सामाजिक समीकरण साध लिया उसकी जीत निश्चित है. बक्सर की लगभग 19 लाख आबादी में से  9 लाख 53 हजार से अधिक पुरुष मतदाता और 8 लाख 52 हजार से ज्यादा महिला मतदाता हैं. बक्सर लोगसभा सीट पर ब्राह्मण वोटर्स 4 लाख से ज्यादा है. इसके बाद यादव  मतदाता जिनकी संख्या साढ़े तीन लाख के लगभग हैं. राजपूत वोटर्स 3 लाख तो  भूमिहार मतदाता  ढ़ाई लाख के करीब हैं. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी ड़ेढ़ लाख के लगभग है. इसके अलावा यहां पर कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, दलित और अन्य जातियां भी बड़ी संख्या में हैं.

कभी कांग्रेस का गढ़ तो कभी भाजपा का किला

साल 1962 से लेकर 1984 तक केवल 1977 को छोड़ दें तो यहां से कांग्रेस का परचम लहराता रहा. 1977 में  समाजवादी नेता रामानंद तिवारी ने कांग्रेस के किला में सेंध लगा दिया. साल 1989 में  भाकपा के तेज नारायण सिंह ने लाल झंडा गाड़ दिया. साल 1991 में फिर से भाकपा ने लाल झंड़ा लहराया. फिर बक्सर में वामपंथ का किला ढ़ह गया. साल1996 से लेकर 2004 तक लगातार चार बार भाजपा के लाल मुनी चौबे ने रिकार्ड बना दिया. 

जगदानंद सिंह ने ढ़ाह दिया था लालू मुनि चौबे का किला

साल 2009 में जगदानंद सिंह ने भाजपा के लाल मुनि चौबे के  किला को ढ़ाह कर राजद का झंड़ा गाड़ दिया. तब बक्सर को जगदानंद सिंह के नेतृत्व में दूसरी बार समाजवादी प्रतिनिधित्व मिला. साल 2014 और 2019 में अश्विनी चौबे ने जीत का झंडा लहराया. 

सुधाकर सिंह- मिथिलेश तिवारी में टक्कर

लोकसभा चुनाव 2024 के बक्सर संसदीय क्षेत्र के रण में  इंडिया गठबंधन ने राजद के कद्दावर नेता और  महागठबंधन सरकार में कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह को अपना उम्मीद्वार बनाया है. 2024 में बक्सर का चुनावी माहौल बदला-बदला दिख रहा है क्योंकि भाजपा ने अपने निवर्तमान  सांसद अश्वनी चौबे का टिकट काट कर अपने पूर्व विधायक मिथिलेश तिवारी पर दांव खेला है. हालांकि इस सीट से आईपीएस आनंद मिश्रा चुनाव लड़ना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने वीआरएस  भी लिया था लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. 

विरासत के लिए सियासत

नीतीश सरकार में कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह पिता की विरासत थामने इस चुनाव में उतरे हैं.  इनके पिता जगदानंद सिंह ने 2009 में भाजपा के चर्चित नेता लालमुनि चौबे के जीत के रथ को रोक डाला था. राजद प्रत्याशी सुधाकर का कहना है कि इस बार बक्सर का चुनाव पिछली बार से थोड़ा अलग नज़र आ रहा है. इस बार लोगों के मन में निवर्तमान सांसद को लेकर असंतोष है. यहां के मौजूदा सासंद के प्रति गहरी नाराज़गी है.सुधाकर सिंह ने कहा कि लोग में ग़ुस्सा है, काम हुआ नहीं है. उन्होंने कहा कि जगदानंद सिंह के समय जो काम शुरू किए गए थे वो भी ठप कर दिए. एम्स को यहां लेकर आने की बात थी, वो भागलपुर लेकर चले गए.

राह नहीं है आसान...

भाजपा प्रत्याशी मिथिलेश तिवारी के लिए अच्छी बात ये है कि उन्हें भाजपा के मजबूत गढ़ में फिर से कमल खिलाना है. इस सीट पर पहले तो लालमुनि चौबे ने भाजपा की जड़ें मजबूत की लेकिन वर्तमान सांसद अश्विनी चौबे को लेकर नाराजगी किसी से छुपी नहीं है. स्थानीय लोगों का कहना है कि चौबे जी ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया जबकि वे बड़े पद पर थे. मिथिलेश तिवारी के लिए लोगों के असंतोष को दूर करना सबसे बड़ी समस्या हो सकती है.  2015 के विधानसभा चुनाव में मिथिलेश तिवारी अपने गृह जिला गोपालगंज के बैकुंठपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे. 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. अभी वह भाजपा संगठन में प्रदेश महासचिव है. 

मुकाबला दिलचस्प

बहरहाल पूर्वांचल के रास्ते बिहार का द्वार कहा जाने वाला गंगा किनारे बसे बक्सर से जिताकर जनता किसे संसद में भेजती है ये तो 4 जून को हीं पता चलेगा. लेकिन राजद के सुधाकर सिंह और भाजपा के मिथिलेश तिवारी के बीच यहां मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है. 


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