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Loksabha Eelection 2024 : बिहार की सियासत में हाशिये पर भूमिहार, भाजपा- जदयू में हाफ, राजद में साफ, किसी दल ने नहीं दी तरजीह

Loksabha Eelection 2024 : बिहार की सियासत में हाशिये पर भूमिहार, भाजपा- जदयू में हाफ, राजद में साफ, किसी दल ने नहीं दी तरजीह

PATNA : बिहार में जातीय सर्वे के बाद जारी किये आंकड़े के मुताबिक राजपूत और भूमिहार की आबादी लगभग बराबर ही है। खासकर भूमिहारों को भारतीय जनता पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। इसके बावजूद जब लोकसभा चुनाव की बारी आई तो भारतीय जनता पार्टी ने भूमिहारों को आबादी के अनुरूप टिकट देना मुनासिब नहीं समझा। राजपूतों को जहाँ भारतीय जनता पार्टी ने अपनी ओर लुभाने के लिए पांच सीट दिया। वहीँ भूमिहारों को केवल दो टिकट थमाकर हाथ जोड़ लिए। दरअसल भाजपा का नेतृत्व मानता है की भूमिहारों का वोट केवल भाजपा के खाते में जायेगा। राजपूत की बात करें तो भाजपा ने सारण से राजीव प्रताप रूडी, पूर्वी चंपारण से राधा मोहन सिंह, औरंगाबाद से सुशील कुमार सिंह, आरा से आर के सिंह और महाराजगंज से जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को टिकट दिया। वहीँ राजपूत समाज के ही पवन सिंह को भी भाजपा ने टिकट दे दिया था। जिन्हें चुनाव लड़ने के आसनसोल भेजा जा रहा था। जबकि भूमिहारों में केवल बेगूसराय से गिरिराज सिंह और नवादा से विवेक ठाकुर को टिकट दिया। जदयू की बात करें तो एक राजपूत लवली आनंद और एक भूमिहार ललन सिंह को टिकट दिया गया। वहीँ कांग्रेस के कोटे में मात्र बिहार की 9 सीटें आई। जिसमें दो भूमिहारों को दिया गया। जिसमें एक टिकट पर खुद प्रदेश अध्यक्ष के बेटे आकाश चुनाव लड़ रहे हैं। वहीँ दूसरे उम्मीदवार अजीत शर्मा हैं, जो भागलपुर से उम्मीदवार है।  

राजद की बात करें तो ए टू जेड का दावा करनेवाली पार्टी ने एक भी भूमिहार को टिकट नहीं दिया। जबकि बक्सर लोकसभा सीट से राजद के सुधाकर सिंह अपनी किस्मत आजमां रहे हैं। जो राजपूत जाति से हैं। हालाँकि राजद में भूमिहारों की नजदीकी कभी धूप तो कभी छांववाली होती रही है। जैसे ही महागठबंधन की सरकार में कार्तिकेय मास्टर को राजद कोटे से मंत्री बनाया गया। भूमिहारों ने ‘यादव जी का दही और बाभन जी का चुड़ा’ का नारा दे दिया। लेकिन एक सप्ताह भी यह नारा नहीं चल पाया। कार्तिकेय मास्टर को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके पहले राजद ने एडी सिंह को राज्यसभा भेजा, जो भूमिहार जाति के थे। लेकिन सांसद बनने के कुछ दिन के बाद ही उन्हें घोटाले के आरोप में जेल जाना पड़ा। तमिलनाडु जैसे राज्य के डीजीपी से सेवानिवृत होकर करुना सागर राजद से टिकट मिलने का इन्तजार करते रहे। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं। अंत में उन्होंने राजद का दामन छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है।  

हालाँकि ऐसा नहीं है की भूमिहारों में नेताओं की कमी है। राष्ट्रीय जन जन पार्टी के संस्थापक आशुतोष का कहना है की यह भूमिहारों के साथ बड़ी साजिश की जा रही है। भूमिहार बहुल इलाके से पहले टिकट काटकर दूसरे पार्टी को दिया जाता है। इसके बाद वहां दूसरे जाति के उम्मीदवार बना दिया जाता है। इसके सबसे बड़े उदाहरण अरुण कुमार है। जो जहानाबाद सीट से लोजपा के उम्मीदवार माने जाते थे। लेकिन यह सीट जदयू के खाते में चली गयी और उन्हें टिकट नहीं मिल पाया। आखिरकर जहानाबाद से वे बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में है। इसी तरह भूमिहार समाज से आनेवाले एमएलसी सच्चिदानंद राय अपनी पत्नी के लिए टिकट का इन्तजार करते रहे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। अब उन्होंने ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। हालाँकि सच्चिदानंद राय कद्दावर नेता माने जाते हैं। वे भाजपा के एमएलसी थे। लेकिन दूसरी बार जब चुनाव लड़ने की बारी आई तो भाजपा ने उन्हें दरकिनार कर दिया। वे निर्दलीय चुनाव लड़े और भाजपा प्रत्याशी को हराकर विजयी भी हुए। 

इस तरह भूमिहारों के बिना जब बिहार में सियासत बेमानी मानी जाती थी। इसी समाज के श्रीकृष्ण सिंह राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने बिहार के विकास को नयी दिशा दी। इसके बाद भी भूमिहार समाज राजनीति में अपना दम दिखाता रहा। लेकिन आज के दौर में इस समाज को हासिये पर रखा जा रहा है।

वंदना शर्मा की रिपोर्ट

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