Republic day 2025: 75 साल में कितना बदला संविधान, अब तक कितने संशोधन हुए? पढ़िए

भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था और इसे दुनिया के सबसे विस्तृत संविधानों में से एक माना जाता है। भारतीय संविधान को समय-समय पर बदलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के अनुरूप संशोधित किया गया है।

75 years how many amendments in Constitution
75 साल में कितना बदला संविधान- फोटो : Social Media

Republic day 2025: भारत आज, 26 जनवरी को, अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। इस अवसर पर पूरे देश में उत्सव का माहौल व्याप्त है। वास्तव में, इसी दिन 1950 में देश का संविधान लागू हुआ था। तब से लेकर अब तक इसमें कई संशोधन किए गए हैं। आंकड़ों के अनुसार, भारत का संविधान 75 वर्षों से कुछ परिवर्तनों के साथ देश का मार्गदर्शन करने वाला महत्वपूर्ण दस्तावेज बना हुआ है।भारतीय संविधान को समय-समय पर बदलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के अनुरूप संशोधित किया गया है। इन संशोधनों का उद्देश्य संविधान को प्रासंगिक बनाए रखना और देश की जरूरतों के अनुसार इसे अद्यतन करना रहा है।

अब तक (2025 तक), भारतीय संविधान में 105 संशोधन किए जा चुके हैं। ये संशोधन विभिन्न मुद्दों से संबंधित रहे हैं, जैसे कि मौलिक अधिकार, संघीय ढांचा, आरक्षण नीति, चुनाव प्रक्रिया, न्यायपालिका की भूमिका आदि। इनमें से कई संशोधन बेहद महत्वपूर्ण और चर्चित रहे हैं क्योंकि उन्होंने भारत की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला है।

25 सबसे चर्चित संवैधानिक संशोधनों की कहानी

पहला संशोधन (1951): यह पहला बड़ा कदम था जिसमें भूमि सुधार कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया ताकि उन्हें न्यायालयीय समीक्षा से बचाया जा सके। इसके अलावा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए।

सातवां संशोधन (1956): राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम के तहत भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया। इसने भारत के संघीय ढांचे को मजबूत किया।

दसवां संशोधन (1961): इसमें दादरा और नगर हवेली को भारत का हिस्सा बनाया गया।

चौदहवां संशोधन (1962): पुदुचेरी को भारत का केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।

पच्चीसवां संशोधन (1971): संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया गया।

छब्बीसवां संशोधन (1971): इसने राजाओं के प्रिवी पर्स (Privy Purse) समाप्त कर दिए और उनके विशेषाधिकार खत्म कर दिए।

बयालीसवां संशोधन (1976): इसे “मिनी संविधान” भी कहा जाता है। इसमें “समाजवादी“, “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए और “संघात्मक गणराज्य” शब्दावली पर जोर दिया गया। साथ ही, मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा पेश की गई।

चौवालिसवां संशोधन (1978): आपातकालीन शक्तियों को सीमित करने और संपत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार बनाने हेतु यह महत्वपूर्ण था।

पचासवां संशोधन (1984): अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए।

बावनवां संशोधन (1985): दल-बदल विरोधी कानून लागू किया गया ताकि निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी पार्टी न बदल सकें।

तिरपनवां संशोधन (1986): मिजोरम राज्य का गठन किया गया।

चौंसठवां संशोधन (1990): जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने हेतु यह लागू हुआ।

तिहत्तरवां एवं चौहत्तरवां संशोधन (1992-93): पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया ताकि विकेंद्रीकरण सुनिश्चित हो सके।

छियासीवां संशोधन (2002): शिक्षा का अधिकार अधिनियम लाया गया जिससे 6-14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य हुई।

अठानवेवां संशोधन (2012): सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ताकि उनकी स्वायत्तता सुनिश्चित हो सके।

निन्यानवेवां संशोधन (2014): राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम लाया गया लेकिन बाद में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।

एक सौ एकवां संशोधन (2016): वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली लागू करने हेतु यह ऐतिहासिक कदम था जिसने अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में क्रांति ला दी।

एक सौ तीसरा संशोधन (2019): आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान किया गया।

एक सौ पांचवा संशोधन (2021): राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्गों की सूची तैयार करने का अधिकार वापस दिया गया।

20-25: अन्य चर्चित बदलावों में चुनाव सुधार, महिलाओं व बच्चों के अधिकार, पर्यावरण संरक्षण तथा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे विषय शामिल रहे हैं जिनका प्रभाव व्यापक रहा है।

भारतीय संविधान में बदलाव क्यों जरूरी?

संवैधानिक बदलाव इसलिए आवश्यक होते हैं क्योंकि समाज निरंतर बदलता रहता है। नई चुनौतियां सामने आती हैं जिनसे निपटने हेतु कानूनों व नीतियों में बदलाव जरूरी होता है। संशोधनों ने भारतीय लोकतंत्र को अधिक लचीला और समावेशी बनाने में मदद की है ।

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