Bihar Politics: गया के अपराजेय डॉ. प्रेम कुमार-सियासत की जंग में नौ बार फतह, अब स्पीकर की कुर्सी पर कदम? दिलचस्प है इनकी कहानी

Bihar Politics: शपथग्रहण का जलसा सज चुका है। लेकिन इस सियासी जमघट के बीच एक नाम ख़ास तौर पर चर्चा में है—डॉ. प्रेम कुमार। ...

गया के अपराजेय डॉ. प्रेम कुमार-सियासत की जंग में नौ बार फतह- फोटो : social Media

Bihar Politics: 20 नवंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पेशवाई में एनडीए हुकूमत एक बार फिर तामीर होने जा रही है। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में शपथग्रहण का जलसा सज चुका है। लेकिन इस सियासी जमघट के बीच एक नाम ख़ास तौर पर चर्चा में है—डॉ. प्रेम कुमार। भाजपा के इस वरिष्ठ नेता को आपने अक्सर मंत्रिमंडल में देखा होगा, लेकिन इस बार तस्वीर कुछ जुदा है। 2005 से जब-जब एनडीए की सरकार बनी और भाजपा उसका हिस्सा रही, तब-तब प्रेम कुमार मंत्री पद संभालते रहे। लेकिन इस दफ़ा ख़बर यह है कि वह कैबिनेट में नहीं, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर नज़र आ सकते हैं।

गया टाउन से लगातार नौवीं बार फ़तह हासिल करने वाले प्रेम कुमार बिहार की राजनीति का वह चेहरा हैं जो तीन दशकों से हर सियासी तूफ़ान में जीत का परचम लहराते आए हैं। 1990 में पहली बार विधायक बने और तब से आज तक कोई चुनाव नहीं हारे। कभी सीपीआई, कभी कांग्रेस—विरोधियों के चेहरे बदलते रहे, लेकिन जनता का भरोसा नहीं डगमगाया। 1990 में अधिवक्ता शकील अहमद खान को मात दी, 95 और 2000 में मसूद मंजर को शिकस्त दी। 2005 से 2025 तक कांग्रेस उम्मीदवारों को कई बार भारी मतों से हराया। यही वजह है कि जनता उन्हें अपराजित का ख़िताब देती है।

सिर्फ़ चुनावी जीत ही नहीं, प्रशासकीय अनुभव भी काबिले तारीफ है। नगर विकास, कृषि, सहकारिता, मत्स्य कई अहम विभाग उनकी निगरानी में रहे। खेती में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रधानमंत्री और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम दोनों से सम्मान पाना उनकी कर्मठता का सबूत है।

उनकी सियासी दास्तान में दोस्ती का भी एक खूबसूरत अध्याय है। छात्र जीवन से जेपी आंदोलन में जुड़े रहे, जेल गए, संघर्ष साझा किया। कारोबार जमाया, गुल फैक्ट्री भी चलाई। हालांकि वह बंद हुई, लेकिन दवा बिज़नेस आज भी चलता है। यह दोस्ताना आज भी मिसाल माना जाता है।

सादा जीवन, साफ़ नीयत और मेहनत इन तीन स्तंभों पर खड़े प्रेम कुमार आज बिहार भाजपा की मज़बूत धुरी हैं। 1990 में जब भाजपा के पास गिनती की सीटें होती थीं, तब गया से उनकी जीत ने पार्टी को नई धार दी थी। अब, 2025 की एक और विजय के बाद, यह चर्चा ज़ोरों पर है कि इस बार उन्हें बिहार विधान सभा का स्पीकर बनाया जा सकता है।सियासी हलकों में कहा जा रहा है कि मंत्री तो कई बनते हैं, मगर स्पीकर बनने का मुक़ाम सिर्फ़ उन्हें मिलता है, जिनमें इम्तिहानों का साहस और तजुर्बे की सुलझन हो।