Bihar Election Result 2025: नीतीश कुमार और बिहार की राजनीति! क्या 14 नवंबर 2025 का शुक्रवार फिर चमकाएगा नीतीश का सितारा?

Bihar Election Result 2025: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ने पिछले 25 वर्षों में उतार-चढ़ाव भरा सफर तय किया है। जानिए कैसे शुक्रवार का दिन बार-बार उनके लिए शुभ साबित हुआ

नीतीश कुमार की चमकेगी किस्मत!- फोटो : social media

बिहार की राजनीति की कहानी अगर किसी एक नाम के बिना अधूरी है, तो वह है — नीतीश कुमार।पिछले ढाई दशकों में राबड़ी देवी से लेकर तेजस्वी यादव तक कई नेता सत्ता में आए, लेकिन बिहार की राजनीति की धुरी हमेशा नीतीश के इर्द-गिर्द घूमती रही।दिलचस्प यह है कि जब भी राज्य की सत्ता की दिशा बदली, शुक्रवार का दिन उनके लिए शुभ साबित हुआ।

इस बार भी 14 नवंबर 2025, यानी शुक्रवार को मतगणना का दिन तय है।राजनीति के गलियारों में अब यह सवाल चर्चा में है — क्या इस शुक्रवार को भी इतिहास खुद को दोहराने वाला है?बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री के लिए शुक्रवार सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि किस्मत का प्रतीक बन चुका है। 3 मार्च 2000 को शुक्रवार के दिन उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली — भले ही वह कार्यकाल सिर्फ सात दिन का रहा, लेकिन यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा ने मोड़ लिया।

इसके बाद 26 नवंबर 2010 को एक और शुक्रवार को उन्होंने फिर मुख्यमंत्री पद संभाला।और 20 नवंबर 2015 को — जब महागठबंधन ने चुनाव जीता — तब भी शुक्रवार ही था।अब जब 14 नवंबर 2025 (शुक्रवार) को नतीजे आने वाले हैं, तो बिहार फिर उसी सवाल पर लौट आया है — क्या “शुक्रवार का जादू” एक बार फिर नीतीश पर चलेगा?

राबड़ी देवी से तेजस्वी तक बिहार की सत्ता का उतार-चढ़ाव

बिहार की सत्ता का खेल कभी स्थिर नहीं रहा। 2000 के चुनावों ने राबड़ी देवी को फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाई, जबकि नीतीश कुमार को केवल सात दिन का मौका मिला, लेकिन साल 2005 में उनकी वापसी स्थायी साबित हुई।

फरवरी में हुए पहले चुनाव में खंडित जनादेश मिला, राष्ट्रपति शासन लागू हुआ, और जब नवंबर में फिर मतदान हुआ तो नीतीश कुमार बहुमत के साथ लौटे। यह वह क्षण था जब बिहार ने “सुशासन बाबू” का नाम सुना और राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई।

नीतीश के करियर का स्वर्ण अध्याय

साल 2010 के चुनावों में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने इतिहास रचा।एनडीए गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला — जेडीयू ने 115 और भाजपा ने 91 सीटें जीतीं।राबड़ी और लालू की पार्टी राजद केवल 22 सीटों पर सिमट गई।यह नीतीश कुमार के करियर का स्वर्ण युग था, जब “सुशासन” उनका राजनीतिक ब्रांड बन चुका था।

महागठबंधन की वापसी और तेजस्वी का उदय

8 नवंबर 2015 को आए नतीजों ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी।जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन ने जबरदस्त जीत दर्ज की।तेजस्वी यादव पहली बार उपमुख्यमंत्री बने, और नीतीश ने फिर एक नई राजनीतिक साझेदारी की शुरुआत की।

सत्ता तो मिली, लेकिन असर घटा

10 नवंबर 2020 को जब परिणाम आए तो नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने, पर इस बार तस्वीर पहले जैसी नहीं थी।आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी, भाजपा ने नीतीश को बराबरी की टक्कर दी और जेडीयू तीसरे स्थान पर चली गई।इसके बावजूद नीतीश ने कुर्सी संभाली, लेकिन राजनीति में उनका प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा।इसके बाद उन्होंने एक बार महागठबंधन से जुड़कर, फिर एनडीए में लौटकर — बिहार की राजनीति को बार-बार नए मोड़ दिए।

शुक्रवार का इंतज़ार, किसका होगा बिहार?

साल 2025 के चुनाव दो चरणों में हुए — 6 और 11 नवंबर को मतदान संपन्न हुआ, और अब 14 नवंबर (शुक्रवार) को मतगणना होगी। इतिहास गवाह है कि शुक्रवार नीतीश कुमार के लिए हमेशा शुभ रहा है। अब सवाल यह है — क्या यह शुक्रवार उन्हें फिर सत्ता तक पहुंचाएगा, या बिहार की जनता इस बार तेजस्वी यादव को मौका देगी?

सत्ता के बदलते रंग

बिहार की राजनीति का इतिहास सत्ता परिवर्तन और गठबंधन की कहानियों से भरा है।कभी राबड़ी देवी के दौर ने सामाजिक न्याय की बात की, तो नीतीश कुमार के शासन ने विकास की।तेजस्वी यादव अब नई पीढ़ी की राजनीति लेकर मैदान में हैं।14 नवंबर का दिन तय करेगा कि इस बार बिहार किस दिशा में कदम रखेगा — क्या “शुक्रवार” एक बार फिर नीतीश के भाग्य को चमकाएगा, या तेजस्वी की राजनीति नई सुबह लाएगी।