Bihar Politics: पहले गृह विभाग अब स्पीकर पद! क्या है बीजेपी का मास्टर प्लान? धीरे-धीरे वाला धाकड़ प्लान...

Bihar Politics: बिहार में बीजेपी इस बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। बीजेपी धीरे धीरे जदयू से सभी महत्वपूर्ण पद वापस ले रही है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह इसलिए हो रहा है ताकि सीएम नीतीश के पलटने की कोई संभवनाएं ना बचे...

बीजेपी का मास्टर प्लान - फोटो : social media

Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद बीजेपी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। बीजेपी के विधानसभा में 89 सदस्य हैं जबकि जदयू के 85 सदस्य हैं। नई सरकार के गठन होने के बाद भले ही सीएम पद जदयू के पास है और सीएम नीतीश रिकॉर्ड 10वीं बार सीएम बने हैं लेकिन अधिक ताकत अब बीजेपी के पास है। 20 साल के बाद सीएम नीतीश से गृह विभाग छीन गया है और गृह विभाग अब बीजेपी के पास हैं। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी गृह मंत्री बने हैं। वहीं अब एक ओर बड़े पद को बीजेपी ने अपने कोटे मं कर लिया है। वो है स्पीकर का पद। बिहार विधानसभा में स्पीकर बीजेपी कोटे के प्रेम कुमार होंगे। बीजेपी इस बार बिहार में पहली बार सबसे पार्टी बनकर उभरी है ऐसे में राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी इस बार सरकार में बने रहने का मौका नहीं गंवाना चाहती है।    

प्रेम कुमार बनेंगे स्पीकर 

ऐसे में भाजपा की ओर से हर वो हथकंडें अपनाए जा रहे हैं जिससे सीएम नीतीश के पलटने की सारी संभवनाएं खत्म हो जाए। दरअसल, बिहार विधानसभा में नौवीं बार पहुंच चुके भाजपा नेता प्रेम कुमार का विधानसभा अध्यक्ष बनना लगभग तय हो गया है। आज यानी मंगलवार को इसकी औपचारिक घोषणा हो जाएगी। एनडीए की ओर से 1 दिसंबर को उनके नामांकन के साथ ही तस्वीर साफ हो गई थी। प्रेम कुमार का सर्वसम्मति से स्पीकर चुना जाना सुनिश्चित हो गया है।

स्पीकर की संवैधानिक भूमिका

संविधान के अनुच्छेद 178 में विधानसभा अध्यक्ष की नियुक्ति का प्रावधान है। नई सरकार बनते ही स्पीकर का चुनाव करने की परंपरा रही है। स्पीकर सदन के प्रमुख और पीठासीन अधिकारी होते हैं। सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले, नियमों का पालन हो, और सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा हो। इन सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन स्पीकर करते हैं। स्पीकर विपक्ष के नेता की मान्यता भी तय करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर सदन की गुप्त बैठक बुलाने का अधिकार भी रखते हैं।

दलबदल कानून में सबसे बड़ी शक्ति

सबसे अहम बात है कि स्पीकर के पास दलबदल कानून की विशेष शक्ति भी प्राप्त होती है। जानकारी अनुसार स्पीकर को दलबदल कानून (1985) के तहत विशेष शक्तियां प्राप्त हैं। किसी विधायक को दलबदल के आधार पर अयोग्य घोषित करने का अधिकार स्पीकर के पास ही होता है। गठबंधन सरकारों में यह पद और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि छोटे दलों या सत्ता संतुलन बनाने वाले विधायकों के टूटने का खतरा हमेशा बना रहता है। सुप्रीम कोर्ट भी स्पीकर के निर्णयों में सीमित दखल रखता है। 1 जुलाई 2021 को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने एक मामले की सुनवाई में कहा था कि दलबदल कानून में स्पीकर के फैसलों की समयसीमा तय नहीं की जा सकती और कोर्ट की भूमिका सीमित है।

भाजपा का मास्टर प्लान 

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, प्रेम कुमार को अध्यक्ष बनाना भाजपा की बड़ी रणनीतिक चाल का हिस्सा है। चुनाव परिणामों के बाद समीकरण इस तरह बने हैं कि यदि नीतीश कुमार चाहें तो भाजपा से दूरी बनाकर महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। जदयू के 85 विधायक हैं और विपक्ष के सभी दलों का समर्थन जोड़ने पर 126 का आंकड़ा बनता है, जो बहुमत (122) से चार अधिक है। यही वजह है कि भाजपा अब सत्ता संचालन की चाबी अपने पास रख रही है। इससे पहले उसने नीतीश कुमार से गृह विभाग अपने हाथ में ले लिया था और अब विधानसभा अध्यक्ष पद भी अपने खाते में ले आई है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। स्पीकर का पद उनके लिए सुरक्षा कवच है, ताकि यदि कभी पाला बदलने की कोशिश हो तो वह तुरंत स्थिति संभाल सके।