sex ratio in Bihar:बिहार में लड़कियों की घटती संख्या से हिल रही समाज की नींव, प्रियंका गांधी ने लिंगानुपात पर उठाए गंभीर सवाल

sex ratio in Bihar: भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा जारी नागरिक पंजीकरण प्रणाली की सांख्यिकी रिपोर्ट, 2022 के आँकड़े हृदय विदारक हैं। ये आँकड़े दर्शाते हैं कि बिहार में प्रति 1,000 लड़कों पर मात्र 891 लड़कियों का जन्म हो रहा है,...

बिहार में बेटियाँ क्यों नहीं जन्म ले रहीं?’- फोटो : social Media

sex ratio in Bihar: बिहार की धरा पर एक गंभीर संकट मंडरा रहा है, जो सभ्यता और समाज की नींव को हिला देने वाला है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा जारी नागरिक पंजीकरण प्रणाली की महत्वपूर्ण सांख्यिकी रिपोर्ट, 2022 के आँकड़े हृदय विदारक हैं। ये आँकड़े दर्शाते हैं कि बिहार में प्रति 1,000 लड़कों पर मात्र 891 लड़कियों का जन्म हो रहा है, जो देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम लिंगानुपात है। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि एक सामाजिक असंतुलन की ओर भी इशारा करता है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम भयावह हो सकते हैं।

निरंतर गिरावट का पथ और राजनैतिक प्रतिध्वनियाँ

यह केवल एक वर्ष का आंकड़ा नहीं, अपितु एक त्रासद प्रवृत्ति का परिचायक है। 2020 में, जब इस डेटा को राज्य के लिए उपलब्ध कराया गया था, तब यह अनुपात 964 था। 2021 में यह गिरकर 908 हुआ और 2022 में और भी नीचे आकर 891 पर स्थिर हो गया। यह निरंतर गिरावट बिहार के सामाजिक ताने-बाने में गहरी पैठ बना चुकी लिंग-भेद की भावना को उद्घाटित करती है, जहाँ बेटियों के जन्म को अभी भी पूर्ण स्वीकृति नहीं मिल पा रही है।

इस गंभीर स्थिति पर राजनीति का अखाड़ा भी गर्म हो चुका है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सवाल उठाया है: "आखिर ऐसा क्या हो रहा है कि जन्म लेने वाले बच्चों में बेटियों की संख्या लगातार गिर रही है?" उन्होंने बिहार की "डबल इंजन सरकार" पर निशाना साधते हुए कहा है कि "एक तरफ महिलाओं पर लगातार हो रही बर्बरता और दूसरी तरफ लिंगानुपात के मामले में देश में सबसे खराब स्थिति इस बात का संकेत है कि बिहार का डबल इंजन महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।" उनका यह कथन ऐसे समय में आया है जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं। 2024 के आम चुनाव में बिहार की 7.64 करोड़ मतदाताओं में से 47.6% महिलाएँ थीं, और मतदान में उनकी हिस्सेदारी 50.4% रही थी, जो महिला मतदाताओं के महत्व को रेखांकित करता है।

राष्ट्रीय तुलना

हालांकि यह रिपोर्ट कुल पंजीकृत जन्मों में वृद्धि दर्शाती है (2021 में 242 लाख से बढ़कर 2022 में 254.4 लाख), और पंजीकृत मौतों में कमी (2021 में 102.2 लाख से घटकर 2022 में 86.5 लाख), बिहार का गिरता लिंगानुपात एक अकेला, लेकिन महत्वपूर्ण अपवाद है। 2013 के बाद से, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पंजीकृत जन्मों में सामान्य वृद्धि देखी गई है, जबकि तमिलनाडु, केरल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में उतार-चढ़ाव के बावजूद गिरावट दर्ज की गई है। इस राष्ट्रीय परिदृश्य में, बिहार की स्थिति और भी अधिक चिंताजनक प्रतीत होती है।

यह आँकड़ा केवल संख्या मात्र नहीं, अपितु एक समाज की अंतरात्मा का दर्पण है। यह दर्शाता है कि बेटियों के प्रति हमारी सोच में कहीं न कहीं अभी भी एक गहरा पूर्वाग्रह छिपा है। यह समय है जब समाज, प्रशासन और राजनीतिक दल मिलकर इस गंभीर मुद्दे पर चिंतन करें और ठोस कदम उठाएँ, ताकि बिहार की बेटियाँ भी सम्मान और समानता के साथ इस धरती पर जन्म ले सकें और फल-फूल सकें। यह केवल एक लैंगिक असंतुलन का प्रश्न नहीं, अपितु एक सभ्य और समृद्ध समाज के निर्माण की चुनौती है।