PATNA HIGHCOURT - कॉलेज प्रिंसिपल की नियुक्ति में आरक्षण देने के विरोध में दायर याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई, कोर्ट ने बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग से मांगा जवाब

PATNA HIGHCOURT - बिहार के कॉलेजों में प्रिसिंपल की नियुक्ति में आरक्षण देने के फैसले पर हाईकोर्ट ने राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग से जबाव मांगा है। मामले में हाईकोर्ट में दायर याचिका में सरकार के फैसले का विरोध किया गया है।

 PATNA HIGHCOURT - कॉलेज प्रिंसिपल की नियुक्ति में आरक्षण देने के विरोध में दायर याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई, कोर्ट ने बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग से मांगा जवाब

PATNA - पटना हाईकोर्ट ने बिहार के महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य पदों पर आरक्षण के विरुद्ध दायर जनहित याचिका सुनवाई करते हुए बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग से मांगा जवाब-तलब किया । ये जनहित याचिका सतीश कुमार शर्मा ने दायर की है।एक्टिंग चीफ जस्टिस आशुतोष कुमार व जस्टिस पार्थ सारथी ने इस जनहित याचिका  पर सुनवाई करते हुए बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग को दो सप्ताह में स्थिति स्पष्ट करते हुए जवाब देने का निर्देश दिया है। 

याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में ये कहा है कि एकल पद पर आरक्षण लागू करना विभिन्न न्यायिक निर्णयों के विरुद्ध है। उन्होंने अपनी याचिका में विभिन्न विधिक पहलुओं को उठाते हुए यह दावा किया कि इस नीति से न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित होगी, बल्कि यह संवैधानिक एवं विधिक दृष्टिकोण से भी अनुचित है। याचिका में कोर्ट को बताया गया कि  प्रधानाचार्य भी एक शिक्षक हैं।अतः किसी भी व्यक्ति की नियुक्ति या पदस्थापना केवल ऐसे महाविद्यालय में की जानी चाहिए, जहां उसका अपना विषय पढ़ाया जाता हो। 

यदि किसी विषय-विशेष के शिक्षक को ऐसे महाविद्यालय का प्रधानाचार्य बना दिया जाए, जहां वह विषय ही नहीं पढ़ाया जाता, तो यह शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। साथ ही कला एवं विज्ञान महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य पदों का एकीकरण अवैध है । याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि कला महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य पदों को विज्ञान या बहु-संकाय महाविद्यालयों के साथ मिलाना विधिसम्मत नहीं है।

यह प्रावधान शैक्षणिक प्रशासनिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है तथा महाविद्यालयों की स्वायत्तता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।एकल पद पर आरक्षण संवैधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध है।सुप्रीम  एवं विभिन्न हाईकोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला देते हुए यह तर्क दिया गया कि एकल पदों पर आरक्षण लागू करना न्यायिक रूप से असंगत है।  यदि महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य पद पर आरक्षण लागू किया जाता है, तो इससे योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन होगा।

याचिकाकर्ता का दावा है कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा लिया गया यह निर्णय शिक्षा एवं प्रशासनिक संतुलन के सिद्धांतों के विरुद्ध है।यह मामला न केवल नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह आरक्षण नीति एवं न्यायिक निर्देशों के दायरे में आने वाले संवेदनशील मुद्दों में से एक है।

यदि कोर्ट इस याचिका पर सकारात्मक निर्णय देता है, तो यह भविष्य में शिक्षा संस्थानों में नियुक्तियों की प्रक्रिया पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।बिहार के महाविद्यालयों में प्रधानाचार्य पदों पर आरक्षण लागू करने को लेकर यह कानूनी लड़ाई शिक्षा व्यवस्था एवं प्रशासनिक नीतियों के लिए एक महत्वपूर्ण मसला बन सकती है। इस मामलें पर दो सप्ताह बाद की जाएगी।

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