मुखिया-सरपंच अब रख सकेंगे हथियार,अब पंचायत पर चलेगा बंदूक का राज! सरकार के फैसले से बदलेगा गांव की सत्ता का खेल
Bihar Politics: बिहार सरकार द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शस्त्र लाइसेंस देने का निर्णय राज्य की ग्रामीण सत्ता-संरचना और सुरक्षा व्यवस्था दोनों के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।...
Bihar Politics: बिहार सरकार द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शस्त्र लाइसेंस देने का निर्णय राज्य की ग्रामीण सत्ता-संरचना और सुरक्षा व्यवस्था दोनों के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा और पंचायती राज विभाग की अनुशंसा के बाद गृह विभाग ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है कि मुखिया, सरपंच, पंच, वार्ड सदस्य, और जिला पार्षद जैसे प्रतिनिधियों के शस्त्र लाइसेंस संबंधी आवेदनों पर नियमानुसार और समयबद्ध तरीके से कार्रवाई की जाए।
यह निर्णय उस सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ को स्वीकार करता है जहां पंचायत प्रतिनिधि कई बार जान के खतरे से जूझते हैं—चाहे वह विकास योजनाओं में कट मनी के आरोप हों या अपराधियों की धमकियां। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि पंचायत स्तर की राजनीति में पहले से मौजूद वर्चस्व की लड़ाई अब शस्त्रों से और भयावह रूप ले सकती है।
करीब ढाई लाख जनप्रतिनिधियों को इस नीति का लाभ मिलने की संभावना है। सवाल यह उठता है कि क्या इससे सुरक्षा बढ़ेगी या पंचायत स्तर पर हथियारबंद राजनीति को बढ़ावा मिलेगा? बिहार में पंचायत चुनावों के दौरान पहले भी हिंसा, बूथ कैप्चरिंग और धमकी की घटनाएं सामने आती रही हैं। ऐसे में यदि हथियार का वैध अधिकार भी स्थानीय ताकतवर नेताओं को मिलेगा, तो यह शक्ति के असंतुलन को और तीव्र कर सकता है।
हालांकि गृह विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि लाइसेंस देने की प्रक्रिया आयुध अधिनियम 2016 के प्रावधानों के तहत ही होगी, फिर भी यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा कि इसका दुरुपयोग न हो। प्रशासन की भूमिका इस नई नीति को संतुलन में रखने में अहम होगी। कुल मिलाकर, यह निर्णय जहां एक ओर आत्मरक्षा का आधार बन सकता है, वहीं यह पंचायत राजनीति को नए खतरे भी दे सकता है।