ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ को नीतीश सरकार देगी बड़ा तोहफा ! ताकत बढ़ाने को मिलेगी तीन सौगात

बिहार की सियासत में स्वर्ण वर्ग की चार जातियों को लुभाने के लिए नीतीश सरकार की एक चाल से जहां भाजपा की भी टेंशन बढ़ी है वहीं विपक्षी दल भी परेशान हैं. वहीं इसका बड़ा फायदा सवर्ण वर्ग को मिल सकता है.

Upper Caste Commission- फोटो : news4nation

Bihra News: बिहार की राजनीति लंबे समय से OBC, EBC और दलित वोट बैंक पर केंद्रित रही है। सवर्ण (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ आदि) समुदाय, जो कभी कांग्रेस और फिर भाजपा का मजबूत आधार रहे हैं, कई बार उपेक्षित महसूस करते आए हैं। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के कुछ महीने पूर्व अब नीतीश सरकार ने राज्य में उच्च जातियों के लिए सवर्ण आयोग का गठन किया है। सियासी जानकर इसे एनडीए की राजनीतिक चाल मान हैं जिसके सहारे ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ वर्ग को लुभाने की बड़ी तैयारी है ।


सवर्ण विधायक और सांसद 

वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से करीब 64 विधायक अगड़ी जातियों से चुनकर आए। बिहार में कुल 28 राजपूत विधायक जीतकर आए हैं जबकि 2015 में 20 विधायक जीते थे। इसी तरह विभिन्न दलों से 21 भूमिहार विधायक चुनकर आए हैं जबकि 2015 में 17 विधायक चुने गए थे। पिछले चुनाव में 12 ब्राह्मण विधायक चुनाव जीते जबकि 2015 में 11 विधायकों ने जीत हासिल की थी। वहीं, कायस्थ समुदाय से तीन विधायकों ने जीत दर्ज की जो 2015 में भी तीन ही थे। इसी तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में जीतने वाले सांसदों में सवर्ण समुदाय से 12 सांसद रहे। 


भाजपा को जदयू का झटका ! 

बिहार की राजनीति में भाजपा को सवर्ण समर्थक माना जाता है, जबकि जेडीयू को EBC और मुस्लिम वोटर आधार का। सवर्ण आयोग बनाकर नीतीश कुमार ने भाजपा के मैदान में भी एक मजबूत पत्ता फेंका है। इसमें अब चारों सवर्ण जातियों के लिए कुछ खास सौगात देने की बातें भी हो रही हैं। यह विशेषकर गरीब सवर्णों के लिए बड़ा फायदा देने वाला साबित हो सकता है।


"सामाजिक संतुलन" का संदेश 

कहा जा रहा है कि सवर्ण आयोग का गठन उस पृष्ठभूमि में हुआ है जहाँ 10% आर्थिक आधार पर EWS आरक्षण लागू है। आयोग के ज़रिए सवर्णों की आर्थिक स्थिति, बेरोजगारी, और आरक्षण की 'जरूरत' को स्थापित किया जा सकता है। इससे उन गरीब सवर्णों का भरोसा जीता जा सकता है जो खुद को 'आरक्षण के बाहर' पाकर असंतुष्ट रहे हैं। दूसरी ओर सवर्ण आयोग बनाकर "सामाजिक संतुलन" का संदेश दिया गया है — कि सरकार केवल एक पक्ष की नहीं, सबकी है।


तीन प्रमुख सिफारिश 

सवर्णों के लिए आयोग की ओर से जो कुछ प्रमुख मांग को लागू कराना अहम होगा उसमें गरीब सवर्ण परिवारों के बच्चों को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा में छूट, इसके अलावा यूपीएससी, पीसीएस और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए फ्री कोचिंग की सिफारिश और गरीब सवर्णों के बच्चों को हॉस्टल की सुविधान देने की सिफारिश शामिल हो सकते हैं।