पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: हत्या के दोषी को 7 साल बाद किया बरी, जांच और 'अवैध सबूतों' पर उठाए सवाल, बिना सर्टिफिकेट CCTV फुटेज और पुलिस के सामने कबूलनामा रद्दी का टुकड़ा

पटना हाई कोर्ट ने अररिया के एक हत्या मामले में पुलिसिया जांच और निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए 7 साल से उम्रकैद की सजा काट रहे विजय कुमार यादव को बाइज्जत बरी कर दिया है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को 'कानूनन अवैध' करार दिया।

Patna - पटना हाई कोर्ट ने न्याय के सिद्धांत को सर्वोपरि रखते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अररिया जिले में हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे विजय कुमार यादव उर्फ विवेक उर्फ गोलू को 7 साल बाद रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने पाया कि पुलिस ने जांच में घोर लापरवाही बरती और ट्रायल कोर्ट ने जिन सबूतों के आधार पर सजा सुनाई, वे कानून की कसौटी पर टिकने लायक नहीं थे।

क्या था पूरा मामला? 

दिसंबर 2016 में पुलिस ने एक अज्ञात शव बरामद किया था, जिसकी पहचान बाद में नियाज अहमद के रूप में हुई थी। पुलिस ने जांच के दौरान दावा किया कि विजय कुमार यादव ने मृतक के एटीएम कार्ड से पैसे निकाले और आभूषण खरीदे। पुलिस ने यह भी दावा किया कि आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है। इसी आधार पर निचली अदालत ने 11 अप्रैल 2018 को उसे दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

हाई कोर्ट ने पुलिस और ट्रायल कोर्ट की गलतियां गिनाईं

 जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस डॉ. अंशुमान की खंडपीठ ने अपील पर सुनवाई करते हुए अभियोजन पक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने बरी करने के पीछे ये चार प्रमुख कारण बताए:

  1. पुलिस के सामने कबूलनामा मान्य नहीं: कोर्ट ने कहा कि पुलिस हिरासत में या पुलिस के सामने दिया गया इकबालिया बयान (Confession) भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 के तहत कोर्ट में सबूत नहीं माना जा सकता। ट्रायल कोर्ट ने इसे आधार बनाकर गलती की।

  2. इलेक्ट्रॉनिक सबूतों का सर्टिफिकेट नहीं: अभियोजन पक्ष ने एटीएम ट्रांजैक्शन, कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) और सीसीटीवी फुटेज पेश किए थे, लेकिन भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (65-B) का अनिवार्य प्रमाण-पत्र साथ नहीं था। इसके बिना डिजिटल सबूतों की कोई कानूनी वैल्यू नहीं है।

  3. गवाह मुकर गए: पुलिस ने जिन लोगों के सामने सामान बरामदगी का दावा किया था, वे गवाह कोर्ट में अभियोजन का समर्थन नहीं कर सके।

  4. असली संदिग्धों की जांच नहीं: मृतक के परिजनों ने हत्या को लेकर कुछ अन्य लोगों पर भी संदेह जताया था, लेकिन पुलिस ने उन बिंदुओं पर जांच ही नहीं की।

कोर्ट ने इन खामियों को देखते हुए विजय कुमार यादव को तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया।