Bihar Road: पगडंडियों से पक्की राह तक का सफर, बिहार में गांवों से घटने लगी शहर की दूरी, ग्रामीण इलाकों में तेजी से बदल रहा कनेक्टिविटी का ढांचा

Bihar Road: बिहार में साल 2005 से पहले बिहार के गांवों में हालात किसी सियासी भाषण की उदासी जैसे थे,धूल उड़ाती पगडंडियां, बरसात में कीचड़ का समंदर, गर्मियों में फटी धरती, और सर्दियों में उबड़-खाबड़ रास्ते।

पगडंडियों से पक्की राह तक का सफर- फोटो : social Media

Bihar Road: बिहार में साल 2005 से पहले बिहार के गांवों में हालात किसी सियासी भाषण की उदासी जैसे थे,धूल उड़ाती पगडंडियां, बरसात में कीचड़ का समंदर, गर्मियों में फटी धरती, और सर्दियों में उबड़-खाबड़ रास्ते। लेकिन आज तस्वीर बदली हुई है। अब इन रास्तों पर सुबह-सवेरे बच्चों की खिलखिलाती आवाज़ें गूंजती हैं, सब्ज़ी से लदी गाड़ियां बेखौफ़ मंडियों का रुख करती हैं, और मेहनतकश लोग शहर तक तेज़ी से पहुंचकर अपनी रोज़ी-रोटी की जंग जीतते हैं। यह बदलाव यूं ही नहीं आया इसके पीछे है नाबार्ड और राज्य सरकार की वो साझी पहल, जिसने गांवों की किस्मत को नई  सियासी ज़ुबान दी है।

ताज़ा सरकारी रिपोर्ट बताती है कि नाबार्ड से स्वीकृत 2025 ग्रामीण सड़कों और 1239 पुल-पुलियों में से 80% से अधिक काम पूरा हो चुका है। 936 पुल तैयार, जबकि शेष 303 पुल अंतिम चरण में हैं। 5989 करोड़ रुपये की लागत वाली यह योजना सिर्फ सड़कें नहीं, बल्कि गांवों की तकदीर चमकाने वाला विकास का असल नेटवर्क बन चुकी है। यह आंकड़ा सिर्फ फाइलों की सजावट नहीं, बल्कि उन गांवों की ज़िंदगियों में आई असल रौनक का सबूत है, जहां अब पक्की सड़कें रोज़गार, शिक्षा और इलाज की ‘जीवनरेखा’ बन गई हैं।

नालंदा में हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। यहां 214 स्वीकृत सड़कों में 200 सड़कें चमकती नज़र आती हैं। 370 किमी से अधिक नई सड़कों और 67 में से 60 पुलों ने यहां के गांवों को शहर की धड़कन से जोड़ दिया है। गया जैसे कठिन भूगोल वाले ज़िले ने भी हौसला नहीं छोड़ा 129 में से 121 सड़कें, 365 किमी का जाल और 46 नए पुल यहां तरक्‍की की तेज़ रफ्तार की मिसाल हैं।

राजधानी पटना के ग्रामीण इलाकों में भी कहानी कुछ ऐसी ही है। 167 में से 157 सड़कों और 54 में से 46 पुलों ने यहां गांवों और बाज़ारों को मज़बूत डोर में बांध दिया है। इन सड़कों पर अब सिर्फ ट्रैक्टर और जीपें ही नहीं, बल्कि गांव वालों की उम्मीदें भी दौड़ रही हैं समय बच रहा है, किसान अपनी उपज आसानी से बेच पा रहे हैं, और युवाओं के लिए रोज़गार के नए दरवाज़े खुल रहे हैं।

नाबार्ड और राज्य सरकार की यह साझेदारी साबित करती है कि डामर की सड़कें सिर्फ रास्ते नहीं, बल्कि गांवों के अरमानों को शहरों तक पहुंचाने वाले पुल हैं—वो पुल जो बिहार के गांवों को विकास की ‘मुख्य धारा’ से जोड़ रहे हैं।