Bihar News : CO के माथे पर मन भर काम,लेकिन क्यों हो रहा यह पद पूरे बिहार में बुरा और बदनाम..अंदर की बात जानिए...

अंचलाधिकारी एक ऐसा पद हो गया जो इन दिनों बिहार में सबसे ज्यादा बदनामी झेल रहा है. चंद सीओ की कारस्तानी के लिए पूरे महकमे को बदनाम किया जा रहा है. वहीं सिक्का का दूसरा पहलू यह भी है जिसमें सीओ की समस्याओं को दरकिनार किया जाता है.

circle officers of Bihar
circle officers of Bihar- फोटो : news4nation

Bihar News : अंचलाधिकारी ! बिहार में इन दिनों इस पद यानी सीओ की चर्चा सबसे ज्यादा है. खासकर भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से घर-घर में अंचलाधिकारी का नाम लिया जा रहा है. मीडिया में खबर बन रही है कि बिहार सरकार ने सीओ को काम निपटाने का टारगेट दिया है. यानी जिस भू-राजस्व के जो काम करीब सौ साल से अनियमित हैं उन्हें तय समय सीमा में करने की चुनौती सीओ को है. खबरें यह भी आती हैं कि सीओ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. राजस्व के अतिरिक्त प्रशासन से जुड़े कई अन्य काम को निपटाने का जिम्मा भी सीओ पर होता है. 


यानी यह कहा जा सकता है कि CO के माथे पर मन भर काम है. लेकिन फिर भी यह पद  पूरे बिहार में बुरा और बदनाम बना हुआ है. अब स्थिति है कि बिहार के 534 अंचलों में अधिकांश सीओ इससे परेशान हैं कि उनके काम को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है. ना तो सामाजिक स्तर पर और ना ही सरकार की ओर से उनकी समस्याओं और गरिमा का ख्याल रखा जा रहा है. 


दरअसल, बिहार में वर्ष 2019 में बिहार राजस्व सेवा का गठन किया गया. इसके तहत बिहार प्रशासनिक सेवा से CO, DCLR, ADM, Joint Sec तक के पद को निकल कर अलग कर किया गया और इसे बिहार राजस्व सेवा के तहत रखा गया. उद्देश्य था की राजस्व जो जटिल और तकनिकी विषय है उसके लिए अलग कैडर हो लेकिन आज भी बिहार राजस्व सेवा के पदाधिकारी दिन रात विधि व्यवस्था में लगे रहते हैं और स्थिति है कि उन्हें अपना मूल काम यानी राजस्व मामलों के निपटान के लिए पूर्ण समय नहीं मिलता है. 

 

सीओ की क्या हैं समस्याएं 

करोड़ों जमाबंदी : बिहार में भूमि सम्बन्धी जमाबंदी का सारा कार्यभार सीओ पर है. पूरे राज्य में जमाबंदी की कुल संख्या देखी जाए तो यह करोड़ों में है. ऐसे में गिनती के मामलों में कुछ सीओ भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं. लेकिन यही कुछ मामले सभी सीओ को बदनाम करता है. 


प्रशिक्षण का चुनौती : सीओ का कहना है कि राजस्व का काम एक जटिल, तकनीकी तथा अर्ध न्यायिक विषय है लेकिन इस दिशा में ट्रेनिंग की उचित व्यवस्था नहीं है.  बिहार न्यायिक सेवा के अधिकारियों की दो साल की ट्रेनिंग होती. ऐसे में राजस्व के मामलों को समझने में कई बार परेशानी आती है. 


अन्य काम का बोझ : राजस्व के काम के अलावा सीओ को भू माफिया और रेत माफिया से भी लोहा लेना पड़ता है. मद्य निषेध में दारू पकड़ना या दारू विनष्टीकरण भी सीओ के जिम्मे आता है. वहीं विधि व्यवस्था, वीआईपी मूवमेंट में प्रोटोकॉल ड्यूटी सहित दूसरे विभाग के काम भी सीओ से कराए जाते हैं. 


फ़र्ज़ी केस का खौफ: बहुत से सीओ पर सरकारी कार्यों जैसे अतिक्रमण, भू विवाद में एससी एसटी महिला अत्याचार या अन्य फ़र्ज़ी केसेस कर दिए जाते हैं. कई सीओ पर जानलेवा हमले भी हुए हैं.


सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव : बिहार के कई अंचल सुदूरवर्ती क्षेत्रों में हैं. शहरी इलाकों से दूर अंचलों में न तो मूलभूत सुविधाएं होती हैं और ना ही सुरक्षा का कोई उपाय. ऐसे में कई बार दबंग किस्म के लोग अपना काम नहीं बनता देख सीओ पर हमला तक करते हैं. शराब, कानून व्यवस्था आदि से जुड़े मामलों में भी सीओ को प्रमुख जिम्मेदारी दी जाती है. दूसरी ओर सीओ को न पर्याप्त बॉडी गार्ड मिलता है और ना ही सही गाड़ी. कई मौकों पर जिला से भी कोई ठोस सहयोग नहीं मिलता है. इतना ही नहीं संडे या पर्व में ड्यूटी भी करना होता है.  

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