Darbhanga News: मुसलमान वोट साधने में जुटा राजद, सिद्दीकी ने खेला मुस्लिम कार्ड, अब क्या करेंगे नीतीश
मुस्लिम बाहुल्य ये क्षेत्र कभी लालू प्रसाद यादव को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाता था। अब बिहार की हर पार्टी की नजर इसी इलाके में है।अब्दुल बारी सिद्दीकी विधानसभा चुनाव से पहले राजद से बिखरे मुस्लिम वोट बैंक एकजुट करने में जुटे हैं।
Darbhanga News: आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट को साधने में सभी दल के नेता लगे हुए। ताकि विधानसभा का रिजल्ट उनके पाले में हो। इसको लेकर सभी दलों की कवायद जारी है। इसी कड़ी में राजद ने मुस्लिम वोट बैंक को एकमुश्त कर अपने पाले में करने के लिए अब्दुल बारी सिद्दीकी को बिहार विधान परिषद के मुख्य सचेतक "विरोधी दल" बनाया। ताकि पिछले कुछ वर्षों के चुनाव में राजद से बिखरा मुस्लिम वोट बैंक एकजुट हो सके। वहीं बिहार विधान परिषद के मुख्य सचेतक "विरोधी दल" मनोनीत होने के बाद पहली बार अब्दुल बारी सिद्दीकी दरभंगा पहुंचे। जहां कार्यकर्ताओं के द्वारा नागरिक अभिनंदन समारोह का आयोजन किया। वही समारोह के संबोधन में सिद्दीकी ने मुस्लिम के बिखरे वोट को एकजुट कर अपने पाले में लाने के लिए कहा कि पार्टी का जिला में दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर होनी चाहिए। ताकि हम अपनी बातों को आम लोगों तक पहुंच सके।
उन्होंने कहा कि हमारे लोग चौक चौराहा पर खड़े रहते हैं, तो कुछ लोग कहते हैं कि मियां (मुस्लिम) लोगों का मन काफी बढ़ गया है। इसी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। जो हमारे दोस्त, पार्टी के आदमी हैं। वो लोग टुकुर-टुकुर सुनते हैं और चले आते हैं। इसीलिए जब तक आप इतिहास नहीं पढ़िएगा। जब तक आप अपने अध्यात्म को नहीं जानिएगा। जब तक आप अपने समाज को नहीं जानिएगा। तब तक आप ऐसी शक्तियों से नहीं जीत सकते हैं।सिद्दीकी ने कहा कि तो इस वजह से वोट हमारा राष्ट्रवाद, वोट है हमारा। राज है उनका, लेकिन हमारा जो वोटर है वह सुनता है और चुपचाप चला आता है। तो जरूरत इस बात का है कि आप दुश्मन से ज्यादा तेज बनो। दुश्मन से आप ज्यादा चरित्रवान बनो। दुश्मन से ज्यादा आप कर्मठ बनो। इस मौके पर मंच पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मो. अली आशराफ फातमी, बिहार सरकार के पूर्व मंत्री ललित यादव के साथ कई पूर्व विधायक व राजद के कार्यकता मौजूद थे।
बता दें बिहार में मुस्लिम मतदाता लंबे समय तक कांग्रेस के साथ जुड़े रहे, लेकिन 1971 के बाद उनका समर्थन धीरे-धीरे कम होने लगा। नब्बे के दशक में मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से कांग्रेस से अलग हो गए और जनता दल का समर्थन करने लगे। इसके पश्चात, जब लालू प्रसाद यादव ने आरजेडी की स्थापना की, तो मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ जुड़ गया। मुस्लिम समुदाय ने मजबूती से अपनी स्थिति बनाए रखी, लेकिन 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद मुस्लिम मतदाताओं का एक हिस्सा जेडीयू की ओर बढ़ गया। नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटबैंक को अपने पक्ष में लाने के लिए पसमांदा मुस्लिमों का सहारा लिया था। अली अनवर और एजाज अली जैसे नेताओं के माध्यम से नीतीश ने पसमांदा मुस्लिमों के एक बड़े हिस्से को अपने साथ जोड़ा। इस स्थिति में, जब तक मुस्लिम वोटबैंक जेडीयू के साथ रहा, नीतीश कुमार की भूमिका एनडीए में प्रमुख रही। मुस्लिम वोट का जेडीयू में स्थानांतरित होना आरजेडी की स्थिति को काफी कमजोर कर दिया था। नीतीश कुमार के एनडीए में बने रहने के कारण कुछ सीटों पर मुस्लिम वोट बीजेपी को भी प्राप्त होता रहा। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में, जेडीयू को 40 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिला, जबकि वह बीजेपी के साथ गठबंधन में था। 2015 के चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने एकजुट होकर आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस गठबंधन को समर्थन दिया था, लेकिन 2017 में नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ जाने के बाद मुस्लिमों का नीतीश कुमार के प्रति विश्वास टूट गया। 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समाज जेडीयू से दूर हो गया। सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 77 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने महागठबंधन को वोट दिया, जबकि 11 प्रतिशत मुसलमानों ने ओवैसी की एआईएमआईएम को अपना समर्थन दिया।
रिपोर्ट- वरुण कुमार ठाकुर