Sheikhpura vote boycott: शेखपुरा में वोट बहिष्कार के बाद ग्रामीणों का नया विरोध! आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों की क्लास पर लगाया सामूहिक बैन

Sheikhpura vote boycott: शेखपुरा के पंधर गांव में वोट बहिष्कार के बाद ग्रामीणों ने आंगनबाड़ी से बच्चों को दूर रखना शुरू कर दिया है। सेविका-सहायिका 10–2 बजे तक इंतजार कर रही हैं।

शेखपुरा में वोट बहिष्कार का अनोखा तरीका!- फोटो : social media

Sheikhpura vote boycott: शेखपुरा विधानसभा क्षेत्र के अरियरी प्रखंड की हुसैनाबाद पंचायत के पंधर गांव में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। जर्जर सड़क को लेकर पहले चरण के चुनाव में ग्रामीणों ने पूरी तरह मतदान से दूरी बनाई थी। प्रशासन की मध्यस्थता के बाद 6 नवंबर को वोटिंग तो हुई, लेकिन अब विरोध की दिशा बदल चुकी है—और इस बार निशाने पर है गांव का आंगनबाड़ी केंद्र।

सेविका–सहायिका को ग्रामीणों ने ठहराया जिम्मेदार

मतदान के दिन आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका और सहायिका ने भी वोट डाला। इसके साथ ही सेविका के पति एक प्रत्याशी के मतदान अभिकर्ता के रूप में बूथ पर मौजूद थे। ग्रामीणों को यही बात खटक गई। उनका मानना है कि जब पूरा गांव मतदान से दूर रहा, तब सेविका और सहायिका को भी बहिष्कार में शामिल होना चाहिए था। इसी नाराज़गी के चलते गांववालों ने सामूहिक निर्णय लिया कि वे अपने छोटे बच्चों को अब आंगनबाड़ी नहीं भेजेंगे।

रोज खुलता आंगनबाड़ी केंद्र, लेकिन बच्चे शून्य

मतदान के अगले ही दिन कुछ बच्चों ने केंद्र का रुख किया था, लेकिन उसके बाद लगातार स्थिति बदलती गई। अब हाल यह है कि सेविका और सहायिका रोज सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक केंद्र में बैठी रहती हैं, पर एक भी बच्चा नहीं आता।दोनों ने कई दिन घर–घर जाकर समझाने की कोशिश की, मगर ग्रामीणों का जवाब एक ही रहा जब पूरा गांव भेजेगा, तभी हम भी भेजेंगे। इस एकजुट विरोध से आंगनबाड़ी की सभी गतिविधियां ठप पड़ गई हैं।

सड़क और नेताओं से नाराज़गी ने बढ़ाया विवाद

ग्रामीणों का गुस्सा केवल मतदान बहिष्कार तक सीमित नहीं है। उनका कहना है कि चुनाव के वक्त कोई नेता गांव में नहीं आता।जब नेताओं ने हमें नजरअंदाज़ किया है, तो अब हम भी अपना फैसला ले रहे हैं। पहले चरण में कुल 17 लोगों ने वोट डाला था, जिनमें सेविका, सहायिका और उनके घरवाले शामिल थे।यही संख्या अब ग्रामीणों के बीच असंतोष की वजह बन गई है।

मतदान वाले दिन हुए विवाद से बिगड़ी स्थिति

गांववालों के अनुसार चुनाव की शाम सेविका के पति और कुछ ग्रामीणों के बीच झड़प भी हुई थी। ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि मतदान अभिकर्ता बनकर उन्होंने पूरे बहिष्कार को कमजोर किया और गांव की एकता टूट गई। मतदान वाली झड़प के बाद ही बच्चों को आंगनबाड़ी न भेजने का सामूहिक फैसला लिया गया। गांव का माहौल धीरे–धीरे तनावपूर्ण होता जा रहा है, जबकि स्थानीय अधिकारी इस पूरे विवाद से अनजान बताए जा रहे हैं।