One nation one election -लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश , विपक्ष ने इसे संघीय ढांचे पर बताया हमला

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया, जिसके बाद सदन में तीव्र बहस शुरु हो गई।

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लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश- फोटो : Hiresh Kumar

NEW DELHI - वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को लेकर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया, जिसके बाद सदन में तीव्र बहस आरंभ हो गई। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), समाजवादी पार्टी (सपा) सहित कई विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया है। वहीं, भाजपा के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) समेत कुछ अन्य दलों ने इसका समर्थन किया है।

गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि "कांग्रेस को बहस का अर्थ केवल विरोध करना ही समझ में आता है। यदि कोई मुद्दा देश के हित में है, तो उसका समर्थन क्यों नहीं किया जा सकता?"‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को अपना दल, अकाली दल, जनता दल यूनाइटेड और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (TDP) ने समर्थन दिया है। वहीं, कांग्रेस, सपा, टीएमसी और अन्य विपक्षी दल इसके खिलाफ एकजुट होकर खड़े हुए हैं।

कांग्रेस ने इस विधेयक के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी के नेता मनीष तिवारी ने प्रश्न उठाते हुए कहा कि "यदि लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलता है, तो क्या पूरे देश में चुनाव कराए जाएंगे? इससे कई विधानसभाओं को भंग करना पड़ेगा और सरकारों को बर्खास्त करना होगा।" कांग्रेस ने इसे संघीय ढांचे और संविधान की मूल भावना पर आघात बताया है।

सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने इस विधेयक को तानाशाही बताते हुए कहा, “इस बिल (वन नेशन, वन इलेक्शन) की आवश्यकता क्या है? यह तो तानाशाही को लागू करने का प्रयास है।” सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ‘एक’ की भावना तानाशाही की ओर ले जाएगी। यह संघीय लोकतंत्र को कमजोर करेगा और संघवाद के सिद्धांत को समाप्त करने का प्रयास है।

हालांकि, भाजपा को इस विधेयक पर अपने महत्वपूर्ण सहयोगी जनता दल यूनाइटेड का समर्थन प्राप्त हुआ है। जेडीयू के नेता संजय कुमार झा ने कहा, "हम हमेशा से यह कहते आए हैं कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी और सरकार हमेशा चुनावी मोड में नहीं रहेगी।" उन्होंने यह भी कहा कि "जब देश में चुनावों की शुरुआत हुई थी, तब भी चुनाव एक साथ होते थे। 1967 के बाद कांग्रेस के राष्ट्रपति शासन के निर्णयों के कारण यह परंपरा टूट गई।"


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