Religion: मन का मायाजाल, शरीर का छलिया सारथी आखिर है कौन, पढ़िए
Religion: श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मन ही संसार का सबसे बड़ा छलिया, भ्रमजाल और विनाशक है।मन शरीर रूपी रथ का सारथी है जो इन्द्रिय रूपी घोड़ों को गलत दिशा में दौड़ाता है।मोक्ष-रौरव नरक की राह के बारे में पढिए कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...
Religion:मन है कि मानता नहीं...बस इसे गाना भर हीं समझिए बाकी जीवन का मूल यही नाश करता है...सबसे बड़ा दुष्ट यही है..लेकिन पहचानना मुश्किल ह..जीवन का मूल सहित सब कुछ खत्म कर देता है उसके बाद भी भरम में रखने में कामयाब रहता है... ओह!
भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि इस ब्रह्मांड में मनुष्य का मन सबसे बड़ा बहरूपीया है। इसी बहरूपीया के चक्कर में पड़कर आदमी पल-पल षडयंत्र रचने लगता है और अपने शरीर को फंसाता है। मन इतना स्वांग रचता है कि मनुष्य खुद से हीं छल कपट ईर्ष्या द्वेष अहंकार कर उसके पाले में फंस जाता है।उसे लगता है कि हम यह दूसरे के लिए कर रहे लेकिन वह सबसे बड़ा दुश्मन खुद का हीं हो जाता है। जो इसके पाले में आया वो गया।
कृष्ण भगवान कहते हैं कि मन के बहकावें में इंसान को नहीं आना चाहिए। यह सुकर्म की राह से भटकाता है और ऐसा भ्रम में डालता है कि पता तक नहीं चला पाता। इसके भ्रम का पर्दा इतना गहरा होता है कि पाप कर्म कर रहे मनुष्य भी उसी आनंद में डूब जाता है । वह अच्छा बुरा का फर्क भूल जाता है। इसलिए हे अर्जुन तुम इसको अपना दास बनाओ। कभी भी इसका दास मत बनो।
यही मन तुम्हारे शरीर के रथ का सारथी है। यह इतना बदमाश है कि शरीर रूपी रथ को गंदी बातों और कर्म की तरफ हीं ले जाता है। चुकी इंसान की इन्द्रियाँ इस शरीर रूपी रथ के घोड़े हैं और जब घोड़ें हीं व्यभिचार करने पर उतारू है तो बेचारा शरीर क्या करे।
आत्मा मौन और दुखी होकर सब कुछ देखता है। और मन आत्मा और शरीर के मध्य में अपना खेल दिखाकर आत्मा को दुखी करता है।
इसीलिए हे अर्जुन जिसने भी। इस मन को वश में कर लिया,जिसने इसे अपना दास बनाया वहीं कर्मयोगी कहलाया। गृहस्थ जीवन में भी वह अपने आपको खूब अच्छी तरह संभालता है। और बाद में इसी शरीर रूपी रथ से मोक्ष को प्राप्त करता है। जो मन के वश में पड़े लोग होते हैं उन्हें कई जन्मों तक रौरव नर्क की पीड़ा जन्म ले लेकर भोगना पड़ता है।
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...