Religion:जब संतों का अपमान हुआ, तब राजसिंहासन भी डगमगाया, विभीषण और विदुर की उपेक्षा ने कैसे रचा विनाश का अध्याय, पढ़िए
Religion: धर्म के आश्रय में ही सुख है, और अधर्म के संग अंततः सर्वनाश सुनिश्चित है। धर्म न छोड़ें, भगवतभक्तों का अपमान न करें। कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...
Religion:जब तक विभीषणजी जैसे भगवतभक्त लंका में रहे, तब तक रावण का पाप ढका रहा। परंतु जब उसने भक्त का अपमान किया, तभी से उसका पतन आरंभ हुआ। उसी प्रकार जब तक विदुरजी हस्तिनापुर में रहे, कौरवों का वैभव बना रहा। परंतु जैसे ही उन्होंने धर्मनिष्ठ को तिरस्कृत किया, उनके विनाश की नींव पड़ गई।...जब तक रामभक्त विभीषणजी लंका में रहते थे , तब तक दुष्ट रावण का पाप भी छिपा रहा। कहा जाता है कि श्री सीताराम जी के अनन्य भक्त और भक्ति भाव में लीन रहने वाले विभीषणजी के पुण्य के कारण रावण का भी अहंकार बचा रहा। उसका झूठ और पाप की गठरी खुली नहीं।
परंतु जब विभीषणजी जैसे भगवत वत्सल भक्त के साथ रावण ने छल हीं नहीं किया बल्कि पैर पकड़कर मनाने वाले भाई ,जो चरण धरकर यह कहते रहे कि भईया यह पाप कर्म मत करो लेकिन अहंकार और पाप में लीन रावण ने विभीषण जी को हीं लात मारी और लंका से निकल जाने के लिए कहा, तब रावण के विनाश की उल्टी गिनती होना शुरू हो गया।
अंत में रावण की सोने की लंका का दहन हो गया और रावण के पीछे कोई रोने वाला भी नहीं बचा।
ठीक इसी तरह हस्तिनापुर में जब तक विदुरजी जैसे भक्त रहते थे , तब तक कौरवों को सुख ही सुख मिला।
परंतु जैसे ही कौरवों ने विदुरजी के साथ छल कपट तो किया हीं साथ में अपमानित भी किया।पीठ पीछे भी वह खेल खेला जो पाप का पर्याय था। उनका अपमान करके सभा से चले जाने के लिए कहा तब भगवान श्री कृष्ण जी ने विदुरजी से कहा कि काका आप अभी तीर्थ यात्रा के लिए प्रस्थान करिए और भगवान के विग्रह का दर्शन कीजिए। इस तरह से श्री कृष्णजी ने विदुरजी को तीर्थ यात्रा के लिए भेज दिया ,और जैसे ही विदुर जी ने हस्तिनापुर को छोड़ा , कौरवों का पतन शुरू हो गया और अंत में राज भी गया और कौरवों के पीछे कोई कौरवों का वंश भी नहीं बचा। न जाने ऐसे कई उदाहरण हैं धर्मशास्त्रों में जो हमें बहुमूल्य सिख देती है बशर्ते हम जैसे लोग उसे अपनाने की कोशिश करें..।
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...