Bihar School: हाई स्कूल में काड़ा-धागा विवाद ने लिया तूल, शिक्षिका की सख्ती पर हल्ला, डीपीओ ने संभाला मोर्चा

Bihar School: हाई स्कूल उस वक्त रणक्षेत्र बन गया, जब काड़ा और धागा पहनने को लेकर स्कूल की सख्ती पर अभिभावकों ने जमकर हंगामा मचाया।

हाई स्कूल में काड़ा-धागा विवाद ने लिया तूल- फोटो : reporter

Munger: मुंगेर शहर का टाउन हाई स्कूल उस वक्त रणक्षेत्र बन गया, जब काड़ा और धागा पहनने को लेकर स्कूल की सख्ती पर अभिभावकों, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), और रक्षा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा मचाया। अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन पर बच्चों के साथ मारपीट और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया, जबकि स्कूल ने इसे सुरक्षा का मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया। आखिरकार, सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ सुमन कुमार को मौके पर पहुंचकर इस “काड़ा-धागा ड्रामे” को शांत करना पड़ा। लेकिन सवाल यह है—क्या यह वाकई सुरक्षा का मामला था, या फिर धार्मिक संवेदनाओं को तूल देकर सियासत की रोटियां सेंकने की कोशिश?

मुंगेर के टाउन हाई स्कूल में पिछले तीन दिनों से बच्चों को हाथ में काड़ा या धागा पहनकर स्कूल न आने की हिदायत दी जा रही थी। स्कूल प्रबंधन का तर्क था कि काड़ा पहनने से बच्चों के बीच झगड़े के दौरान चोट लगने का खतरा रहता है। लेकिन यह “सुरक्षा का तर्क” अभिभावकों और कुछ संगठनों को रास नहीं आया। गुरुवार को दर्जनों अभिभावक, बजरंग दल, विहिप, और रक्षा वाहिनी के कार्यकर्ता स्कूल पहुंचे और हंगामा शुरू कर दिया। आरोप था कि काड़ा या धागा पहनने पर बच्चों को न सिर्फ डांटा जा रहा है, बल्कि उनके साथ मारपीट भी की जा रही है। 

हंगामा इतना बढ़ गया कि स्कूल के गेट पर नारेबाजी और धरने का माहौल बन गया। अभिभावकों ने शिक्षकों पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इल्जाम लगाया, क्योंकि काड़ा और धागा हिंदू धर्म में पवित्र और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। एक अभिभावक ने तंज कसते हुए कहा, “क्या काड़ा अब स्कूल में तलवार बन गया है, जो बच्चों को चोट पहुंचाएगा? अगर सुरक्षा की बात है, तो पहले स्कूल में गुंडागर्दी और बुलिंग रोकें!” 

स्कूल की प्रभारी प्राचार्य पूनम कुमारी ने हंगामे के बीच अभिभावकों को समझाने की कोशिश की। उनका कहना था कि काड़ा या धागा पहनने पर कोई धार्मिक रोक नहीं लगाई गई, बल्कि यह फैसला बच्चों की सुरक्षा के लिए लिया गया। स्कूल प्रबंधन के मुताबिक, कुछ बच्चों के बीच झगड़े में काड़े से चोट लगने की आशंका को देखते हुए यह नियम बनाया गया। पिछले तीन दिनों से बच्चों को हिदायत दी जा रही थी, लेकिन कुछ बच्चे फिर भी काड़ा पहनकर आ रहे थे। 

हंगामे के दौरान प्रभारी प्राचार्य ने बताया कि पीटी के समय काड़ा और धागा पहने बच्चों को अलग पंक्ति में खड़ा कर “अंतिम चेतावनी” दी गई थी। लेकिन यह “चेतावनी” ही आग में घी का काम कर गई। अभिभावकों और संगठनों ने इसे धार्मिक भेदभाव और बच्चों के साथ बदसलूकी का मामला बना दिया। प्राचार्य ने तंज भरे लहजे में कहा, “हम बच्चों को पढ़ाने आए हैं, न कि सियासत करने। लेकिन हर बात को अब धर्म से जोड़ दिया जाता है।”

बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को तूल देते हुए स्कूल प्रबंधन को “हिंदू विरोधी” करार दे डाला। एक कार्यकर्ता ने गुस्से में कहा, “काड़ा हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इसे पहनने से रोकना हिंदू धर्म का अपमान है। क्या स्कूल अब तालिबानी फरमान जारी करेगा?” कार्यकर्ताओं ने स्कूल के खिलाफ नारेबाजी की और शिक्षिका के निलंबन की मांग उठाई। 

हंगामे की सूचना मिलते ही सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ सुमन कुमार स्कूल पहुंचे और मामले की जांच शुरू की। उन्होंने अभिभावकों, शिक्षकों, और बच्चों से बातचीत की। डीपीओ ने दोनों पक्षों को शांत करते हुए कहा, “यह कोई धार्मिक विवाद नहीं है। स्कूल का मकसद बच्चों की सुरक्षा है, लेकिन अगर नियम लागू करने में गलती हुई है, तो उसकी जांच होगी। 

डीपीओ ने शिक्षिका और प्रभारी प्राचार्य से लिखित स्पष्टीकरण मांगा और अभिभावकों को भरोसा दिलाया कि मामले को निष्पक्ष तरीके से सुलझाया जाएगा। लेकिन स्थानीय लोग इस “जांच” को लेकर तंज कस रहे हैं। एक अभिभावक ने कहा, “डीपीओ साहब आए, सुन लिया, चले गए। अब फाइलों में जांच दब जाएगी, और स्कूल फिर वही करेगा।

यह पूरा प्रकरण कई सवाल खड़े करता है। स्कूल का तर्क है कि काड़ा पहनने से झगड़े में चोट लग सकती है। लेकिन क्या यह नियम सिर्फ काड़े तक सीमित है, या अन्य गहनों और सामानों पर भी लागू होता है? अगर स्कूल को बच्चों की सुरक्षा की इतनी चिंता है, तो क्या बुलिंग, झगड़े, और अनुशासनहीनता पर भी कोई सख्त नीति बनाई गई है? वहीं, अभिभावकों और संगठनों का गुस्सा भी समझा जा सकता है। काड़ा और धागा न सिर्फ धार्मिक प्रतीक हैं, बल्कि कई परिवारों के लिए सांस्कृतिक गौरव का हिस्सा भी हैं। इन्हें बैन करना, भले ही सुरक्षा के नाम पर, गलत संदेश दे सकता है। लेकिन क्या इस मुद्दे को तूल देकर सियासी रोटियां सेंकने की कोशिश नहीं की जा रही? 

रिपोर्ट- मो. इम्तयाज खान