मृत व्यक्ति भी बन सकते हैं माता-पिता? हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए क्या है पूरा मामला

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दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक और संवेदनशील फैसले में सर गंगाराम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह एक मृत व्यक्ति के संरक्षित वीर्य को उसके माता-पिता को सौंपे। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भारत में मृत्यु के बाद प्रजनन (पोस्ट-मॉर्टम रिप्रोडक्शन) से जुड़े मुद्दों पर भी नई बहस शुरू हो गई है।


क्या है पूरा मामला?

इस मामले की जड़ें एक युवक से जुड़ी हैं, जिसने कैंसर के इलाज से पहले अपने वीर्य को संरक्षित करवाया था। दुर्भाग्यवश, उसकी मृत्यु हो गई और उसके माता-पिता ने उसके वीर्य का नमूना मांगा ताकि वे सरोगेसी के माध्यम से अपने बेटे का वंश आगे बढ़ा सकें। हालांकि, सर गंगाराम अस्पताल ने अदालत के स्पष्ट आदेश के बिना वीर्य सौंपने से इनकार कर दिया, जिससे यह मामला कानूनी मोड़ पर आ गया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस संवेदनशील मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि यदि मृत व्यक्ति ने अपने वीर्य या अंडाणु को संरक्षित करवाने के लिए पूर्व में सहमति दी है, तो उसकी मृत्यु के बाद सरोगेसी या अन्य सहायक प्रजनन तकनीकों के माध्यम से बच्चे का जन्म कराने पर कोई कानूनी अड़चन नहीं होनी चाहिए। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को मृत्यु के बाद प्रजनन से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए आवश्यक कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश तैयार करने पर विचार करना चाहिए।

इस फैसले के दूरगामी प्रभाव हैं, जो भारतीय समाज और कानून दोनों को नई दिशा में ले जा सकते हैं। यह फैसला मृत्यु के बाद प्रजनन से जुड़े कानूनी पहलुओं पर एक नया रास्ता खोलता है, जो अब तक अस्पष्ट था। यह निर्णय व्यक्तिगत अधिकारों और स्वायत्तता को मजबूती प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति के निर्णयों का सम्मान उसकी मृत्यु के बाद भी किया जा सके। मृत व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को भावनात्मक रूप से जुड़े रहने का एक नया अवसर मिलता है, जिससे वे अपने प्रियजन की याद को जीवित रख सकते हैं।


नैतिक और कानूनी सवाल

हालांकि यह फैसला व्यक्तिगत अधिकारों को मजबूत करता है, लेकिन यह कुछ नैतिक और कानूनी सवाल भी खड़े करता है। मृत्यु के बाद प्रजनन की नैतिकता, बच्चों के अधिकार, और परिवारिक संरचना से जुड़े सवाल अब कानूनी और नैतिक चर्चा का हिस्सा बन सकते हैं। क्या एक मृत व्यक्ति के वीर्य से पैदा हुए बच्चे के अधिकार, जिम्मेदारियां और सामाजिक पहचान को कैसे परिभाषित किया जाएगा, यह सवाल भी महत्वपूर्ण बन जाता है। इस फैसले का प्रभाव भविष्य में देश के अन्य हिस्सों में भी दिखाई दे सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार मृत्यु के बाद प्रजनन से जुड़े मुद्दों पर कोई कानून बनाती है। सहायक प्रजनन तकनीक से जुड़े कानूनी ढांचे में यह फैसला निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जिससे आने वाले समय में भारत में पोस्ट-मॉर्टम रिप्रोडक्शन के कानून और नैतिकता को लेकर गंभीर चर्चा होगी

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