Bihar Land Survey: बहन और बुआ का नाम वंशावली में देना क्यों जरूरी, पढ़िए लेटेस्ट अपडेट

Bihar Land Survey: बहन और बुआ का नाम वंशावली में देना क्यों जरूरी, पढ़िए लेटेस्ट अपडेट

Bihar Land Survey latest update  बिहार में भूमि सर्वे का काम  बड़ी तेजी से चल रहा है. इसको लेकर लोगों को  कई प्रकार की परेशानी भी हो रही है. इसके निपटारा के लिए सरकार के अधिकारी प्रतिदिन  बैठक कर रहे हैं,. गांव में सभा कर उनकी समस्या का निराकरण कर रहे हैं.  इसी क्रम में जो एक सवाल सबसे ज्यादा लोगों की ओर से ग्राम सभा में अधिकारियों के सामने आ रहे हैं वह है वंशावली को लेकर. इसको कैसे बनायें. इसमें सिर्फ भाईयों का नाम होगा या फिर  बहन और बुआ का नाम भी होगा. इसका जवाब देते हुए पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील छाया मिश्रा  कहती हैं कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार पिता की संपत्ति में बेटी को भी बेटे के समान अधिकार है. इसलिए   वंशावली में बहन और बुआ का नाम देना जरुरी है.


आपसी सहमति से बनी वंशावली भी मान्य

बंदोबस्त पदाधिकारी का कहना है कि अगर रैयत की बहनें हैं, तो उनका नाम वंशावली में शामिल करना अनिवार्य है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि  पैतृक जमीन के सर्वे के लिए वंशावली का पंजीकरण जरूरी नहीं है. पंचनामा या आपसी सहमति से बनी वंशावली भी मान्य होगी. इसको प्रपत्र 3 (1) में रैयतों को अपनी स्व-घोषित वंशावली देना होगा. जबकि प्रपत्र 2 में रैयतों को अपनी जमीन का खाता, खेसरा, रकबा, और चारों तरफ की सीमाओं की जानकारी देनी होगी.

 

 भूमि सर्वेक्षण के मुख्य रूप से छह चरण तय किये गये हैं:
1. किस्तवार (नक्शा या मानचित्र बनाने) से पहले का काम : भूमि सर्वेक्षण से संबंधित अधिसूचना और घोषणा. रैयत द्वारा अपनी भूमि का ब्यौरा प्रपत्र-2 में सौंपना. अमीन द्वारा पूर्व के खतियान का सार तैयार करना.
2. किस्तवार : यह प्रक्रिया मुख्यतः नक्शा या मानचित्र निर्माण और इससे संबंधित कार्यों से जुड़ी है.
3. खानापुरी : नक्शा या मानचित्र के खेसरों के अनुसार उनके स्वामित्व का निर्धारण और सत्यापन.
4. सुनवाई : किस्तवार और खानापुरी के दौरान तैयार मानचित्र और अधिकार अभिलेख के प्रारूप से संबंधित रैयतों की आपत्ति या दावों की सुनवाई और उनका निष्पादन.
5. अंतिम अधिकार अभिलेख का प्रकाशन और लगान निर्धारण: किस्तवार, खानापुरी और सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अंतिम अधिकार अभिलेख का प्रकाशन और रैयतों के साथ लगान की बंदोबस्ती
6. अंतिम अधिकार अभिलेख के बाद की सुनवाई : अंतिम अधिकार अभिलेख के प्रकाशन के बाद आयी आपत्तियों की सक्षम प्राधिकार द्वारा सुनवाई और निष्पादन, साथ ही विभिन्न स्तरों पर उनको उपलब्ध कराया जाना. 



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