राममय माहौल और रालोद के आने से क्या यूपी में मजबूत हुई है भाजपा? कांग्रेस-सपा की हो गई यारी, कहीं बीजेपी के लिए पड़ न जाए भारी
डेस्क: वाराणसी की हर गली उस वक्त मोदी मोदी के नारों से गूंज उठी जब पीएम संत रविदास के आश्रम पर पहुंचे. वाराणसी के सांसद पीएम मोदी ने शुक्रवार को काशी में सौगातों की झड़ी लगा दी. हालाकि अयोध्या में राम लला के प्राण प्रतिष्ठा के बाद पूरे देश में माहौल राममय हुआ है इसमें संदेह नहीं है. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एड़ी चोटी का दम लगा दिया है, भाजपा का मानना है कि पिछले आम चुनाव की तुलना में पार्टी और भी अच्छा प्रदर्शन करेंगी. जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) से गठबंधन के बाद भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड में भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है या नहीं ये तो चुनाव के बाद हीं पता चलेगा.
मोदी मैजिक के सामने नतमस्तक
कुछ महीने पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला था. हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत से विरोधी तो यहां तक कहने लगे थे कि अब मोदी मैजिक के दिन लद गए.चुनाव परिणाम के बाद पता चला कि छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मिली करारी हार का सामना करना पड़ा. विरोधी भी मोदी मैजिक के सामने नतमस्तक होते दिखे.लेकिन इस बार समजवादी और कांग्रेस साथ चुनाव लड़कर भाजपा की मुश्कील बढ़ा सकती है. उत्तर प्रदेश में उहापोह के बाद आखिरकार इंडी गठबंधन के बैनर तले सपा और कांग्रेस के बीच समझौता हो गया है. कांग्रेस 17 सीटों पर लड़ेगी, बाकी की 63 सीटों पर सपा और गठबंधन में शामिल होने वाले अन्य दल ताल ठोंकेंगे. उत्तर प्रदेश में यह दूसरी बार होगा, जब कांग्रेस और सपा एक साथ मिलकर किसी चुनाव में उतरेंगे.साल 2017 का विधानसभा चुनाव भी दोनों पार्टियां साथ मिलकर लड़ी थीं, लेकिन कोई चमत्कार दिखाने में नाकाम रही थीं. उत्तर प्रदेश के वर्तमान समीकरण को समझें तो इस बार भी इस गठबंधन द्वारा बहुत बड़ा चमत्कार करने की संभावना नहीं है, लेकिन यह तय है कि इंडी एलायंस कुछ सीटों पर एनडीए एलायंस को कड़ी टक्कर जरूर देगा.
कांग्रेस का सिमटता जनाधार!
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास इतना जनाधार नहीं बचा है कि वह सपा के साथ मिलकर कोई बड़ा उलटफेर कर सके. कांग्रेस का जनाधार उत्तर प्रदेश में लगातार सिमटता जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 67 सीटों पर चुनाव लड़कर 7.53 फीसदी वोटों के साथ केवल रायबरेली और अमेठी सीट जीत पायी थी, जिस पर क्रमश: सोनिया गांधी और राहुल गांधी सांसद बने थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा साथ मिलकर चुनाव लड़े और केवल 15 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाये. बसपा को 10 और सपा को 5 सीट मिली. वोट प्रतिशत की बात करें तो 2019 के चुनाव में भाजपा 49.97 फीसदी वोट के साथ 62 सीटें जीतने में सफल रही. भाजपा की सहयोगी अपना दल को भी 2 सीटें मिलीं. सपा और बसपा गठबंधन को मात्र 37.5 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा।.सपा को 18.1 फीसदी वोट शेयर के साथ 5 सीटें मिलीं तो बसपा ने 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 सीटों पर कब्जा जमाया.
मुसलमानों के सामने क्या हैं विकल्प
मुसलमानों के सामने सपा और कांग्रेस के रूप में दो विकल्प नहीं बल्कि एक विकल्प है, इसलिए यह तय है कि मुस्लिम बहुल सभी सीटों पर इंडिया एलायंस भाजपा को कड़ी टक्कर देगा. दूसरी तरफ, भाजपा को जाट बहुल सीटों पर इससे फायदा मिलेगा. भाजपा के खिलाफ कोई एंटी इनकंबैंसी नहीं है, लेकिन कई सीटों पर स्थानीय सांसदों से जनता नाराज है. ऐसी सीटों पर अगर प्रत्याशी नहीं बदले गये तो निश्चित रूप से इसका फायदा कांग्रेस और सपा गठबंधन को मिल सकता है.
बिहार, बंगाल, पंजाब में इंडी गठबंधन में फूट
बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने से राजद को झटका लगा है.तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अकेले ही ताल ठोकने के मूड में हैं. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के मूड से यही लगता है कि दिल्ली में भले हीं समझौता हो गया हो लेकिन पंजाब में वह अकेले ही लड़ेंगे तो गुजरात, हरियाणा और चंडीगढ़ की लोकसभा सीटों पर भी आम आदमी पार्टी ने ताल ठोक दी है.
महाराष्ट्र में कांग्रेस को झटका
महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण ने कांग्रेस को झटका दे दिया है. इससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. अशोक चव्हाण की पकड़ और रसूख से कांग्रेस अनभिज्ञ नहीं है. वहीं उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कांग्रेस के कई और नेताओं के भाजपा में शामिल होने का दावा किया है. कथित तौर पर महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और पंजाब में अकाली दल के साथ भी बात चल रही है. एनडीए लगातार अपने पुराने साथियों को जोड़कर अपने कुनबे का विस्तार कर रही है. वहीं इंडी गठबंधन भी सीटों के तालमेल करने में जुटा है.
दक्षिण के राज्यों पर भाजपा की नजर
भाजपा दक्षिण को साधने की जुगत में लगी है. वहीं कांग्रेस की सारी उम्मीदें दक्षिण भारत के राज्यों से ही है तो भाजपा दक्षिण के इस किले में सेंध लगाने की लंबे समय से तैयारी कर रही है.यूं भी विधानसभा चुनावों के मुकाबले लोकसभा चुनावों में मोदी मैजिक कहीं अधिक असरदार रहता है.
क्या हिन्दी पट्टी में भाजपा को चुनौती दे पाएगी कांग्रेस?
भाजपा पांचों साल चुनाव मोड में रहती है. दूसरे दल चुनाव आने का इंतजार करते हैं तब तक भाजपा के कार्यकर्ताओं को पार्टी इतने कार्यक्रम दे देती है कि वह लगातार जनता के बीच में बने रहते हैं.सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हिन्दी पट्टी में भाजपा को चुनौती दे पाएगी कांग्रेस?