बिहार में कुशवाहा पॉलिटिक्स कितना सफल, लोकसभा चुनाव में उतारे 11 उम्मीदवार, अब एनडीए- इंडिया दोनों टेंशन में

पटना. जाति की राजनीति के लिए बदनाम बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 में कुशवाहा पॉलिटिक्स की बिसात बिछाई गई. चाहे एनडीए और या महागठबंधन दोनों ओर से कुशवाहा जाति पर जमकर मेहरबानी दिखाई गई. जहां महागठबंधन ने कुल 7 सीटों पर कुशवाहा जाति के उम्मीदवार उतारे, वहीं एनडीए की ओर से चार कुशवाहा उम्मीदवार रहे. राजद और जदयू ने सर्वाधिक तीन-तीन कुशवाहा उतारे तो वामदलों ने दो, कांग्रेस और वीआईपी ने एक-एक और आरएलएम से एक कुशवाहा उम्मीदवार रहे. भाजपा ने एक भी कुशवाहा को उम्मीदवार नहीं बनाया लेकिन बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी इसी जाति से हैं. साथ ही पार्टी ने उन्हें उप मुख्यमंत्री भी बना रखा है. ऐसे में कुशवाहा पॉलिटिक्स के लिए लोकसभा चुनाव परिणाम बेहद अहम है. 

महागठबंधन की ओर से उतारे गये कुशवाहा उम्मीदवारों में राजद ने अभय कुमार सिंह को औरंगाबाद, श्रवण कुमार कुशवाहा को नवादा और आलोक कुमार मेहता    को उजियारपुर से टिकट दिया. वीआईपी ने राजेश कुशवाहा    को मोतिहारी से वहीं संजय कुमार CPIM से खगड़िया और राजाराम सिंह कुशवाहा CPIMLसे काराकाट से प्रत्याशी रहे. अंशुल अभिजीत को कांग्रेस ने पटना साहिब से उम्मीदवार बनाया. दूसरी ओर NDA की ओर से कुशवाहा कैंडिडेट में जदयू ने सुनील कुमार को वाल्मिकीनगर, संतोष कुमार को पूर्णिया और विजया लक्ष्मी को सीवान से जबकि उपेंद्र कुशवाहा RLM की ओर से काराकाट से उम्मीदवार हैं. 

एनडीए के कुशवाहा फंसे : ऐसे में चुनाव परिणाम आने के पहले अब एनडीए हो या महागठबंधन दोनों ओर टेंशन कुशवाहा पॉलिटिक्स की बिसात से ही है. विशेषकर कई ऐसी सीटें हैं जहां एग्जिट पोल में कुशवाहा उम्मीदवारों के कड़े मुकाबले में फंसने का अनुमान लगाया जा रहा है. एनडीए उम्मीदवारों में सीवान में विजया लक्ष्मी और पूर्णिया में संतोष कुशवाहा को त्रिकोणीय मुकाबले का सामना करना पड़ा है. इसी तरह सुनील कुमार को वाल्मिकीनगर में राजद के दीपक यादव और दो बार के सांसद निर्दलीय हीराबाई से कड़ा मुकाबला करना पड़ा है. यही हाल काराकाट में उपेन्द्र कुशवाहा का है जहां उनके स्वजातीय राजाराज कुशवाहा CPIML से तो निर्दलीय पवन सिंह ने चिंता बढाई है. 

महागठबंधन को बड़ी चुनौती :   महागठबंधन की ओर से ओबीसी जातियों में कुशवाहा पर दिल खोलकर दांव खेला गया. ऐसे में राजद के अभय कुमार सिंह को औरंगाबाद, श्रवण कुमार कुशवाहा को नवादा और आलोक कुमार मेहता को उजियारपुर ने भाजपा से बेहद कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा है. भाजपा के दिग्गज नेता राधा मोहन सिंह के मुकाबले मोतिहारी में उतरे वीआईपी के राजेश कुशवाहा को भी इन्हीं चुनौतियों को झेलना है. पटना साहिब में भाजपा के मजबूत गढ़ में अंशुल अभिजीत को कांग्रेस ने उतारा लेकिन उन्हें लेकर पार्टी की चिंताएं बढ़ी है. ऐसे में अगर इन सीटों पर कुशवाहा उम्मीदवारों की हार होती है तो यह कुशवाहा पॉलिटिक्स का उल्टा दांव हो जायेगा. 

नीतीश-सम्राट की प्रतिष्ठा फंसी :  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लव-कुश पॉलिटिक्स के लिए जाने जाते हैं. लव यानी कुर्मी और कुश यानी कुशवाहा को पिछले कई चुनावों में सीएम नीतीश ने अपने पक्ष में साधने में सफलता पाई. इस बार महागठबंधन से सात उम्मीदवार कुशवाहा जाति से उतरे तो चुनाव परिणाम साबित करेगा कि नीतीश कुमार के पक्ष में कुशवाहा है या नहीं. वहीं सीएम नीतीश और भाजपा के सम्राट चौधरी को यह साबित करना है कि कुशवाहा वोटर आज भी उनके साथ हैं. इसमें सीवान, पूर्णिया, काराकाट और वाल्मिकीनगर में एनडीए के कुशवाहा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने की बड़ी चुनौती है. 

कुशवाहा जाति क्यों महत्वपूर्ण : बिहार में जाति गणना रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुशवाहा (कोइरी) 4.2120 प्रतिशत है जिनकी संख्या 55 लाख 06 हजार 113 है. ओबीसी में यादवों के बाद दूसरे नंबर पर कुशवाहा जाति की आबादी है. यादव- 14.2666 प्रतिशत हैं जिनकी आबादी 1 करोड 86 लाख 50 हजार 119 है. ऐसे में तमाम राजनीतिक दल ओबीसी की दूसरी सबसे बड़ी आबादी को अपने पक्ष में साधने की कोशिश किए हैं. लेकिन यह दांव कितना सफल होता है यह 4 जून को पता लगेगा और इसका बड़ा असर अगले विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा.