तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से शिकायत... सीएम नीतीश पर भाजपा की मेहरबानी अब लिखेगी नई सियासी कहानी?

पटना. 'नीतीश बाबू तेल-पानी एक नहीं हो सकता'. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब बिहार के झंझारपुर में ये बातें कहीं तो सियासी पंडित अब इसके कई निहितार्थ निकाल रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के बीच पिछले तीन दशक में ऐसे रिश्ते रहे हैं कि दोनों को एक दूसरे से मोहब्बत भी खूब रही है और शिकायत भी सबसे ज्यादा रही है. ऐसे में जब अगस्त 2022 में सीएम नीतीश ने एनडीए से नाता तोड़कर बिहार में राजद-कांग्रेस संग महागठबंधन की सरकार बनाई तब से अब तक सियासी कयासबाजी जारी है कि आखिर यह रिश्ता कब तक चलेगा. 

नीतीश हैं जीत निश्चित : ऐसे में अमित शाह ने जब 'नीतीश बाबू तेल-पानी एक नहीं हो सकता' कहा तो एक बार से राजनीतिक पंडितों के काम खड़े हो गए. कहीं यह नीतीश कुमार को संकेत तो नहीं कि आपका एनडीए से ज्यादा उचित नहीं रहा. दरअसल, भाजपा भले ही नीतीश कुमार को लेकर हमलावर हो लेकिन बिहार में पिछले कुछ चुनावों से यह तय हुआ है कि नीतीश हैं तो जीत की निश्चिंतता है. वर्ष 2005 के बाद से बिहार में जितने भी चुनाव हुए हैं उसमें नीतीश जिस गठबंधन में रहे उसने बिहार से सबसे ज्यादा सीटें जीती. यह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला जब एनडीए ने 40 में 39 लोकसभा की सीटें बिहार में जीत ली. 

नीतीश बिना बिहार जीतना मुश्किल : ऐसे में नीतीश कुमार का एनडीए से अलग हो जाने के बाद अब विपक्ष को जोड़ने की उनकी पहल ‘इंडिया’ के रूप में साकार हो चुकी है. भले भाजपा कहे कि वह इंडिया से चिंतित नहीं है लेकिन राजनीतिक जानकर मानते हैं कि भाजपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती तो जरुर है. विशेषकर बिहार के संदर्भ में देखें तो एनडीए के लिए बिना नीतीश को साथ लिए फिर से 39 सीटों पर जीत हासिल करना मुश्किल दिखता है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया बनने से एनडीए को नुकसान से इनकार नहीं किया जा सकता है. 

भाजपा ने दिखाई मेहरबानी : माना जा रहा है कि यही कारण है कि अमित शाह ने 'नीतीश बाबू तेल-पानी एक नहीं हो सकता' कहकर उन्हें एक महत्वपूर्ण संदेश दे दिया है. पिछले कुछ दिनों में इसके अतिरिक्त भी कई अन्य प्रकार के संदेश भाजपा और पीएम मोदी की ओर से नीतीश के लिए देखने को मिले. जी20 की बैठक में जब नीतीश शामिल हुए तो वहां पीएम मोदी से हुई मुलाकात की तस्वीर सुर्खियां बनी. पीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया पर सबसे पहले जिस सीएम से मुलाकात की तस्वीर पोस्ट की वह नीतीश कुमार रहे. इसे एक बेहद खास संदेश के तौर पर देखा गया. इतना ही नहीं उस मुलाकात के तुरंत बाद केंद्र ने बिहार के लिए फंड भी जारी किया. अब अमित शाह अपनी जनसभा से नीतीश पर कम हमलावर दिखे. 

बीजेपी को दोहरा फायदा : सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा जानती है कि अगर वह नीतीश कुमार को इंडिया से अलग करने से सफल हो जाए तो उसे दोहरा फायदा होगा. एक ओर बिहार में एनडीए को बड़े स्तर पर जीत की गारंटी मिल सकती है. दूसरी ओर नीतीश के अलग होते ही इंडिया भी टूट सकता है यह भाजपा के लिए सबसे मुफीद रहेगा. माना जा रहा है कि यही वजह है कि ‘तुम्हीं से मोहब्बत, तुम्हीं से शिकायत’ की तर्ज पर इन दिनों भाजपा की ओर से फिर से नीतीश के लिए सहानुभूति दिखाई गई है. 

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