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Dissatisfaction with Hindi - हिन्दी का विरोध कर रही तमिलनाडू सरकार ने बजट से '₹' के सिंबल को हटाया, उनकी ही पार्टी के विधायक के बेटे ने किया था तैयार

Dissatisfaction with Hindi - हिन्दी भाषा का विरोध कर रही स्टालिन सरकार ने अब रुपए के सिंबल ₹ को भी रिप्लेस कर दिया है। उसकी जगह सरकार ने अपने बजट के लिए 'ரூ' सिंबल जारी किया है। जिसका इस्तेमाल सरकारी कार्य में किया जाएगा।

Dissatisfaction with Hindi - हिन्दी का विरोध कर रही तमिलनाडू सरकार ने बजट से '₹' के सिंबल को हटाया, उनकी ही पार्टी के विधायक के बेटे ने किया था तैयार

PATNA - लंबे समय से हिन्दी भाषा का विरोध कर रही तमिलनाडू की स्टालिन सरकार ने अब बड़ा फैसला करते हुए बजट से  '₹' का सिंबल हटा दिया है। मतलब अब तमिलनाडू सरकार  '₹' का सिंबल का इस्तेमाल नहीं करेगी। स्टालिन सरकार ने इसकी जगह  'ரூ' सिंबल जारी किया है। जिसका इस्तेमाल सरकारी कार्य में किया जाएगा। तमिलनाडु सरकार का ये फैसला ऐसे समय आया है, जब पहले से ही तमिलनाडु में हिंदी के विरोध को लेकर सियासी जंग छिड़ी हुई है। स्टालिन सरकार लगातार केंद्र सरकार पर हिन्दी को जबरन राज्यों में थोपने का आरोप लगाया था।

बता दें कि देशभर में ₹ का सिंबल बजट का आधिकारिक प्रतीक है। देश में जबसे ₹ का इस्तेमाल रुपए के सिंबल के रूप में किया जा रहा है, तबसे यह पहली बार है जब किसी राज्य ने इसमें बदलाव किया है। ₹ के सिंबल को जिस ரூ सिंबल से रिप्लेस किया गया है, वह तमिल लिपि का अक्षर 'रु' है

उनकी ही पार्टी के विधायक के बेटे ने बनाया था ₹ का डिजाइन

बता दें कि देश में रुपए (₹) का जो सिंबल है, उसका डिजाइन उदय कुमार धर्मलिंगम ने बनाया था, जो कि पेशे से एक शिक्षाविद और डिजाइनर हैं. उनका डिजाइन पांच शॉर्ट लिस्टेड सिंबल में से चुना गया था. धर्मलिंगम के मुताबिक उनका डिजाइन भारतीय तिरंगे पर आधारित है। यहां हैरान करने वाली बात यह है कि उदय कुमार धर्मलिंगम तमिलनाडु विधानसभा में DMK यानी एमके स्टालिन की ही पार्टी से विधायक रह चुके एन. धर्मलिंगम के बेटे हैं. उन्होंने 2010 में इस डिजाइन को बनाया था, जिसे आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने अपना लिया था. उदय कुमार धर्मलिंगम तमिलनाडु के कल्लाकुरिची के रहने वाले हैं

हिन्दी पर लगे हैं यह आरोप

एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा था,'अखंड हिंदी पहचान की कोशिश के कारण प्राचीन भाषाएं खत्म हो रही हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश कभी भी हिंदी के इलाके नहीं रहे. लेकिन अब उनकी असली भाषा भूतपूर्व की प्रतीक चिन्ह बनकर रह गई हैं।'

 

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