Bihar News: 3 पीढ़ी और 55 साल के कानूनी लड़ाई के बाद बिहार में आया हैरान करने वाला फैसला, करोड़ों की संपत्ति भी हुई स्वाहा

Bihar News: बिहार में एक ऐसा जमीनी विवाद का मामला था जिसमें पीड़ित को 55 साल के बाद इंसाफ मिला। जमीनी विवाद की लड़ाई 1971 में शुरु हुई थी जो 3 पीढ़ी से चली आ रही थी।

55 साल की कानूनी लड़ाई
55 साल की कानूनी लड़ाई- फोटो : social media

Bihar News:  बेगूसराय जिले के चेड़िया बरियारपुर थाना क्षेत्र में 55 साल पुराने ज़मीनी विवाद का आखिरकार 24 मई को पटाक्षेप हो गया। इस लंबे कानूनी संघर्ष में न्याय पाने वाले जगदीश यादव के परिवार की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े जब कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। यह मामला लगभग पांच दशक पहले शुरू हुआ था। जिसमें वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों ने अपनी पूरी ज़िंदगी कोर्ट की तारीखों में बिता दी।

1971 में शुरु हुआ विवाद 

पूरा मामला थाना क्षेत्र के बसही गांव का है। जहां रिश्तेदारी में जुड़े जगदीश यादव और जड्डू यादव के बीच 10 बीघा ज़मीन को लेकर विवाद चल रहा था। इस विवाद में दोनों पक्षों ने पांच-पांच बीघा जमीन बेच दी, ताकि कोर्ट की लड़ाई को जारी रखा जा सके। मामला 1971 में शुरू हुआ था। जब जगदीश यादव की नौ धुर ज़मीन पर एक झोपड़ी बनाई जा रही थी। इसका विरोध करते हुए उन्होंने न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

9 धुर के लिए बिका 10 बीघा जमीन 

जानकारी के अनुसार, जगदीश यादव के नाना की कोई संतान नहीं थी। ऐसे में संपत्ति उनके नाती को मिलनी थी। लेकिन जड्डू यादव ने इसका विरोध करते हुए जगदीश को ज़मीन पर कब्जा नहीं करने दिया। मामला पहले अनुमंडलीय अदालत और बाद में टाइटल सूट में चला गया। 1979 में एक बार कोर्ट ने जगदीश यादव के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन प्रतिवादी ने उस फैसले को चुनौती दी और मामला सालों तक चलता रहा। इस दौरान वादी-प्रतिवादी दोनों पक्षों के बुजुर्गों का निधन हो गया, लेकिन उनके वंशजों ने यह लड़ाई जारी रखी। इस कानूनी लड़ाई में कई वकील और न्यायाधीश बदले, लेकिन इंसाफ की आस नहीं टूटी।

55 साल बाद मिला इंसाफ 

अंततः 24 मई 2025 को कोर्ट ने फैसला सुनाया जिसमें जमीन का हक जगदीश यादव के परिवार को मिला। कोर्ट का निर्णय सुनते ही पीड़ित परिवार भावुक हो उठा। जगदीश यादव ने कहा कि, "हमारे पूर्वजों ने जो लड़ाई शुरू की थी, उसमें आज हमें न्याय मिला है।" हालांकि इस फैसले से एक ओर जहां राहत मिली है। वहीं दूसरी ओर पीड़ित पक्ष का कहना है कि न्याय की कीमत उन्होंने अपनी कीमती जमीन बेचकर चुकाई है। ग्रामीणों का कहना है कि इतने वर्षों की देरी से न केवल न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं, बल्कि लोगों की संपत्ति और जीवन भी इसकी भेंट चढ़ जाते हैं।