Bihar News : एवरेस्ट बेस कैंप फतह कर कहलगांव के रितेश ने रचा इतिहास, अब वापसी के लिए कर रहे कड़ी मशक्कत, डीएम और सांसद से परिजनों ने लगाई गुहार

Bihar News : एवरेस्ट बेस कैंप फतह कर कहलगांव के रितेश ने रचा

BHAGALPUR : जिले के कहलगांव (पैटनपुरा) के रहने वाले 25 वर्षीय रितेश कुमार साह ने अपनी अटूट इच्छाशक्ति के दम पर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। रितेश ने मात्र 250 रुपये वाली जैकेट और बिना गियर वाली एक साधारण साइकिल के सहारे दिल्ली से एवरेस्ट बेस कैंप (5,364 मीटर) तक का सफर तय कर 3 दिसंबर को वहां तिरंगा लहराया। करीब 41 दिनों की इस चुनौतीपूर्ण यात्रा में उन्होंने 20 किलो की साइकिल और 25 किलो का बैग लेकर ऊबड़-खाबड़ रास्तों को पार किया। नेपाल सरकार ने भी उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया है, जो पूरे बिहार और देश के लिए गौरव की बात है।

संसाधनों के अभाव में घायल हुआ शरीर

रितेश की यह जीत जितनी शानदार है, उसका सफर उतना ही दर्दनाक रहा। कड़कड़ाती ठंड और उचित पर्वतारोहण उपकरणों की कमी के कारण उनके हाथ-पैर और पूरे शरीर में गंभीर छाले पड़ गए हैं। रितेश ने बताया कि रास्ते में 1300 किलोमीटर तक उन्हें साइकिल को अपने कंधे पर ढोना पड़ा। बेस कैंप पहुंचने से दो सप्ताह पहले ही उनके शरीर में सूजन आ गई थी, लेकिन अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रितेश ने दर्द को नजरअंदाज करते हुए चढ़ाई जारी रखी। वर्तमान में वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर महसूस कर रहे हैं और चलने में भी उन्हें कठिनाई हो रही है।

सरकार और प्रशासन की बेरुखी से परिवार चिंतित

ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद अब रितेश के सामने सकुशल घर वापसी की बड़ी चुनौती है। रितेश के पिता गोपी साह और बड़े भाई प्रिंस ने बताया कि उनके पास अब आर्थिक संसाधन पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं। बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित परिजनों ने 5 दिसंबर को ही भागलपुर के जिलाधिकारी डॉ. नवल किशोर चौधरी और स्थानीय सांसद अजय मंडल को आवेदन देकर मदद की गुहार लगाई थी। हालांकि, 9 दिन बीत जाने के बाद भी प्रशासन या किसी जनप्रतिनिधि की ओर से कोई सहायता या आश्वासन नहीं मिला है, जिससे परिवार की हताशा बढ़ गई है।

संघर्षपूर्ण वापसी, ट्यूशन पढ़ाकर जुटा रहे भोजन

सरकारी मदद न मिलने पर स्वाभिमानी रितेश ने अपने ही सीमित संसाधनों से वापस लौटना शुरू कर दिया है। रितेश के पिता ने भावुक होते हुए बताया कि उनका बेटा रास्ते में अन्य पर्वतारोहियों की मदद कर और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भोजन का प्रबंध कर रहा है। रितेश ने व्हाट्सएप कॉल पर बताया कि वह भविष्य की चिंता किए बिना वर्तमान में जी रहे हैं और धीरे-धीरे घर की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार को लगता है कि उन्होंने देश का मान बढ़ाया है, तो उन्हें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।

प्रेरणा और पर्यटन का उद्देश्य

रितेश की इस यात्रा का उद्देश्य केवल रिकॉर्ड बनाना नहीं, बल्कि क्षेत्रीय युवाओं को मोबाइल गेम्स की दुनिया से बाहर निकालकर साहसिक कार्यों के लिए प्रेरित करना भी है। वे अपने क्षेत्र में गंगा किनारे की पहाड़ियों में पर्यटन की संभावनाओं को विकसित होते देखना चाहते हैं। रितेश के भाई ने बताया कि दिल्ली में रहकर ट्यूशन पढ़ाकर जमा किए गए पैसों से रितेश ने साइकिल खरीदी थी और 23 अक्टूबर की रात को अपनी यात्रा शुरू की थी। आज पूरा कहलगांव अपने लाल की सुरक्षित वापसी की प्रतीक्षा कर रहा है।

अंजनी की रिपोर्ट