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bihar treasure - बिहार में इस शहर में पुरातत्व विभाग करेगा खजाने की खोज, खुदाई के लिए मांगी इजाजत, अंग्रेज अधिकारी ने भी किया था जिक्र

bihar treasure - बिहार में इतिहास में खो चुके एक प्राचीन शहर की तलाश के लिए पुरातत्व विभाग ने खुदाई के लिए अनुमति मांगी है। कुर्किहार नाम के इस गांव का जिक्र पहले भी किया गया था। जहां बौद्ध मठ होने की बात कही गई थी।

bihar treasure - बिहार में इस शहर में पुरातत्व विभाग करेगा खजाने की खोज, खुदाई के लिए मांगी इजाजत, अंग्रेज अधिकारी ने भी किया था जिक्र

N4N DESK - बिहार का इतिहास गौरवशाली रहा है। यहां पुरातत्व विभाग ने खुदाई के दौरान कई ऐतिहासिक चीजों की खोज की है। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की पटना सर्कल ने बौद्ध धर्म से जुड़े एक प्राचीन शहर की खोज करने की कोशिश में जुटी है। पुरातत्व विभाग  की यह खोज गया जिले में वजीरगंज से लगभग पांच किलोमीटर उतर पूर्व स्थित कुर्किहार गांव में होनी है। जहां खुदाई के लिए पुरातत्व सर्वेक्षण ने अनुमति मांगी है। 

क्या है कुर्किहार का इतिहास

एएसआई पटना सर्कल के अनुसार कुर्किहार में एक प्राचीन शहर और बौद्ध मठ का स्थल था। अंग्रेज के शासनकाल में एएसआई के पहले निदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1861-62 में और 1879-80 में कुर्किहार का दौरा किया था। उन्होंने वहां न केवल बड़ी और बौद्ध धर्म की कई छोटी मूर्तियों को देखा, बल्कि बड़ी संख्या में मन्नत स्तूप भी देखे थे। इससे पहले 1847 में एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् मार्खम किट्टो ने  कहा था कुर्किहार एक प्राचीन शहर और बौद्ध मठ या विहार है। 

विशाल टीले का रहस्य

ASI के अनुसार ‘इस स्थल में ईंटों का एक विशाल टीला और एक बड़े मठ के अवशेष हैं। बौद्ध अवशेषों का मुख्य टीला लगभग 25 फीट ऊंचा है। जिनमे अन्य पुरावशेषों और सांस्कृतिक सामग्रियों के साथ शिलालेख भी शामिल हैं। ' 1930 में यहां एक टीले से लगभग 226 कांस्य मूर्तियों का एक समूह गलती से खोजा गया था। कांस्य में ढली अधिकांश मूर्तियों को पटना संग्रहालय और विभिन्न देशों के कई अन्य संग्रहालयों के लिए अधिग्रहित किया गया था। 

कुर्किहार में बहुत बड़ी वास्तुकला संपदा है, जिसके लिए उचित उत्खनन की आवश्यकता है। पाल काल की कई पत्थर की मूर्तियां भी मिली हैं।  कुर्किहार शिलालेख पाल वंश के शासकों के विभिन्न कालखंडों - देवपाल, राजयपाल, महिपाल और विग्रहपाल तृतीय - का उल्लेख करते हैं, जो 9वीं शताब्दी से लेकर 1074 ई. तक के हैं। मठ का नाम अपनका था, जिसका उल्लेख कई शिलालेखों में मिलता है। 

अधीक्षण पुरातत्वविद् ने बताया कि यह मठ दक्षिण भारत के कांची के और अन्य अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के बीच बहुत लोकप्रिय था। जिसके बाद अब इस जगह के इतिहास को फिर से जानने के लिए  एक प्रस्ताव हाल ही में एएसआई (मुख्यालय) को भेजा गया है। जिसमें खुदाई के लिए अनुमति मांगी गई है।


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