Bihar News: 'मेरे पिता ने दिन-रात मेहनत की'....पान बेचने वाले की बेटी बनी बड़ी अधिकारी, सरकारी स्कूल से यूपीएससी तक का सफर, बिहार के इस लाडली का कारनामा जान कर हैरान हो जाएंगे आप

Bihar News: हालात कितने ही कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो पान की दुकान से भी सपनों की मंज़िल तय की जा सकती है।...

Betel seller s daughter becomes a big officer
पान बेचने वाले की बेटी बनी बड़ी अधिकारी- फोटो : social Media

Bihar News: संघर्ष की आग में तपकर जब सपनों को दिशा मिलती है, तो कहानी केवल व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की प्रेरणा बन जाती है। बिहार के गया ज़िले के वजीरगंज प्रखंड के सुदूरवर्ती अमैठी गांव की बेटी श्वेता भगत ने ऐसी ही मिसाल पेश की है। साधारण आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाली श्वेता ने यूपीएससी परीक्षा पास कर गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा अधिकारी का पद हासिल किया है। उनकी पहली पोस्टिंग 2024 के अंतिम महीने में इंदौर में हुई।

श्वेता के पिता सुशील भगत गांव में खेती से घर का खर्च नहीं चला पा रहे थे। मजबूर होकर वे कोलकाता चले गए और वहाँ पान की दुकान शुरू की। मामूली आमदनी के बावजूद उन्होंने यह ठान लिया कि बेटी की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देंगे। किराए के मकान से शुरुआत हुई, फिर धीरे-धीरे परिवार ने छोटी-सी खोली ली। आर्थिक तंगी के बावजूद शिक्षा की लौ बुझने नहीं दी गई। श्वेता बताती हैं कि  मेरे पिता ने दिन-रात मेहनत की। पान की दुकान चलाकर उन्होंने हमें पढ़ाया। अगर उन्होंने हार मान ली होती, तो मैं आज यहाँ तक नहीं पहुँच पाती।

श्वेता की शुरुआती शिक्षा कोलकाता के सरकारी स्कूलों से हुई। पाँचवीं से 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने सरकारी विद्यालयों में की। इसके बाद कोलकाता यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ आर्ट्स (एम.ए.) की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के दौरान ही उन्हें राजभाषा और अनुवाद कार्य में गहरी रुचि पैदा हुई।

2023 में पहली बार उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और उसी प्रयास में सफलता प्राप्त कर ली। श्वेता अब गृह मंत्रालय के अधीन राजभाषा विभाग, इंदौर में कनिष्ठ अनुवाद अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।

श्वेता कहती हैं कि उनकी सफलता केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि पूरे मालाकार समाज और अमैठी गांव के लिए गर्व का विषय है। मैं ऐसे परिवार से आती हूँ जिसे सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर माना जाता है। लेकिन संघर्ष और मेहनत से यह साबित हो गया कि हालात चाहे जैसे हों, सपनों की उड़ान रोकी नहीं जा सकती।

वे बताती हैं कि कोलकाता में अनुवादकों के घर में रहने से उन्हें इस क्षेत्र की गहरी समझ और प्रेरणा मिली। इसी अनुभव ने उन्हें राजभाषा अधिकारी बनने का मार्ग दिखाया।अधिकारी बनने के बाद जब श्वेता पहली बार अपने गांव लौटीं, तो पूरा अमैठी गर्व से झूम उठा। ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया और बेटी की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को पूरे समाज की जीत बताया।

बहरहाल श्वेता की कहानी उस सच्चाई का प्रतीक है कि हालात कितने ही कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो पान की दुकान से भी सपनों की मंज़िल तय की जा सकती है।