Bihar News: मौत जैसे खौफ के साए में था… म्यांमार में गुलामी से मुक्त कराए गए गया के धर्मेंद्र ने सुनाई दहलाने वाली दास्तान, पढ़ कर रो देंगे आप

Bihar News: म्यांमार में साइबर गुलामी का शिकार बने 360 भारतीयों को हाल ही में वहां की आर्मी ने मुक्त कराया। इन्हीं में बिहार के 6 युवक भी शामिल थे..

Bihar News: मौत जैसे खौफ के साए में था… म्यांमार में गुलामी
धर्मेन्द्र की आपबीती - फोटो : MANOJ

GAYA : म्यांमार में साइबर गुलामी का शिकार बने 360 भारतीयों को हाल ही में वहां की आर्मी ने मुक्त कराया। इन्हीं में बिहार के 6 युवक भी शामिल थे, जिन्हें म्यांमार के कुख्यात के.के. पार्क इलाके से छुड़ाकर थाईलैंड और फिर 18 नवंबर को दिल्ली लाया गया। इसके बाद आर्थिक अपराध इकाई  की टीम छहों युवकों को पटना लाई, पूछताछ के बाद उन्हें सुरक्षित उनके परिजनों को सौंप दिया गया। इन्हीं मुक्त कराए गए युवकों में एक हैं गया जिले के डेल्हा निवासी धर्मेंद्र कुमार, जिन्होंने घर लौटने के बाद जो आपबीती सुनाई, वह दिल दहला देने वाली है। धर्मेंद्र बताते हैं कि नौकरी की तलाश ने उन्हें एक ऐसे जाल में धकेल दिया, जहां हर दिन मौत का डर था और जिंदा लौटना खुद एक चमत्कार से कम नहीं।

धर्मेंद्र पहले पुणे की कई कंपनियों में नौकरी कर चुके थे, पर नौकरी छूटने के बाद वे नए अवसर की तलाश में थे। तभी एक दोस्त ने उन्हें मुजफ्फरपुर निवासी शुभम कुमार से मिलवाया। शुभम ने थाईलैंड में हाई-सेलरी चाइनीज़ जॉब का लालच दिया। कई ऑनलाइन इंटरव्यू हुए, फिर बताया गया कि अंतिम इंटरव्यू के लिए थाईलैंड जाना होगा। इसी के तहत 19 अक्टूबर को पटना–कोलकाता–बैंकॉक का टिकट बना। 20 अक्टूबर को बैंकॉक में एक ड्राइवर उन्हें फाइव-स्टार होटल ले गया, जहां एक और इंटरव्यू हुआ। बाद में एक चमचमाती कार से दूसरा ड्राइवर आया। धर्मेंद्र को लगा कि उनका चयन हो गया है, लेकिन कुछ दूर जाते ही रास्ता बदला और कार पहाड़ी व दलदली इलाकों में बढ़ने लगी।

धर्मेंद्र कहते हैं कि थोड़ी देर बाद हमें किडनैप कर लिया गया। गन पॉइंट पर घंटों पैदल चलाया गया। कई बाइकर्स पहाड़ी रास्तों पर नजर रखे हुए थे, सब विदेशी लग रहे थे। कुछ देर बाद उन्हें एक गेस्ट हाउस में ले जाकर तीन दिनों तक बंद रखा गया।तभी पता चला कि वे थाईलैंड नहीं, बल्कि म्यांमार की सीमा के अंदर पहुंचा दिए गए हैं  जहाँ साइबर अपराध कराने वाली कुख्यात गैंग सक्रिय है। वहां 4–5 भारतीय युवकों को भूखे-प्यासे बंद कर दिया गया। उनसे साइबर फ्रॉड कराने की कोशिश की जाती थी  जिसे साइबर गुलामी कहा जाता है।धर्मेंद्र बताते हैं कि मुझे यकीन नहीं था कि मैं जिंदा बचकर घर लौटूंगा। लेकिन अचानक म्यांमार आर्मी और पुलिस ने छापा मारा और हमें मुक्त करा लिया। बाद में पता चला कि दर्जनों भारतीय और कई विदेशी युवक पहले से ही वहां से छुड़ाए गए थे।

म्यांमार आर्मी ने सभी को अपनी सुरक्षा में रखा। भारतीय दूतावास के हस्तक्षेप के बाद युवकों को थाईलैंड भेजा गया, फिर 18 नवंबर को दिल्ली लाया गया। वहां से EOU टीम उन्हें पटना लेकर आई।गया पहुंचकर धर्मेंद्र ने बताया कि अगर म्यांमार आर्मी और इंडियन एंबेसी मदद नहीं करती, तो शायद मैं आज जिंदा नहीं होता। हमें नौकरी के नाम पर सीधे मौत के मुंह में धकेल दिया गया था। फिलहाल सभी छह युवक सुरक्षित अपने-अपने घर पहुंच गए हैं। EOU एजेंटों, ट्रैवल नेटवर्क और साइबर रैकेट की पूरी जांच में जुट गई है।

रिपोर्ट- मनोज कुमार