Pitru Paksha 2025: गयाजी में पिंडदान से खुलता है मोक्ष का द्वार, जानिए तर्पण-दान और श्राद्ध का महत्व
Pitru Paksha 2025: गयाजी में किया गया पिंडदान और तर्पण ही पितरों को मोक्ष प्रदान करता है। यही कारण है कि गयाजी को ‘मोक्षभूमि’ कहा जाता है।

Pitru Paksha 2025: पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं है, जो प्राणी मात्र को मृत्यु उपरांत मुक्ति का मार्ग दिखाए, सिवाय बिहार के गयाजी के। धर्मग्रंथों और वायु पुराण सहित सनातन परंपरा में वर्णित मान्यता के अनुसार गयाजी में किया गया पिंडदान और तर्पण ही पितरों को मोक्ष प्रदान करता है। यही कारण है कि गयाजी को ‘मोक्षभूमि’ कहा जाता है।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में हर वर्ष की भांति इस बार भी पखवाड़ा भर चलने वाला पितृपक्ष मेला आरंभ हो गया है। विष्णुपद मंदिर और पवित्र फल्गु तट पर आस्था और श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा है। देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु यहां अपने पितरों के लिए पिंडदान कर रहे हैं।
गयाजी में वर्तमान में कुल 56 वेदियाँ हैं, जहाँ पिंडदान की परंपरा निभाई जाती है। इनमें प्रमुख हैं विष्णुपद वेदी,कागबली वेदी,अक्षयवट वेदी,गृत्य कुल्या वेदी,मधु कुल्या वेदी,धर्मारण्य वेदी,गया कूप वेदी,बोधगया वेदी।कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां 360 वेदियाँ थीं, लेकिन समय के साथ अतिक्रमण के कारण अब केवल 56 ही शेष रह गई हैं।
मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक भटकती आत्माएं गयाजी में आती हैं और अपने वंशजों से पिंडदान की अपेक्षा करती हैं। इसलिए इन दिनों किया गया श्राद्ध और तर्पण, पितरों को मुक्ति दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है।नारायण शब्द सेवा आश्रम के पुरोहित दीपू जी भैया बताते हैं कि पिंडदान और तर्पण माता-पिता के जीवित रहते भी किया जा सकता है।श्राद्ध का अधिकार जेष्ठ या कनिष्ठ पुत्र दोनों को है।वैदिक परंपरा के अनुसार, गयापाल ब्राह्मण से कराया गया पिंडदान ही पितरों की मुक्ति सुनिश्चित करता है।
ऑनलाइन पिंडदान की व्यवस्था केवल मरणासन्न या असक्षम व्यक्तियों के लिए उचित है।चूँकि यह राजकीय मेला है, इसलिए जिला प्रशासन ने सुरक्षा और सुविधा की मुकम्मल व्यवस्था की है।हर पंडा को परिचय पत्र जारी किया गया है, ताकि नकली पंडा श्रद्धालुओं को ठग न सके।पुलिस बल की व्यापक तैनाती की गई है।प्रशासन का प्रयास है कि बाहर से आने वाले श्रद्धालु गयाजी की छवि को सकारात्मक लेकर लौटें।
रिपोर्ट मनोज कुमार