Pitrupaksh Mela 2025 : सात पुश्तों का नाम जानना है तो चले आईये गयापाल पंडों के पास, रजवाड़ों से लेकर आम लोगों तक की मिलेगी जानकारी

Pitrupaksh Mela 2025 : सात पुश्तों का नाम जानना है तो चले आई

GAYA : बिहार की गया जी विश्वभर में मोक्ष नगरी के रूप में विख्यात है। मान्यता है कि यहां गया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस साल विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 6 सितंबर से शुरू हो रहा है। लाखों की संख्या में पिंडदानी अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना के लिए यहां पहुंचेंगे। गयापाल पंडों के पास पूर्वजों का इतिहास गया जी के गयापाल पंडों के पास ऐसी धरोहरें मौजूद हैं जो किसी खजाने से कम नहीं। उनके पास 300 साल पुराने बही खाते और 700 साल पुराने भोजपत्र व ताम्रपत्र सुरक्षित हैं। इन पंडा पोथियों में करीब एक करोड़ पिंडदानियों का रिकॉर्ड दर्ज है। जब भी कोई तीर्थयात्री यहां आता है, पंडे उसकी पीढ़ियों तक की जानकारी निकाल देते हैं। ताम्रपत्र से बही खाते तक का सफर शुरुआत के समय में तीर्थयात्रियों का ब्योरा भोजपत्र और ताम्रपत्र पर दर्ज होता था। जैसे-जैसे समय बदला और कागजों का प्रचलन बढ़ा, तो यह रिकॉर्ड बही खाते के रूप में रखा जाने लगा। आज भी गयापाल पंडे इन बही खातों को सोने-चांदी की तरह सहेजकर रखते हैं. जो भी पिंडदानी जाता है अपने पुरखों की वंशावली देखकर दंग रह जाता है।

कई पीढ़ियों का हिसाब

कई पीढ़ियों तक का हिसाब सरकारी रिकॉर्ड में जहां सात पीढ़ियों से ज्यादा जानकारी मिलना कठिन है। वहीं गयापाल पंडों की पोथियों में किसी भी पिंडदानी के पूर्वजों का नाम, गांव, जिला और राज्य तक की पूरी जानकारी उपलब्ध है। यही वजह है कि हर साल लाखों लोग यहां पिंडदान करने पहुंचते हैं और अपने पूर्वजों का नाम इन बही खातों में दर्ज पाते हैं। पिंडदान करते पिंडदानी जिला और राज्यवार बंटवारा गयापाल पंडों के बीच जजमानी का क्षेत्रवार बंटवारा तय रहता है। कोई पंडा गुजरात का जिम्मेदार है, तो कोई राजस्थान, उत्तर प्रदेश या बंगाल का। इसी तरह जिला स्तर तक की जिम्मेदारी भी पंडों के बीच बंटी हुई है। इससे हर पिंडदानी अपने निर्धारित पंडे के पास ही पहुंचता है और पिंडदान करता है।

आम से लेकर खास तक पहुंचे

गया जी धाम में केवल आम लोग ही नहीं, बल्कि राजा-रजवाड़े और देश-दुनिया की नामचीन हस्तियां भी अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आती रही हैं।  यहां फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, सुनील दत्त, संजय दत्त, रवीना टंडन, नीरजा गुलेरी तक आ चुकी हैं।  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपने पूर्वजों का पिंडदान यहीं किया।  महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने तो यहां पहुंचकर गयापाल पंडा शंभूलाल विट्ठल के घर पर रुककर पिंडदान किया था।  देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जैसे बड़े नेता भी यहां पिंडदान कर चुके हैं।   

700 साल पुराने भोजपत्र और सनदें भी मौजूद

गयापाल पंडों के पास न केवल बही खाते बल्कि भोजपत्र, ताम्रपत्र और राजा-महाराजाओं की सनदें भी सुरक्षित हैं।  इन दस्तावेजों से जजमानी क्षेत्रों का बंटवारा भी तय होता था।  पंडे बताते हैं कि कई बार राजा-रानी भी यहां आकर अपने पूर्वजों का नाम बही खाते में देखते थे।  रजवाड़ों के पूर्वजों का नाम इतना नहीं चौंकाता जितना आम लोगों की वंशावली का रिकॉर्ड चौंकाती है।  पंडा पोथी में सब एक बराबर हैं।  कभी हमारे यहां बड़ोदरा राजा रानी भी आए थे।  उन्होंने बही खाता में अपने पूर्वजों के नाम देखे थे, वह दुर्लभ फोटो आज भी उनके पास मौजूद है।  पहले ताम्रपत्र भोजपत्र का युग था और अब कागजों का युग है और उसी में बही खाता चल रहा है।  600 -700 साल पुराने बही खाते जो कि ताम्र पत्र भोजपत्र के रूप में उपलब्ध है, वह भी मिल जाएंगे।  

गया से मनोज की रिपोर्ट