Bihar Land Survey: बिहार सरकार ने हाल ही में एक नई भूमि सर्वेक्षण नीति लागू की है, जिसका उद्देश्य भूमि रिकॉर्ड को अद्यतन करना और पारदर्शिता लाना है। हालांकि, इस नीति को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह नीति सरकार की नाकामयाबी को छिपाने का एक प्रयास है। दूसरी ओर, आम लोगों को इस लंबी और जटिल प्रक्रिया से काफी परेशानी हो रही है।
नई सर्वेक्षण नीति: लोगों के लिए मुसीबत या समाधान?'
बिहार का भूमि सर्वेक्षण और लंबा खिंच गया है। सरकार ने नई नियमावली लागू कर सर्वे को कम से कम दो साल के लिए टाल दिया है। यह फैसला लाखों लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है, खासकर जब वे पहले से ही मौजूदा सर्वे की समस्याओं से परेशान हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जल्द सर्वे पूरा करने के आदेश के बावजूद, सरकार ने अपना फैसला बदल लिया है। हवाई सर्वेक्षण की समय सीमा भी बढ़ गई है, जिससे लागत में 1423 करोड़ रुपये से अधिक का इजाफा हुआ है।
लाखों लोगों के लिए परेशानी का सबब
बिहार सरकार ने भूमि सर्वेक्षण को लेकर एक बार फिर बड़ा फैसला लिया है। नई नियमावली को मंजूरी देने के साथ ही सर्वेक्षण कार्य कम से कम दो साल के लिए और बढ़ा दिया गया है। यह फैसला लाखों लोगों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, जो पहले से ही मौजूदा सर्वेक्षण प्रक्रिया की जटिलताओं से जूझ रहे थे।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले अधिकारियों को सर्वेक्षण जल्द पूरा करने के निर्देश दिए थे, लेकिन अब सरकार ने अपना निर्णय बदल लिया है। हवाई सर्वेक्षण की समय सीमा भी बढ़ा दी गई है, जिससे इस पर होने वाले खर्च में भी इजाफा हुआ है। अब इस पर 1423 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने का अनुमान है।
सर्वे के पूरा होने में दो साल लगेंगे
नई नियमावली में प्रत्येक चरण के लिए समय सीमा तय की गई है। जमीन मालिकों को विवरण देने के लिए 180 कार्य दिवस, यानी लगभग सात महीने का समय दिया जाएगा। ऐसा इसलिए कि कार्यदिवस में शनिवार,रविवार और सरकारी छुट्टी के दिन शामिल नहीं होंगे। इसी तरह से सरकारी कर्मचारियों को सत्यापन के लिए 90 कार्यदिवस, यानी लगभग साढ़े तीन महीने का समय दिया जाएगा। आपत्ति दर्ज कराने के लिए 60 कार्यदिवस, यानी लगभग ढाई महीने का समय दिया जाएगा। और आपत्तियों के निपटारे के लिए भी 60 कार्यदिवस का समय दिया जाएगा। इसके बाद अंतिम प्रकाशन किया जाएगा, जिसके बाद भी लोगों को 90 कार्यदिवस तक आपत्ति दर्ज कराने का मौका दिया जाएगा।
सरकार को खुद भी नहीं लगता कि सर्वेक्षण कार्य 2025 तक पूरा हो पाएगा
कुल मिलाकर इस तरह से सर्वे के पूरा होने में दो साल लगेंगे। इसमें विधानसभा चुनाव के दौरान लगने वाला समय भी शामिल नहीं किया गया है। चुनाव की घोषणा होते ही करीब तीन महीने का समय तो उसमें भी लगेगा। इस दौरान सरकारी कर्मचारी चुनाव के काम में लगे रहेंगे। इसीलिए, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सर्वेक्षण कार्य 2026 तक पूरा नहीं हो पाएगा।
सरकार हवाई सर्वेक्षण भी करा रही है, जिस पर 1423 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने का अनुमान है। हवाई सर्वेक्षण की समय सीमा भी 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है। इससे यह साफ है कि सरकार को खुद भी नहीं लगता कि सर्वेक्षण कार्य 2025 तक पूरा हो पाएगा।
और इंतजार करना होगा
यह फैसला उन लाखों किसानों और आम लोगों के लिए एक झटका है, जिन्होंने अपने कामकाज को छोड़कर सर्वेक्षण में सहयोग के लिए वापस अपने गांवों को लौटे थे। अब उन्हें और इंतजार करना होगा।उधर नई सर्वेक्षण नीति से लोगों को मिल रही है परेशानी, विपक्ष ने सवाल उठाए है। सरकार का दावा है कि यह पारदर्शिता लाएगी, लेकिन हकीकत में लोगों को जमीन के कागजात के लिए दो साल से अधिक इंतजार करना पड़ रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने इस काम को गंभीरता से नहीं लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस देरी से लोगों के कई जरूरी काम रुक सकते हैं। सरकार को इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए।
बिहार में भूमि सर्वेक्षण एक लंबी और कठिन यात्रा साबित हो रहा है। सरकार को इस प्रक्रिया को तेज करने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। साथ ही, आम लोगों को इस प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए ताकि वे अपनी भूमिका निभा सकें।