Digital Bihar: यहां पेड़ पर चढ़कर मोबाइल से बात करते हैं लोग, अभी भी 'पेड़-तंत्र' से चलता है सेल फोन!वाह रे डिजिटल इंडिया!
Digital Bihar:डिजिटल इंडिया का सपना संजोए देश में आज भी बिहार में ऐसे कोने हैं जहां मोबाइल नेटवर्क एक दूर का ख्वाब है।

Digital Bihar: डिजिटल इंडिया का सपना संजोए देश में आज भी ऐसे कोने हैं जहां मोबाइल नेटवर्क एक दूर का ख्वाब है। बिहार के कैमूर जिले का अधौरा प्रखंड इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां के लोग स्मार्टफोन तो रखते हैं, लेकिन 'स्मार्ट' तरीके से बात करने के लिए उन्हें पेड़ पर चढ़ना पड़ता है। जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा, पेड़ पर चढ़कर मोबाइल फोन से बातचीत! लगता है यहां की टेलीकॉम कंपनियों ने 'नेटवर्क टावर' के बजाय 'नेचर टावर' का कॉन्सेप्ट अपना लिया है।
'कॉल ड्रॉप' नहीं, यहां तो 'नेटवर्क ड्रॉप' होता है, सीधा पेड़ से!
जब सासाराम और चेनारी के बीच फाइबर वायर कट जाता है, तो अधौरा के लोगों को अपने मोबाइल पर 'नेटवर्क नहीं' का मैसेज नहीं दिखता, बल्कि उन्हें यह मैसेज मिलता है कि 'बातचीत करनी है तो फलां पेड़ पर चढ़ो!' यहां के लोगों के लिए 'कॉल ड्रॉप' की समस्या सेकेंडरी है, प्राइमरी समस्या तो 'नेटवर्क ड्रॉप' की है, जो सीधा पेड़ से नीचे गिरा देता है। बीएसएनएल के 66 टावर होने के बावजूद, उनका रेंज 'आसपास के गांवों तक' ही सीमित है, शायद वो आसपास के पेड़ों को छोड़कर और कहीं नहीं जाते।
उत्तर प्रदेश का 'शरणार्थी नेटवर्क': जब बिहार के लोग यूपी की शरण में जाते हैं!
हद तो तब हो जाती है जब अपने ही राज्य में नेटवर्क न मिलने पर लोगों को उत्तर प्रदेश के रेंज में जाकर बात करनी पड़ती है। कुल्ही में बीएसएनएल का टावर है, लेकिन चिकटा और भेलवाटांड में यूपी की जियो कंपनी का टावर है। इसका मतलब है कि बिहार के लोग, मोबाइल पर बात करने के लिए, दूसरे राज्य के नेटवर्क के 'शरणार्थी' बन गए हैं। शायद सरकार को इस 'शरणार्थी समस्या' पर भी ध्यान देना चाहिए, नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि 'मोबाइल माइग्रेशन' एक नई समस्या बन जाए।
कब तक चलेगा ये 'पहाड़-जंगल-पेड़' वाला खेल?
भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के अधिकारी बता रहे हैं कि फाइबर वायर कटा मिला है और जल्द ही ठीक हो जाएगा। उम्मीद है कि 'जल्द' का मतलब 'अगली सदी' न हो। आखिर कब तक अधौरा के लोग जंगल, पहाड़ और पेड़ों पर चढ़कर अपनी बातें करेंगे? क्या 'डिजिटल इंडिया' का सपना केवल मैदानी इलाकों के लिए है, या फिर पहाड़ों और जंगलों में भी स्मार्टफोन का असली इस्तेमाल हो पाएगा? शायद अब वक्त आ गया है कि सरकार इस 'पेड़-तंत्र' को खत्म कर, सही मायनों में 'नेटवर्क-तंत्र' स्थापित करे। तब तक के लिए, कैमूर के अधौरावासियों को हमारा सलाम, जो 'कॉल कनेक्ट' करने के लिए जान जोखिम में डाल रहे हैं!