Liqour Ban in Bihar : अप्रैल 2016 से बिहार में लागू शराबबंदी अपने मूल उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाई है. शराबबंदी से राज्य में शराब तस्करी को बढ़ावा मिल रहा है. हालात ऐसे हैं कि यह पुलिस और तस्करों की कमाई का जरिया बनकर रह गया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस शराबबंदी की तारीफ करते नहीं थकते उसी शराबबंदी की विफलताओं को गिनाते हुए पटना हाई कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने यहाँ तक माना कि शराबबंदी से राज्य के अफसर सिर्फ मालामाल हो रहे हैं. जस्टिस पूर्णेन्दु सिंह एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सख्त टिप्पणी की.
पटना कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि वास्तव में शराबबंदी ने शराब व अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं के अनधिकृत व्यापार को बढ़ावा दिया है. पटना कोर्ट ने कहा कि तस्करों ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों को धोखा देने के लिए नये नये तरीके विकसित किये गए । इससे न सिर्फ तस्करी करने में सुगमता हो, बल्कि इसे रोकने वाली संस्थाओं को भी ध्वस्त किया जा सके। कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि पुलिस अधिकारी,उत्पाद शुल्क अधिकारी ही नही, बल्कि राज्य कर विभाग व परिवहन विभाग के अधिकारी भी मोटी कमाई के मद्देनज़र शराबबंदी को पसंद करते हैं.
कोर्ट ने कहा कि शराबबंदी कानून के विरुद्ध कार्य करने वालों के विरुद्ध दर्ज मामले काफी कम है। शराब पीने वाले गरीबों व अवैध त्रासदी के विरुद्ध दर्ज मामलों की तुलना में किंगपिन/सिंडिकेट संचालको की तुलना में कहीं अधिक है। इस कानून का दंश राज्य के अधिकांश गरीब लोग झेल रहे है। उनके जीवनयापन का सहारा दिहाड़ी मजदूरी है और अधिकांश अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य है।
कोर्ट का यह आदेश पटना बाईपास पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) मुकेश कुमार पासवान द्वारा दायर एक रिट याचिका के जवाब में आया है। आबकारी विभाग के अधिकारियों द्वारा छापेमारी के दौरान उनके पास विदेशी शराब पाए जाने के बाद पासवान को निलंबित कर दिया गया था। राज्य सरकार द्वारा जारी एक सामान्य निर्देश के बाद 2020 में उन्हें पदावनत कर दिया गया था।