Bihar Politics: 243 विधायकों में 37 जातियों की मौजूदगी, सबसे बड़ी आबादी वाले ईबीसी की प्रतिनिधित्व में भारी गिरावट, सियासी गणित में ओबीसी-सवर्ण का दबदबा बरकरार
Bihar Politics: 243 सदस्यों वाली नई विधानसभा में कुल 37 जातियों से विधायक पहुंचे हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ा झटका अति पिछड़ा वर्ग EBC को लगा है।
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे एक बार फिर बताते हैं कि मतदान भले सामाजिक संरचना पर हो, मगर प्रतिनिधित्व की सीढ़ी पर चढ़ने वाले चेहरे सामाजिक संतुलन को पूरी तरह प्रतिबिंबित नहीं करते। 243 सदस्यों वाली नई विधानसभा में कुल 37 जातियों से विधायक पहुंचे हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ा झटका अति पिछड़ा वर्ग EBC को लगा है।
बिहार की जातीय बनावट में ईबीसी की आबादी ओबीसी से 32% अधिक है, लेकिन प्रतिनिधित्व में वे ओबीसी के मुकाबले आधे से भी नीचे रह गए। परिणाम यह है कि जहाँ ओबीसी के 83 विधायक जीतकर आए, वहीं ईबीसी के केवल 37।
विधानसभा की जातीय हैसियत पर नज़र डालें तो सवर्ण 72, दलित-आदिवासी 40, और मुस्लिम 11 विधायक चुनकर आए हैं। यह गणित साफ़ दर्शाता है कि सियासी लड़ाई में संख्या बल नहीं, बल्कि नेटवर्क, सांगठनिक जमे हुए वोट और राजनीतिक पहुँच ज्यादा निर्णायक साबित हुए।
चार या अधिक विधायक वाली जातियों में राजपूत 32 सदस्यों के साथ शीर्ष पर हैं जबकि उनकी आबादी मात्र 3.45% है। पीछे यादव और कोइरी 26-26 पर, भूमिहार 25, कुर्मी 14, ब्राह्मण 13 हैं।
दलित समुदाय में दुसाध और रविदास 11-11 सीटों पर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते हैं, जबकि अत्यंत पिछड़ी जातियों में तेली, धानुक, मुसहर 9-9 पर हैं। कई जातियाँ—जैसे कानू, कलवार, सूड़ी, मल्लाह—सीमित संख्या होने के बावजूद विधानसभा तक पहुँच बनाने में सफल रहीं।
एक-एक विधायक वाली जातियों की लंबी सूची यह दर्शाती है कि बिहार की सामाजिक बनावट अत्यंत विविध है, लेकिन सत्ता की सीढ़ी पर वही पहुंच पाता है जिसके पास राजनीतिक संरचना, संसाधन और प्रभाव का ताना-बाना मजबूत हो।
नतीजे साफ़ कहते हैं बिहार की सामाजिक तस्वीर विस्तृत है, पर राजनीतिक तस्वीर अभी भी सीमित हाथों में सिमटी हुई है।