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Success Story: बिहार के इस शख्स ने कबाड़ के खड़ा किया अरबों का साम्राज्य, सिर्फ एक टिफिन लेकर पहुंचा था मुंबई

Success Story: बिहार के एक छोटे से शहर से निकलकर अनिल अग्रवाल ने वैश्विक स्तर पर कारोबारी साम्राज्य खड़ा कर दिया है। बिना डिग्री के कबाड़ के कारोबार से शुरुआत करके आज वेदांता जैसी बड़ी कंपनी खड़ी कर चुके हैं। जानिए उनकी प्रेरक कहानी...

Success Story

बिहार के पटना में जन्मे अनिल अग्रवाल की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो बिना किसी बड़ी डिग्री या पारिवारिक संपत्ति के भी अपने सपनों को पूरा करना चाहता है। जिस उम्र में लोग करियर को लेकर असमंजस में रहते हैं, उस उम्र में अनिल ने कुछ बड़ा करने की ठानी थी। 1970 के दशक में जब अनिल महज 20 साल के थे, तब वे पटना छोड़कर मुंबई चले गए। उनकी जेब में ज्यादा पैसे नहीं थे, बस एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और आंखों में बड़े सपने थे। जब वे पहली बार विक्टोरिया टर्मिनस (आज का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) पहुंचे, तो मुंबई की भीड़ और तेज रफ्तार देखकर चौंक गए, लेकिन घबराने की बजाय उन्होंने इस शहर में खुद को साबित करने की ठानी।


मुंबई में शुरुआती दिनों में उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां कीं, लेकिन यह उनकी मंजिल नहीं थी। उनका झुकाव व्यापार की ओर था और जल्द ही वे स्क्रैप मेटल के कारोबार में उतर गए। वे केबल कंपनियों से कॉपर वायर और स्क्रैप खरीदते और फिर उसे आगे बेचते थे। यह छोटा सा व्यवसाय उनके लिए पहली बड़ी सीख थी- "हर चीज में एक अवसर छिपा होता है, बस आपको उसे पहचानने की जरूरत है।" 1976 में उन्होंने हिम्मत दिखाई और शमशेर स्टर्लिंग कॉरपोरेशन नामक कंपनी खरीदने के लिए लोन लिया, जो कॉपर केबल बनाती थी। हालांकि, यह डील उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुई और उन्होंने इससे सीख लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया। नौ बार नए व्यवसाय में हाथ आजमाने के बाद भी उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।


1993 में उन्होंने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज की स्थापना की और भारत का पहला निजी कॉपर स्मेल्टर और रिफाइनरी शुरू की। यहीं से उनकी किस्मत बदलने लगी। इसके बाद उन्होंने 1995 में मद्रास एल्युमिनियम का अधिग्रहण किया और खनन उद्योग में प्रवेश किया। 2001 में उन्होंने भारत सरकार से बाल्को (भारत एल्युमिनियम कंपनी) खरीदी। यह डील विवादों से घिरी रही, लेकिन अनिल अग्रवाल को खुद पर भरोसा था। फिर 2003 में उन्होंने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को भी खरीद लिया और एक नया साम्राज्य खड़ा कर दिया। आज उनकी कंपनी वेदांता रिसोर्सेज दुनिया की टॉप मेटल और माइनिंग कंपनियों में से एक है। उनकी कंपनी का मार्केट कैप 2 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा है और इसका कारोबार भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड जैसे कई देशों में फैला हुआ है। वेदांता में 64,000 से भी ज्यादा लोग काम करते हैं।


अनिल अग्रवाल सिर्फ एक बिजनेसमैन ही नहीं बल्कि एक समाजसेवी भी हैं। उन्होंने गिविंग प्लेज पर हस्ताक्षर करके अपनी संपत्ति का 75% दान करने का संकल्प लिया है। उनका सपना भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाना है। अनिल अग्रवाल की कहानी साबित करती है कि सपनों को पूरा करने के लिए डिग्री की नहीं बल्कि जुनून, मेहनत और धैर्य की जरूरत होती है। उन्होंने दिखा दिया कि अगर इंसान ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है।

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