Bihar Politics: बिहार की सियासत में तूफान! राबड़ी देवी बनाम सम्राट चौधरी, राहुल गांधी के बयान से छिड़ी नई बहस

Bihar Politics: बिहार विधानसभा के बाहर राबड़ी देवी के नेतृत्व में विपक्ष का प्रदर्शन, सम्राट चौधरी पर आरोप और राहुल गांधी का अंग्रेजी शिक्षा पर बयान – जानिए बिहार की सियासी उठापटक की पूरी कहानी।

Bihar Politics
बिहार की सियासत में तूफान- फोटो : SOCIAL MEDIA

Bihar Politics: बिहार विधानसभा 25 जुलाई 2025 के बाहर एक तेजतर्रार सियासी दृश्य देखने को मिला। राबड़ी देवी, जो राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी की वरिष्ठ नेता हैं। उन्होंने ने विशेष गहन संशोधन (SIR) के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व किया। यह प्रदर्शन बीजेपी-जदयू सरकार की नीतियों और खासकर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की भाषा और कार्यशैली पर तीखे सवाल उठाते हुए किया गया।

राबड़ी देवी ने न केवल सरकार की आलोचना की, बल्कि सम्राट चौधरी पर व्यक्तिगत आरोप भी लगाए। उन्होंने कहा कि वो बचपन से बोरिंग रोड इलाके में गुंडई करता है। लड़कियों को छेड़ते रहे, वो कैसे दूसरे को गुंडा बोल सकते हैं?"यह बयान सीधे उस टिप्पणी के जवाब में आया जिसमें सम्राट चौधरी ने सदन में कहा था कि जिसका बाप अपराधी वो क्या बोलेगा?" (लालू प्रसाद यादव की ओर इशारा करते हुए)

प्रतिक्रिया में जदयू का पलटवार जंगलराज की याद दिलाई

राबड़ी देवी के बयान पर जदयू कोटे के मंत्री मदन सहनी ने सख्त प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि राबड़ी देवी को इस तरह की भाषा नहीं बोलनी चाहिए। वह मुख्यमंत्री रही हैं। उन्हें अपने ‘जंगलराज’ को नहीं भूलना चाहिए।"मदन सहनी ने इस बयान के माध्यम से आरजेडी के पुराने शासन की आलोचना करते हुए राबड़ी देवी को नैतिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया।

राहुल गांधी के बयान से अलग बहस

इस सियासी संग्राम के बीच राहुल गांधी के एक बयान ने शिक्षा नीति पर एक नई बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा कि भारत में सफलता और प्रगति का सबसे बड़ा निर्धारक अंग्रेजी शिक्षा है। इस बयान पर भी मदन सहनी ने तंज कसते हुए कहा कि हिंदी और क्षेत्रीय भाषाएं ज्यादा प्रभावशाली हैं। राहुल गांधी को जितनी समझ है, उतना बोलते हैं। आरजेडी नेता आलोक मेहता ने राबड़ी देवी का समर्थन करते हुए कहा कि सम्राट चौधरी जैसे व्यक्ति उपमुख्यमंत्री के लायक नहीं हैं, और साथ ही यह भी जोड़ा कि भाषा विवाद नहीं होना चाहिए क्योंकि हर भाषा का अपना महत्व है।

कुशवाहा समाज का प्रतिनिधित्व या अपवाद

राबड़ी देवी और आलोक मेहता दोनों ने सम्राट चौधरी के सामाजिक पहचान को भी सवालों के घेरे में लिया। आलोक मेहता ने कहा कि वह खुद को कुशवाहा समाज से बताते हैं, लेकिन उनके व्यवहार से यह समाज को गलत छवि में दिखाता है। यह टिप्पणी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि बिहार की जातीय राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दे सकती है। बिहार में राजनीति अक्सर जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है, और ऐसे बयान उसका राजनीतिक अर्थ और असर तय करते हैं।