Bihar vidhansabha election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दिखेगा Gen-Z वोटर्स का जलवा! बनेंगे सत्ता की चाबी

Bihar vidhansabha election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जेन-जेड वोटर निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं। जानें कैसे युवा मतदाता नरेंद्र मोदी, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर की राजनीति को प्रभावित करेंगे।

Bihar vidhansabha election 2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025- फोटो : social media

Bihar vidhansabha election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़ा बदलाव वह पीढ़ी ला रही है जिसे "जेन-जेड" कहा जाता है। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 7.42 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 1.63 करोड़ वोटर 20 से 29 वर्ष के बीच हैं, जबकि 14.01 लाख युवा पहली बार मतदान करेंगे।यह संख्या इतनी बड़ी है कि यह अकेले किसी भी राजनीतिक गठबंधन की जीत या हार तय कर सकती है। इन युवा मतदाताओं का प्रभाव न केवल चुनावी गणित बदलने वाला है, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नई वैचारिक दिशा भी दे सकता है।

राजनीतिक दलों के लिए यह वर्ग "किंगमेकर" की भूमिका में है। भाजपा, आरजेडी और जन सुराज सभी पार्टियाँ अपने-अपने तरीक़े से इस युवा वर्ग को प्रभावित करने की कोशिश में जुटी हैं। सोशल मीडिया कैंपेन, डिजिटल मीम युद्ध और जमीनी स्तर पर "युवा संवाद" जैसे कार्यक्रमों से यह लड़ाई और दिलचस्प बन चुकी है।

क्या मोदी अब भी युवाओं की पहली पसंद हैं?

पिछले 15 वर्षों में हुए अधिकांश चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार वोट करने वाले युवाओं के बीच मजबूत पसंद रहे हैं। उनकी छवि एक निर्णायक, ईमानदार और वैश्विक नेता के रूप में बनी है।‘डिजिटल इंडिया’, ‘मुद्रा योजना’ और सरकारी योजनाओं के प्रत्यक्ष लाभांतरण (DBT) जैसे कार्यक्रमों ने युवाओं में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ाया है।हालांकि सवाल यह है कि क्या राज्य की राजनीति में यह भरोसा अभी भी कायम है?20 वर्षों से अधिक समय से सत्ता में रह चुके नीतीश कुमार के शासन को लेकर युवाओं में मिश्रित भावनाएं हैं। नौकरी की कमी, शिक्षा व्यवस्था की लचर स्थिति और पलायन जैसे मुद्दे इस वर्ग के लिए अहम हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जेन-जेड सिर्फ “राष्ट्रीय नेतृत्व” पर भरोसा करेगा या “स्थानीय मुद्दों” को प्राथमिकता देगा।

तेजस्वी यादव रोजगार और बदलाव का युवा चेहरा

तेजस्वी यादव, बिहार के सबसे युवा राजनीतिक चेहरों में से एक हैं जिन्होंने खुद को युवाओं के "वॉइस ऑफ चेंज" के रूप में पेश किया है।उनकी राजनीति की केंद्रवर्ती धुरी रोजगार, शिक्षा और भ्रष्टाचार विरोध है। तेजस्वी लगातार यह दावा करते रहे हैं कि यदि उनकी सरकार बनी तो 10 लाख नौकरियां दी जाएंगी — यह वादा आज भी युवाओं के मन में गूंजता है।उनकी रैलियों में युवाओं की भारी भीड़ दिखती है, और सोशल मीडिया पर वे सीधे युवाओं से संवाद स्थापित करने में माहिर हैं।

उनकी अपील खास तौर पर उन जेन-जेड मतदाताओं के बीच है जो “परंपरागत राजनीति” से निराश होकर नई पीढ़ी की राजनीति की तलाश में हैं।हालांकि, उनके लिए चुनौती यह है कि वे सिर्फ भावनात्मक जुड़ाव से आगे बढ़कर विश्वसनीय विकल्प साबित हों।

प्रशांत किशोर (पीके) और ‘जन सुराज’ का उभार

राजनीति के रणनीतिकार से जननेता बने प्रशांत किशोर (पीके) बिहार के युवाओं के बीच "साफ-सुथरी राजनीति" और "जन भागीदारी" की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। उनका "जन सुराज अभियान" गांव-गांव तक पहुंच चुका है, जहां वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मूलभूत मुद्दों पर संवाद कर रहे हैं।पीके का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे "राजनीति के पेशेवर" के रूप में नहीं बल्कि "परिवर्तन के प्रतीक" के रूप में देखे जाते हैं।वे युवाओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार का भविष्य “नेता बदलने” से नहीं बल्कि “व्यवस्था बदलने” से सुधर सकता है।उनका यह संदेश खास तौर पर जेन-जेड मतदाताओं में गूंज रहा है, जो पारंपरिक जातिगत समीकरणों से आगे बढ़कर प्रभावी शासन और अवसर आधारित राजनीति की उम्मीद रखते हैं।

जेन-जेड की प्राथमिकताए और डिजिटल राजनीति

आज का युवा सोशल मीडिया पर सक्रिय है। इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स और ट्विटर ट्रेंड्स पर ही चुनावी चर्चा की दिशा तय होती दिख रही है।यह पीढ़ी "इंफॉर्मेशन-ड्रिवन" है — जो मुद्दों को समझती है, तथ्यों की जांच करती है और फिर राय बनाती है। इसलिए अब पारंपरिक रैलियों के साथ-साथ डिजिटल प्रचार भी निर्णायक हो गया है।युवा वर्ग अब केवल “बोलने वाले नेताओं” को नहीं, बल्कि “सुनने वाले नेताओं” को पसंद करता है।इस वर्ग के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता रोजगार, शिक्षा, कैरियर सुरक्षा और प्रणाली की पारदर्शिता है।अगर कोई भी पार्टी इन मुद्दों को सच्चाई से संबोधित करती है, तो जेन-जेड उसी की ओर झुक सकता है।