Bihar LItchi : नजर लागी बिहार के लीची पर ! अब नहीं रहेगा सबसे बड़ा लीची उत्पादक राज्य, छिन जाएगा एक और तमगा

बिहार की वैश्विक पहचान जिस लीची के सहारे है उसी लीची पर अब बड़ा खतरा मंडरा रहा है. नतीजा है कि देश का सबसे बड़ा लीची उत्पादक राज्य बिहार अब अपने इस तगमा को बचा ले तो यही बड़ी बात होगी.

Bihar LItchi
Bihar LItchi- फोटो : news4nation

Bihar LItchi : बिहार में ही लीची का स्वाद फीका पड़ने लगा है. नतीजा है कि जिस लीची के कारण बिहार की पहचान पूरे देश में सबसे बड़े लीची उत्पादक राज्य की रही है, वही बिहार अब अपनी इस उपलब्धि को खोने के खतरे को महसूस कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि बिहार की तुलना में पड़ोसी राज्यों में लीची उत्पादन तेजी से बढने लगा है जबकि बिहार में लीची उत्पादन का सबसे बड़ा जिला मुजफ्फरपुर हो या अन्य जिले सभी जगहों पर उत्पादन तेजी से कम हुआ है. यहां तक कि नए लीची बगान लगाने का सिलसिला भी थम सा गया है और लीची पल्प के लिए विकसित हुए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी दम तोड़ने लगे हैं. लीची की बागवानी के प्रति बेरुखी, लीची उत्पादन में गिरावट और लीची बाजार में अन्य राज्यों की बढ़ती धमक बिहार के लिए बड़े झटके की तरह है. 


आंकड़े बताते हैं बिहार में देश में उत्पादित कुल लीची का करीब 40 फीसदी पैदावार होता है. लेकिन वर्ष 2025 के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में सालाना करीब 3 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में बिहार में 3 लाख टन के करीब लीची का उत्पादन जो 2024-25 में घटकर 1.35 लाख टन ही रह गया. यानी बिहार में लीची उत्पादन आधा रह गया. वहीं 2024-25 में पश्चिम बंगाल में लीची का उत्पादन 72,820 टन से बढ़कर 82,500 टन, छत्तीसगढ़ में 55,910 टन से बढ़कर 60,220 टन, पंजाब में 50,000 टन से बढ़कर 71,480 टन, हिमाचल में 4,610 टन से बढ़कर 7,560 टन और उत्तर प्रदेश में 38,280 टन से बढ़कर 44,000 टन हो गया. 


बिहार में क्यों मंडराया संकट 

बिहार में लीची उत्पादन पर आया यह संकट कई कारणों से है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार भारतीय लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष और बिहार के लीची किसान बच्चा प्रसाद सिंह का कहना है कि मौसम में आए बदलाव से लीची की बागवानी को बड़ा नुकसान हो रहा है. जैसे इस वर्ष गर्मी बढने से लीची की खेती पर बुरा असर पड़ा है. किसानों को पैदावार की सही कीमत नहीं मिलना सबसे बड़ी परेशानी है. बिहार में लीची स्टोरेज के लिए कोल्ड स्टोर की पर्याप्त सुविधा नहीं होने, लीची को अन्य राज्यों में भेजने के लिए ट्रांसपोर्टेशन की चुनौती सबसे प्रमुख कारण है. एक और वाजिब दाम की कमी और दूसरी ओर मौसम मार ने लीची की खेती को बिहार में बिगाड़ दिया है.  वहीं लीची तुड़वाने और पैकिंग में लेबर की कमी किसानों को पसीने छुड़वा दे रहा है. पलायन और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री का बदलता स्वरूप बिहार के "स्टेटस सिंबल" लीची को भी महंगा पड़ रहा है.


पल्प उद्योग पर भी संकट 

लीची के प्रसंस्करण के लिए बिहार में पिछले वर्षों में बड़े पैमाने पर पल्प उद्योग विकसित होना शुरू हुआ. लेकिन अब पल्प उद्योग पर भी संकट के बादल हैं. आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 5-6 साल पहले बिहार में 40-50 छोटे पल्प निर्माता थे, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 10 के करीब ही रह गई है. पल्प उद्योग के सामने भी सबसे बड़ा संकट कोल्ड स्टोर की कमी है. ऐसे में लीची उत्पादकों द्वारा राज्य सरकार से इस दिशा में बेहतर काम करने की अपील की गई है.