Bihar News: सीएम आवास के बाहर बौद्ध अनुयायियों का प्रदर्शन, नीतीश कुमार से हिंदुओं के खिलाफ की बड़ी मांग...

Bihar News: सीएम नीतीश के आवास के बाहर बौद्ध अनुयायियों का धरना प्रदर्शन जारी है। बीच सड़क पर बैठकर बौद्ध अनुयायी सीएम नीतीश से बड़ी मांग कर रहे हैं।

Buddhist followers protest
Buddhist followers protest- फोटो : social media

Bihar News:  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास के बाहर मंगलवार को जमकर बवाल हुआ। पहले बीपीएससी अभ्यर्थी सीएम आवास के बाहर पहुंच गए। अभ्यर्थियों ने सीएम आवास के बाहर जमकर प्रदर्शन किया। जिसके बाद प्रशासन ने अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज कर उन्हें खदेड़ा। वहीं इसके बाद ही सीएम आवास के बाहर बौद्ध अनुयायियों का जत्था पहुंच गया। ये सभी गया के महाबोधि मंदिर से पहुंचे थे। अपनी मांग को लेकर सभी प्रदर्शनकारी सीएम नीतीश के आवास के बाहर बैठे हैं। 

सीएम नीतीश के आवास के बाहर भारी बवाल

दरअसल, बोधगया के महाबोधि मंदिर के आंदोलनकारी मुख्यमंत्री आवास पहुंच गए हैं। बताया जा रहा है कि बोधगया के महाबोधि मंदिर में एक कमेटी बनाई गई है इस कमेटी में दूसरे धर्म के भी लोग शामिल हैं। ऐसे में बौद्ध धर्म के लोगों की मांग है कि उनकी कमेटी में दूसरे धर्म के लोग शामिल नहीं होंगे। प्रदर्शन कर रहे भक्तों का कहना है कि 1949 में जो नियम बना उसको निरस्त किया जाए और जिस धर्म का मंदिर है उन्हीं लोगों को पूरा प्रतिनिधित्व दिया जाए। बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि सीएम नीतीश इस मामले में तत्काल निर्णय लें। प्रदर्शन कर रहे लोग अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं। सीएम आवास के बाहर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है। पुलिस प्रदर्शनकारियों को समझाने की कोशिश कर रही है। 

इस मांग को लेकर कर रहे प्रदर्शन 

दरअसल, बिहार के बोधगया स्थित ऐतिहासिक महाबोधि मंदिर को लेकर बौद्ध भिक्षुओं का आंदोलन लगातार जोर पकड़ रहा है। करीब 100 बौद्ध भिक्षु फरवरी से महाबोधि मंदिर परिसर में प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं आज अपनी मांग को लेकर वो सीएम नीतीश के आवास के बाहर बैठ गए हैं। बौद्ध भिक्षुओं की मांग है कि मंदिर का संपूर्ण नियंत्रण बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। बता दें कि यह विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें दशकों पुरानी हैं और इसका केंद्र है बोधगया मंदिर अधिनियम (Bodh Gaya Temple Act - BGTA), 1949। इस कानून के तहत मंदिर का संचालन एक समिति करती है, जिसमें हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। समिति के पदेन अध्यक्ष स्थानीय जिलाधिकारी होते हैं जो यदि गैर-हिंदू हों, तो राज्य सरकार किसी हिंदू को अध्यक्ष नामित करती है। बौद्ध समुदाय इसी प्रावधान को भेदभावपूर्ण बताते हुए BGTA को निरस्त करने की मांग कर रहा है।

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हिंदू भिक्षु ने किया था बोधगया में मठ का निर्माण 

बोधगया बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में एक माना जाता है। जहां माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। लुम्बिनी, सारनाथ और कुशीनगर इसके अन्य तीन पवित्र स्थल हैं। 1990 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने BGTA की जगह बोधगया महाविहार विधेयक लाने की कोशिश की थी, जिसमें मंदिर का नियंत्रण पूरी तरह बौद्धों को सौंपे जाने की बात थी। लेकिन यह विधेयक अमल में नहीं आ सका।  इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अशोक ने 260 ईसा पूर्व में इस मंदिर का निर्माण कराया था। बौद्ध धर्म के पतन और बख्तियार खिलजी के हमले के बाद मंदिर वीरान हो गया था। बाद में 1590 में एक हिंदू भिक्षु ने बोधगया मठ की स्थापना की और मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी ली। ब्रिटिश काल में श्रीलंका और जापान के बौद्धों ने इसे पुनः प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू किया था। 

कानूनी पेच में फंसा मामला 

1949 में बिहार सरकार ने BGTA लागू कर मंदिर प्रशासन की वर्तमान संरचना तय की थी। यह मुद्दा अब कानूनी पेच में भी उलझा है। मंदिर पर बौद्धों का दावा ‘उपासना स्थल कानून, 1991’ की परिधि में आता है। जो 15 अगस्त 1947 के बाद पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप में बदलाव पर रोक लगाता है। इस कानून को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, लेकिन बौद्धों की ओर से BGTA को लेकर दाखिल याचिका पर अब तक सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है।