Bihar land registry: बिहार में घर-जमीन खरीदना होगा महंगा, मुफ़्त की दौलत ने कर दिया खजाना खाली , सरकार की तिजोरी भरने के लिए 1 जनवरी से निबंधन दरो में होगी भारी बढ़ोत्तरी! जानें नए साल में आप पर कैसे पड़ेगी सियासत की नई मार
Bihar land registry: बिहार में जमीन और फ्लैट खरीदने का सपना देख रहे लोगों के लिए सियासी-आर्थिक झटका तय माना जा रहा है।...
Bihar land registry: बिहार में जमीन और फ्लैट खरीदने का सपना देख रहे लोगों के लिए सियासी-आर्थिक झटका तय माना जा रहा है। करीब एक दशक बाद राज्य सरकार निबंधन दरों यानी सर्किल रेट (एमवीआर) में बड़े बदलाव की तैयारी में है। मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग ने सभी जिलों की जिला मूल्यांकन समितियों से एमवीआर की समीक्षा कर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। साफ है कि अब जमीन की कीमतें काग़ज़ों में नहीं, बल्कि बाज़ार की हकीकत के करीब लाई जाएंगीऔर इसका सीधा बोझ आम खरीदार की जेब पर पड़ेगा।
सरकारी गलियारों में यह खुलकर माना जा रहा है कि मौजूदा एमवीआर जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है। पिछले नौ-दस वर्षों में कई ग्रामीण इलाके शहरी निकायों में तब्दील हो गए, जमीन की फितरत बदली, रिहायशी और व्यावसायिक गतिविधियां तेज़ हुईं, लेकिन निबंधन दरें पुराने ढांचे में जमी रहीं। नतीजा सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान। यही वजह है कि अब इस फाइल को ठंडे बस्ते से निकालकर निर्णायक मोड़ पर लाया गया है।
याद दिला दें कि शहरी इलाकों में आखिरी बार 2016 और ग्रामीण क्षेत्रों में 2013 में एमवीआर बढ़ाया गया था, तब 10 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई थी। अब हालात उससे कहीं आगे निकल चुके हैं। जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली जिला मूल्यांकन समितियां विकसित, विकासशील और सामान्य क्षेत्रों के साथ-साथ मुख्य सड़क, प्रधान सड़क और शाखा सड़क से जुड़े भूखंडों के नए मूल्य तय करेंगी। इन सिफारिशों पर राज्य सरकार अंतिम मुहर लगाएगी।
इस कवायद का दूसरा पहलू और भी चुभने वाला है। सरकार स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क बढ़ाने जा रही है। पहले जहां कुल खर्च संपत्ति मूल्य का करीब 5-6 फीसदी था, अब यह 7-8 फीसदी तक पहुंच सकता है। यानी एक करोड़ की संपत्ति पर दो लाख रुपये तक का अतिरिक्त बोझ। 50 लाख की जमीन पर लगभग एक लाख रुपये ज्यादा चुकाने पड़ेंगे। यह फैसला 1 जनवरी 2025 से लागू होने की तैयारी में है।
सरकार का तर्क है कि इससे 5,000 करोड़ रुपये तक अतिरिक्त राजस्व आएगा, जो सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसे विकास कार्यों में लगेगा। महिलाओं, एससी-एसटी वर्ग और किसानों को सीमित राहत देने की बात कही जा रही है, लेकिन कुल मिलाकर असर व्यापक होगा। विपक्ष इसे “आम आदमी पर टैक्स का वार” बता रहा है और रियल एस्टेट बाजार में सुस्ती की आशंका जता रहा है।
बिहार की सियासत में इन दिनों सबसे गर्म मुद्दा है 10 हज़ारी योजना और उससे पैदा हुआ माली बोझ, जिसने राज्य सरकार की कमर तोड़ दी है। चुनावी मौसम की राहत और रहमत देने वाली यह योजना अब सरकार के लिए ज़िम्मेदारी का पहाड़ बन चुकी है। मुफ़्त बिजली, महिलाओं को दो-दो लाख की मदद और तमाम लोकलुभावन वादों ने बिहार के वित्तीय ढांचे में ऐसी दरार डाल दी है, जिसका भरना जल्दी मुमकिन नहीं दिखता। राज्य की माली हालत का आलम यह है कि हर बिहारी पर औसतन 27,769 रुपए का कर्ज चढ़ चुका है। आरबीआई के मुताबिक बिहार सरकार पर 3 लाख 61 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है, और यह बोझ हर साल बढ़ता जा रहा है। ऊपर से मुफ्त योजनाओं का तिलिस्म ऐसा कि सरकारी ख़ज़ाने की साँसें उखड़ गई हैं।राजनीतिक पंडितों के अनुसार सरकार पैसे के लिए अब हर क्षेत्र में हाथ पांव मार रही है। इसी क्रम में निबंधन दरों यानी सर्किल रेट (एमवीआर) में बड़े बदलाव की तैयारी में है।
बहरहाल बिहार में जमीन अब सिर्फ निवेश नहीं, बल्कि नीतियों और राजस्व की जंग का मैदान बन चुकी है। जो खरीदने की सोच रहे हैं, उनके लिए संदेश साफ है फैसला जल्दी और सोच-समझकर लें, क्योंकि आने वाले दिनों में रजिस्ट्री सस्ती नहीं रहने वाली।