चंदन बनाम शेरू, मुकेश पाठक-संतोष झा, इश्क़, बारूद और बदले की वो दास्तान जिसने रातों को सिहरन से भर दिया , जान लीजिए पूरी कहानी...
Chandan Mishra Murder Case...और जैसे जुर्म की दुनिया को बक्सर ने चंदन-शेरू की जोड़ी दी, वैसे ही बिहार ने दिया मुकेश पाठक और किडनैपिंग क्वीन पूजा की वो जोड़ी, जिसने जुर्म को पति-पत्नी और गैंगवार प्राइवेट लिमिटेड बना दिया।...

Chandan Mishra Murder Case: बक्सर... वो शहर जिसे गंगा किनारे की धार्मिकता ने जितनी शांति दी, उतनी ही दहशत दी दो नामों से – चंदन मिश्रा और शेरू सिंह उर्फ ओंकारनाथ। इन दोनों के जुर्म का आलम ये था कि जैसे ही कोई कहता "आ रहे हैं चंदन-शेरू," लोग दुकानों के शटर गिरा देते, गलियों में सन्नाटा पसर जाता और पुलिस भी "अंडरस्टैंडिंग मोड" में चली जाती। वहीं मुकेश पाठक, जिसने अपने गुरु संतोष झा को कोर्ट में दिनदहाड़े भून दिया, और पूजा, जो पॉलिटेक्निक के नाम पर पढ़ने निकली और लौटकर अपहरण की प्रोफेसर बन गई। दोनों की मुलाक़ात हुई जेल में, प्यार हुआ, और जेल प्रशासन ने ही शादी करवा दी — प्यार भी अपराध के नियमों से चलता है शायद।
इन्हें देखकर लगता था जैसे जय-वीरू की जोड़ी डाकू स्टाइल में बक्सर की गलियों में उतर आई हो। एक गाड़ी स्टार्ट करता, दूसरा हैंडल छोड़कर सीधे गोली चलाता। 20 साल की उम्र में ही इन दोनों ने मिलकर आठ हत्याएं कर डालीं वो भी महज़ रंगदारी वसूली के लिए। उस उम्र में जब लोग बीए का फार्म भरते हैं, ये दोनों AK-47 का ट्रिगर दबा रहे थे।
शेरू की नजरें चंदन की बहन पर क्या पड़ीं, कहानी ने मोड़ ले लिया। छुपाया बहुत, मगर मोहब्बत कब परदे में रहती है! ब्राह्मण लड़का और राजपूत लड़की का नाम जैसे ही चौक-चौराहों पर आया, इज्ज़त का कफन फाड़ कर हवाओं में लहरा गया। चंदन की मर्दानगी को ललकारा गया और वहीं से दोस्ती का जनाज़ा उठ गया।
फिर सीन पलटा, पटना के पारस हॉस्पिटल में जहां 14 जुलाई को पांच शूटर दाखिल होते हैं, बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में। सीधे कमरे नंबर 209 में पहुंचते हैं, चंदन को देखते हैं, गोलियां लोड करते हैं और ठोक देते हैं। ना हड़बड़ी, ना अफरा-तफरी। मिशन पूरा कर के VIP स्टाइल में निकल जाते हैं।पुलिस की जांच ने जैसे बिहार की सियासी धरती हिला दी। साजिश निकली बंगाल के पुरूलिया जेल से रची गई थी। मास्टरमाइंड कोई और नहीं, बल्कि चंदन का कभी का यार और अब दुश्मन बना शेरू था। पूछताछ में शेरू ने कबूल किया “खून का कर्ज था, ब्याज समेत वसूला।”
ये कोई मामूली मर्डर नहीं था, ये था गैंगवार का अंतिम अध्याय। चंदन मिश्रा अब श्मशान घाट में दफन है और शेरू सीसीटीवी की निगरानी में सलाखों के पीछे।
और जैसे जुर्म की दुनिया को बक्सर ने चंदन-शेरू की जोड़ी दी, वैसे ही बिहार ने दिया मुकेश पाठक और किडनैपिंग क्वीन पूजा की वो जोड़ी, जिसने जुर्म को पति-पत्नी और गैंगवार प्राइवेट लिमिटेड बना दिया।
मुकेश पाठक, जिसने अपने गुरु संतोष झा को कोर्ट में दिनदहाड़े भून दिया, और पूजा, जो पॉलिटेक्निक के नाम पर पढ़ने निकली और लौटकर अपहरण की प्रोफेसर बन गई। दोनों की मुलाक़ात हुई जेल में, प्यार हुआ, और जेल प्रशासन ने ही शादी करवा दी — प्यार भी अपराध के नियमों से चलता है शायद।
2018 में जब संतोष झा को सीतामढ़ी कोर्ट लाया गया, मुकेश के शूटरों ने गोलियों से ऐसा स्वागत किया कि कोर्ट परिसर का फर्श भी कांप उठा। फिर कॉल कर के मीडिया को बताया गया – “काम हो गया है!”
बिहार की जुर्मनामा में ये कहानियां सिर्फ अपराध नहीं, मानव मन की खौफनाक परछाइयां हैं। यहां दोस्ती कभी भी बारूद में बदल सकती है, मोहब्बत कभी भी कत्ल का सबब बन सकती है और गुरु कभी भी शिष्य के निशाने पर आ सकता है।कहानी बस इतनी है जुर्म की गली में रिश्ते नहीं होते, वहां या तो तुम चलते हो या कोई तुम्हें चला देता है... गोली से!
कुलदीप भारद्वाज की रिपोर्ट