INDIA INEQUALITY REPORT: क्या भारत का मिडिल क्लास खत्म हो रहा है? 40 फीसदी संपत्ति पर सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों का कब्जा, वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट ने खोली भारत की सियासी-आर्थिक सच्चाई, पढ़ कर चकरा जाएंगे आप
INDIA INEQUALITY REPORT: भारत आज आय असमानता के मामले में दुनिया में नंबर एक है। अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि मिडिल क्लास, जो कभी लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता था, अब सिमटकर हाशिये पर पहुंच गया है।
INDIA INEQUALITY REPORT: देश की सियासत अक्सर विकास, आत्मनिर्भरता और विश्वगुरु बनने के दावों से गूंजती रहती है, लेकिन वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026 ने इन नारों के बीच छुपी एक कड़वी हक़ीक़त को बेनक़ाब कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत आज आय असमानता के मामले में दुनिया में नंबर एक है। अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि मिडिल क्लास, जो कभी लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता था, अब सिमटकर हाशिये पर पहुंच गया है।
रिपोर्ट बताती है कि 1980 में भारत का मिडिल क्लास मज़बूत था, लेकिन 40 साल की आर्थिक यात्रा के बाद हालात उलट चुके हैं। 2025 तक आते-आते लगभग पूरी आबादी निचले 50 प्रतिशत आय वर्ग में सिमट गई है। यह सिर्फ़ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि उस दर्द की दास्तान है, जिसमें आम आदमी की मेहनत की कमाई महंगाई, बेरोज़गारी और असमान नीतियों के बोझ तले दबती जा रही है।
दूसरी ओर, दौलत का तख़्त कुछ गिने-चुने हाथों में सिमट गया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के टॉप 10 प्रतिशत अमीरों के पास 65 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि टॉप 1 प्रतिशत आबादी अकेले 40 प्रतिशत दौलत पर क़ाबिज़ है। आय के स्तर पर भी तस्वीर कम चौंकाने वाली नहीं है टॉप 10 प्रतिशत लोग 58 प्रतिशत राष्ट्रीय आय हड़प रहे हैं, जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों के हिस्से महज 15 प्रतिशत आय आती है। टॉप 1 प्रतिशत की आय हिस्सेदारी 22.6 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, जो लगातार बढ़ती खाई का साफ सबूत है।
यह रिपोर्ट अर्थशास्त्री लुकास चांसल, थॉमस पिकेटी समेत दुनिया भर के 200 से ज़्यादा शोधकर्ताओं के डेटा पर आधारित है। अर्थशास्त्री जयति घोष और जोसेफ स्टिग्लिट्ज के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति औसत सालाना आय करीब 6,200 यूरो और औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो है। ये आंकड़े बताते हैं कि चमकदार ग्रोथ के दावों के पीछे आम नागरिक की हालत कमज़ोर बनी हुई है।
सबसे चिंताजनक पहलू महिलाओं की स्थिति है। रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी महज़ 15.7 प्रतिशत है और पिछले एक दशक में इसमें कोई ठोस सुधार नहीं हुआ। यह जेंडर असमानता को और गहरा करता है।
डीएवी कॉलेज के अर्थशास्त्र के अवकाशप्राप्त विभागाध्यक्ष डॉ. रामानंद पाण्डेय चेतावनी देते हैं कि अगर यह असमानता यूं ही बढ़ती रही, तो सामाजिक और आर्थिक स्थिरता ख़तरे में पड़ सकती है। वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026 सियासी ज़बान में एक साफ़ पैग़ाम देती है अगर दौलत का बंटवारा और अवसरों की हिस्सेदारी संतुलित नहीं हुई, तो विकास का सपना महज एक नारा बनकर रह जाएगा।