Bihar News: बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और इसके ठीक एक साल बाद पंचायत चुनाव भी होंगे। अधिकार में कटौती के विरोध में राज्य के 16,000 से अधिक मुखिया और सरपंच नीतीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर रहे हैं। पंचायत प्रतिनिधियों को उनके अधिकारों में लगातार कटौती का सामना करना पड़ रहा है।
बिहार में कुल 8,387 पंचायतें हैं, जिनमें मुखिया और सरपंच दोनों की संख्या समान है। इसके अलावा, वार्ड सदस्यों, पंचों, पंचायत समिति के सदस्यों और जिला परिषद के सदस्यों को मिलाकर लगभग ढाई लाख लोग पंचायत व्यवस्था का हिस्सा हैं। हाल ही में मुखिया संघ के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने कहा कि पहले ग्राम सभा से योजनाओं को पास करने का अधिकार था, लेकिन अब सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाएं जैसे नल जल योजना को पीएचईडी विभाग को सौंप दिया है। इससे पंचायत प्रतिनिधियों की भूमिका कमजोर हुई है।
मुखिया और सरपंचों का कहना है कि सरकार ने उन्हें पंगु बना दिया है। अब कई योजनाएं बाहरी एजेंसियों द्वारा लागू की जा रही हैं, जिससे ग्राम सभा के पास निर्णय लेने की शक्ति नहीं रह गई है। उदाहरण के लिए, स्ट्रीट लाइट योजना में एजेंसी काम कर रही है लेकिन जिम्मेदारी मुखिया पर ही आ रही है। ऐसे मामलों में अनियमितता होने पर आरोप भी मुखिया पर ही लगते हैं।
मुखिया संघ ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें जो संवैधानिक अधिकार मिले थे, उनका सही ढंग से पालन नहीं हो पा रहा है क्योंकि सरकार ग्राम सभा को शक्तिहीन कर रही है। उन्होंने मांग की है कि मनरेगा अंतर्गत संचालित योजनाओं की प्रशासनिक स्वीकृति का दायरा बढ़ाया जाए ताकि वे अपने गांवों के विकास कार्यों को बेहतर तरीके से कर सकें।
बिहार सरकार ने कुछ समय पहले टेंडर नीति को लागू करने का प्रयास किया था लेकिन मुखिया संघ के विरोध के कारण इसे फिलहाल रोक दिया गया है। ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि सरकार का उद्देश्य पंचायत और ग्रामीण इलाकों में गुणवत्तापूर्ण निर्माण सुनिश्चित करना है।