Bihar Politics:अब नहीं तो कभी नहीं... की तर्ज पर औद्योगिक हब बनाने में जुटी सरकार, उद्योग के रास्ते बिहार की नई तकदीर लिखने में जुटे नीतीश

Bihar Politics: बिहार की सियासत में इन दिनों विकास और निवेश की ज़ुबान सबसे बुलंद सुनाई दे रही है। कभी पिछड़ेपन की पहचान झेलने वाला यह राज्य अब खुद को एक बड़े औद्योगिक हब के तौर पर पेश करने की तैयारी में है।

Nitish Pushes Industrial Hubs to Transform Bihar
उद्योग के रास्ते बिहार की नई तकदीर लिखने में जुटे नीतीश- फोटो : social Media

Bihar Politics: बिहार की सियासत में इन दिनों विकास और निवेश की ज़ुबान सबसे बुलंद सुनाई दे रही है। कभी पिछड़ेपन की पहचान झेलने वाला यह राज्य अब खुद को एक बड़े औद्योगिक हब के तौर पर पेश करने की तैयारी में है। सरकार की मंशा साफ़ है नौजवानों को रोज़गार, उद्यमियों को ज़मीन और निवेशकों को भरोसा। 11 ज़िलों में 25 हज़ार एकड़ ज़मीन पर औद्योगिक पार्क बनाने की योजना, ‘उद्योग वार्ता’ के ज़रिये कारोबारियों की मुश्किलें सुनना और ‘मुख्यमंत्री उद्यमी योजना’ जैसे कदम इस बात का इशारा हैं कि सत्ता अब सिर्फ़ वादों की नहीं, अमल की राजनीति करना चाहती है।

उद्योग वार्ता के मंच से जो तस्वीर उभरी, वह बिहार की बदलती सियासी सोच की तर्जुमानी करती है। अहमदाबाद की दिवाज स्टील प्राइवेट लिमिटेड का बिहार में स्टील प्लांट लगाने का ऐलान हो या वेलंकानी ग्रुप की दो हज़ार एकड़ में इंटीग्रेटेड इलेक्ट्रॉनिक सिटी बसाने की ख्वाहिशये प्रस्ताव बताते हैं कि निवेशकों का भरोसा अब गंगा के मैदानों तक पहुंच रहा है। फर्नीचर मैन्युफैक्चरिंग, फूड प्रोसेसिंग, ज्वेलरी यूनिट और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में बढ़ती दिलचस्पी बिहार की औद्योगिक सियासत को नई रफ़्तार दे रही है।

मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत का यह कहना कि सरकार ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ के मूल मंत्र पर काम कर रही है, महज़ एक जुमला नहीं, बल्कि सियासी संकल्प है। उन्होंने महिला उद्यमियों की भागीदारी को विकास की रीढ़ बताते हुए हर मुमकिन मदद का भरोसा दिलाया। बैठक में उद्यमियों की समस्याओं को गंभीरता से सुनना और विभागों को त्वरित कार्रवाई के निर्देश देना यह दिखाता है कि सत्ता अब फाइलों की धूल से बाहर निकलकर फैसलों की ज़मीन पर उतर रही है।

उद्योग वार्ता में क्लाइमेट रेजिलिएंट विलेज और फ्लोटिंग हाउस जैसे मॉडल पेश होना यह साबित करता है कि बिहार की विकास राजनीति अब सिर्फ़ फैक्ट्रियों तक सीमित नहीं, बल्कि बाढ़ और जलवायु संकट से जूझते आम लोगों की हिफाज़त को भी शामिल कर रही है। फ्लोटिंग अस्पताल, पशुओं की सुरक्षा और सुरक्षित आवास की अवधारणा सियासत को संवेदनशीलता का चेहरा देती है।

बहरहाल  बिहार की यह औद्योगिक पहल सत्ता और सिस्टम के उस इरादे को उजागर करती है, जहां विकास नारा नहीं, रणनीति है। अगर ये वादे ज़मीन पर उतरे, तो बिहार की सियासत इतिहास में एक नई इबारत लिख सकती है।