Patna highcourt - मुस्लिम कानून के तहत तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता, पटना हाईकोर्ट ने पीड़ित पत्नी के पक्ष में सुनाया फैसला
Patna highcourt - पटना हाईकोर्ट ने तीन तलाक के एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पत्नी को दिए तीन तलाक को कानून अवैध बताते हुए खारिज कर दिया।

Patna - पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत तीन बार तलाक कहने में पहले,दूसरे और तीसरे तलाक के बीच कुछ मध्यवर्ती अवधि निर्धारित हैं।जिसका पालन नहीं किया गया।
साथ ही निकाह के दौरान तय दैन मेहर की राशि का पूर्ण भुगतान नहीं किया गया। तय राशि से कम रुपया जमा किया गया।कोर्ट ने माना कि पूरी कहानी काल्पनिक और मनगढ़त प्रतीत होती हैं।जस्टिस पीबी बजन्थरी और जस्टिस शशिभूषण प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने शम्स तबरेज की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद तीन बार तलाक कहने को नामंजूर करते हुए अर्जी को खारिज कर दिया।
गौरतलब है कि शम्स तबरेज ने मुस्लिम कानून की धारा 308 और पारिवारिक न्यायालय कानून की धारा 7(1)(ए) के तहत पत्नी इसरत जहां के खिलाफ 29 अक्टूबर 2007 को दायर किया। इस याचिका में ये कहा गया कि दोनों की निकाह 12 जनवरी 2000 को हुई थी और वे शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन जीने लगे। विवाह से दो बेटे अब्दुल्ला और वलीउल्लाह पैदा हुए।
पत्नी पर झगड़ालू प्रवृति
कुछ समय बाद पत्नी झगड़ालू महिला के रूप में सामने आई और हमेशा अपने पैतृक घर पर रहने लगी। अपीलार्थी एक गरीब व्यक्ति है, जो जूते की दुकान पर सेल्समैन का काम करता है।जबकि पत्नी के माता-पिता आर्थिक रूप से संपन्न हैं। इस याचिका में यह भी कहा गया कि आवेदक मामले को शांत करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसके सारे प्रयास बेकार गए। अंततः, आवेदक ने बेतिया के दारुल कजा में एक मामला दायर किया और दारुल कजा ने पत्नी को उसके ससुराल में रहने का आदेश दिया। लेकिन ससुराल में 15 दिन रहने के बाद अपने भाइयों के पास वापस पैतृक घर चली गई।तब से वह अपने पैतृक घर में रह रही है।
आवेदक ने मुस्लिम कानून की धारा 281 के तहत वैवाहिक मामला संख्या 03/2007 भी दायर किया।लेकिन सिविल कोर्ट के आदेश के बावजूद पत्नी अपने भाइयों के साथ अपने माता-पिता के घर चली गई और अदालत के आदेश की अवहेलना की।
थक हार कर आवेदक ने पत्नी से तलाक लेने का फैसला किया और कुछ गवाहों की उपस्थिति में 8 अकटुबर 2007 को तीन बार "तलाक" कह वैवाहिक संबंध विच्छेद कर लिया। आवेदक ने पत्नी को दिन मेहर की पूरी राशि और इद्दत का खर्च चुका दिया। वहीं पत्नी का कहना था कि वह अभी भी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और उसका कभी तलाक नहीं हुआ।
वह आवेदक के साथ शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन जीने के लिए तैयार है, लेकिन आवेदक पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध जारी नहीं रखना चाहता है। वह तलाकशुदा पत्नी नहीं है
उसकी शादी 12 जनवरी, 2000 को हुई थी। कानूनी रूप से वह विवाहित पत्नी है। विवाह के बाद, उसने आवेदक के साथ शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन जीना शुरू कर दिया, लेकिन कुछ समय बाद, आवेदक और ससुराल के अन्य परिवार के सदस्यों ने दहेज की मांग पूरी न होने पर पत्नी को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और ससुराल से निकाल दिया गया। तब से वह अपने दो बेटों के साथ मायके में रह रही है। वह अभी भी पत्नी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार है। आवेदक ने कभी भी दैन मेहर और इद्दतके खर्च का कोई राशि नहीं दिया।
दोनों पक्षों की ओर से पेश दलील सुनने के बाद कहा कि मुस्लिम कानून के तहत तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता।वही दाखिल अर्जी के पारा 12 में तलाक कहने और उसके तुरंत बाद इद्दत का खर्च और दैन मेहर की रकम चुकाने और फिर कुछ समय बाद दोबारा शादी कर लेने की बात कही है।
कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के धारा 336(5) में किये गये विधिक प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, जिससे पता चलता है कि इस मामले में आवेदक ने तीन बार तलाक और पुनर्विवाह की मनगढ़ंत कहानी गढ़ी हैं। तीन बार तलाक कह देना मुस्लिम कानून के अनुसार अनुमति नहीं है, क्योंकि तीन बार तलाक कहने में पहले, दूसरे और तीसरी तलाक के बीच कुछ मध्यवर्ती अवधि निर्धारित की गई ।