तेजस्वी का वार, CJI पर नहीं, आंबेडकर पर फेंका गया जूता, BJP पर फिर बरसे RJD नेता, न्याय के मंदिर में नफरत की छाया

Tejashwi yadav on cji attack: दिल्ली की सुबह सोमवार को उस वक़्त सन्नाटे में बदल गई जब देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता ने अभूतपूर्व हंगामा खड़ा कर दिया।

तेजस्वी का वार, CJI पर नहीं, आंबेडकर पर फेंका गया जूता, BJP
‘CJI पर नहीं, आंबेडकर पर फेंका गया जूता’- फोटो : social Media

Tejashwi yadav on cji attack: दिल्ली की सुबह सोमवार को उस वक़्त सन्नाटे में बदल गई जब देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता ने अभूतपूर्व हंगामा खड़ा कर दिया। अदालत की कार्यवाही के दौरान अधिवक्ता राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की ओर कोई वस्तु फेंकने की कोशिश की। इस असंवेदनशील हरकत ने न सिर्फ़ न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाई, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं पर भी सवाल खड़े कर दिए।

सुरक्षाकर्मियों ने तत्काल हरकत में आकर अधिवक्ता को पकड़ लिया और अदालत से बाहर ले गए। गवाहों के मुताबिक़, बाहर जाते वक़्त वह शख़्स चिल्लाया — “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।” यह नारा न्याय के पवित्र स्थल में गूँजा, तो अदालत की दीवारों पर अचरज और चिंता दोनों की गूँज सुनाई दी। कुछ देर के व्यवधान के बाद मुख्य न्यायाधीश ने संयम दिखाते हुए कार्यवाही पुनः शुरू की और कहा — “ध्यान मत भटकाइए, हम इससे विचलित नहीं हैं।”

घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर की सुरक्षा और कड़ी कर दी गई। वहीं, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने तुरंत कार्रवाई करते हुए अधिवक्ता राकेश किशोर का लाइसेंस निलंबित कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने इस घटना की निंदा की और न्यायपालिका के प्रति सम्मान बनाए रखने की अपील की।

राजनीतिक गलियारों में भी यह मामला तेज़ी से गूँज उठा। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसे “दलित विरोधी मानसिकता” करार दिया और कहा कि “यह जूता मुख्य न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि संविधान और बाबा साहेब अंबेडकर की विरासत पर फेंका गया है।” उन्होंने सवाल उठाया कि जब संविधान के शिल्पकार की विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति भी न्यायपालिका में सुरक्षित नहीं, तो लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है।

तेजस्वी ने यह भी आरोप लगाया कि 2014 के बाद देश में “घृणा और हिंसा को राजकीय संरक्षण” मिला है और यही उसका नतीजा है। उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए पूछा कि “संविधान और दलित विरोधी ताक़तें इस शर्मनाक घटना पर चुप क्यों हैं?”

सियासत और सनातन के इस टकराव में असली सवाल अब यही है  क्या न्याय का मंदिर भी नफ़रत की राजनीति से अछूता रह पाएगा, या फिर सियासी जहर अब संवैधानिक संस्थाओं तक पहुँच गया है?