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Bihar Political Changes: आखिर नीतीश की खामोशी का मतलब क्या है? 10 साल में 5 बार पलटी मारने वाले CM की चुप्पी का जानिए क्या है रहस्य

नीतीश कुमार के एक एक शब्द में गंभीर अर्थ छुपे होते हैं। वे हर विषय को गंभीरता से लेते हैं। पूर्व में भी, नीतीश कुमार ने विवादास्पद मुद्दों पर पार्टी के नेताओं से बयान दिलवाने का कार्य किया है, जबकि स्वयं कम ही बोलते थे। इस बार भी...

Bihar Political Changes
नीतीश की खामोशी का मतलब - फोटो : hiresh Kumar

Bihar Political Changes: बिहार की राजनीति में एक बार फिर दही -चूड़ा का भोज के बहाने सियासत का कयास जोरो पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक पिर फिर पलटी मारने की चर्चा जोर शोर से चल रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्षी नेता तेजस्वी यादव के बातचीत और लालू यादव के बयानों ने बिहार की राजनीतिक हलचल को बढ़ा दिया है। यह सब उस समय हो रहा है जब बिहार विधानसभा चुनाव में केवल 7-8 महीने का समय बचा है। वैसे भी नीतीश कुमार के निकटवर्ती लोग बताते हैं कि जब उन्हें कोई महत्वपूर्ण कार्य करना होता है, तो वह मौन धारण कर लेते हैं। वर्तमान में भी वह चुप्पी साधे हुए हैं। वास्तव में, केंद्रीय गृह मंत्री के इस बयान के बाद कि चुनाव के पश्चात बिहार में नेता का चयन किया जाएगा, विवाद उत्पन्न हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्री के वक्तव्य के बाद बिहार के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री ने अपनी स्थिति स्पष्ट की है।

लालू यादव का बयान

राजद सुप्रीमो लालू यादव ने हाल ही में कहा कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर नीतीश कुमार महागठबंधन में लौटते हैं, तो उनका स्वागत किया जाएगा। इस बयान ने बिहार की राजनीति में अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है।

नीतीश के बयान से संशय

जब नीतीश कुमार से पूछा गया कि क्या वह राजद के साथ फिर से गठबंधन करने पर विचार कर रहे हैं, तो उन्होंने केवल “क्या बोल रहे हैं” कहकर टाल दिया।  

नीतीश और तेजस्वी की तस्वीर

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की एक तस्वीर, जिसमें दोनों नेताओं के बीच बातचीत हो रही है ने भी राजनीतिक चर्चाओं को बढ़ावा दिया है। इस तस्वीर को सत्ता के नए समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है। 


खरमास का प्रभाव

खरमास  खत्म होने के बाद बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। पिछले साल भी खरमास के बाद नीतीश कुमार ने एनडीए में शामिल होकर महागठबंधन सरकार को गिराया था। इस बार भी ऐसा ही कुछ होने की संभावना जताई जा रही है।

भाजपा और जेडीयू के रिश्ते

भाजपा और जेडीयू के बीच रिश्तों पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर जब गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पार्टी का नेतृत्व पार्लियामेंट बोर्ड करेगा। इससे जेडीयू नेताओं में संशय पैदा हुआ है। इसके अलावा, उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा का बयान कि “बिहार में बीजेपी की अपनी सरकार हो” ने भी राजनीतिक चर्चाओं को हवा दी।

राज्य की राजनीति में संशय का वातावरण

बहरहाल एनडीए में खरमास के बाद की तैयारियों के बीच, राज्य की राजनीति में संशय का वातावरण उत्पन्न किया गया है।  नीतीश कुमार जब पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार को सांत्वना देने, इलाज कराने और कुछ नेताओं से मिलने के लिए दिल्ली गए, तो यह चर्चा शुरू हुई कि वह कांग्रेस के करीब जा रहे हैं। जब वह लौटे, तो यह कहा जाने लगा कि भाजपा के प्रमुख नेताओं ने उन्हें महत्व नहीं दिया, इसलिए अब वह अपने निर्णय पर विचार करेंगे। नए राज्यपाल से मुलाकात के दौरान, कुछ स्थानों पर नीतीश कुमार के इस्तीफे और नई सरकार के गठन की बातें भी होने लगीं। इस बीच, लालू प्रसाद ने कहा कि वह उनका स्वागत करने के लिए तैयार हैं, जबकि तेजस्वी यादव पहले ही उनके लिए दरवाजा बंद करने की बात कह चुके हैं। नीतीश कुमार और उनके सहयोगियों ने कई बार स्पष्ट किया है कि वह दोबारा कोई गलती नहीं करेंगे। 

नीतीश कुमार के एक एक शब्द में  गंभीर अर्थ छुपे होते हैं। वे हर विषय को गंभीरता से लेते हैं। पूर्व में भी, नीतीश कुमार ने विवादास्पद मुद्दों पर पार्टी के नेताओं से बयान दिलवाने का कार्य किया है, जबकि स्वयं कम ही बोलते थे। इस बार भी, वे कई विवादास्पद मुद्दों पर टिप्पणी करने से बच रहे हैं, लेकिन जब उनके पार्टी के नेता बोलते हैं, तो यह निश्चित रूप से उनकी अनुमति से ही होता है। नीतीश कुमार को दबाव की राजनीति में कुशल माना जाता है। अब देखना है कि एनडीए पर नीतीश का दबाव कितना कारगर साबित होता है या फिर पलटी मार कर राजद के साथ सरकार बनाएंगे।

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