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Arif Mohammad Khan: 17.70 फीसदी मुसलमानों वाले बिहार में 26 साल बाद हुई मुस्लिम राज्यपाल की नियुक्ति, आरिफ मोहम्मद खान पर क्यों खेला दांव

Arif Mohammad Khan: बिहार में अब 40 राज्यपाल हुए हैं. वहीं 41वें राज्यपाल के रूप में आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. बिहार में 26 साल बाद किसी मुसलमान को राज्यपाल बनाया गया है. इसके पहले 993 से वर्ष 1998 के बीच एआर किदवई इस

Arif Mohammad Khan
Arif Mohammad Khan- फोटो : news4nation

Bihar News : 26 साल बाद बिहार में किसी मुसलमान को राज्यपाल बनाया गया है. आरिफ मोहम्मद खान बिहार के नए राज्यपाल नियुक्त किए गये हैं. वे अब तक केरल के राज्यपाल रहे हैं. ऐसे में बिहार में उनका राज्यपाल नियुक्त होना इसलिए भी अहम  है क्योंकि राज्य में मुस्लिम आबादी भी निर्णायक भूमिका में हैं. बिहार सरकार के  जातिगत सर्वे के आंकड़े  के मुताबिक़ बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ है. इसमें 81.99 फ़ीसदी हिंदू और 17.70 फ़ीसदी मुसलमान हैं.


आरिफ मोहम्मद खान के पहले वर्ष 1993 से वर्ष 1998 के बीच एआर किदवई मुस्लिम समुदाय से आने वाले बिहार के राज्यपाल थे. उनके पहले वर्ष 1990 से 1993 के बीच मोहम्मद सलीम और मुहम्मद शफी कुरैशी भी मुस्लिम समुदाय से आने वाले बिहार के राज्यपाल हुए. एआर किदवई के बाद बिहार में 16 राज्यपाल नियुक्त हुए लेकिन कोई भी मुस्लिम समुदाय से नहीं रहे. 


आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति अहम 

 बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के करीब दस महीने पहले अचानक से बिहार के राज्यपाल नियुक्त किए गए आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति सियासी तौर पर काफी अहम मानी जा रही है. इसमें एक ओर भाजपा और जदयू के रिश्तों में हालिया दिनों में आई दूरी की खबरों को पाटना भी शामिल है और नीतीश कुमार सहित मुसलमानों पर मजबूत पकड़ बनाने की भाजपा की कवायद भी मानी जारी है. आरिफ मोहम्मद खान और नीतीश कुमार दोनों ही पुराने सहयोगी रहे हैं. दोनों ने एक साथ केंद्र सरकार में मंत्री के तौर पर काम किया है. वहीं मुसलमानों के मुद्दे पर भी उनकी अलग किस्म की पहचान रही है. 

एएमयू से सियासी सफर 

आरिफ मोहम्मद खान की सियासी यात्रा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष बनने से हुई. 1977 में उनका बुलंदशहर के सियाना विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने और यूपी सरकार में मंत्री बनना बेहद अहम  रहा. वहीं बाद में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और 1980 में कानपुर और 1984 में बहराइच से लोकसभा के लिए चुने गए. 1986 में, उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल के पारित होने पर मतभेदों के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़ दी, जिसे राजीव गांधी ने लोकसभा में पेश किया था. बाद में आरिफ मोहम्मद खान जनता दल में शामिल हो गए और 1989 में फिर से लोकसभा के लिए चुने गए. जनता दल के शासन के दौरान खान ने नागरिक उड्डयन और ऊर्जा मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया.इसी दौरान नीतीश कुमार भी केंद्र में पहली बार मंत्री बने. तब दोनों ने एक ही सरकार के लिए मंत्री के रूप में काम किया. ऐसे में दोनों के बीच अहम मुलाकात और याराना का दौर 1989 में शुरू हुआ. सूत्रों का कहना है कि अब 35 वर्ष पुराने इस यारियां को बिहार में भुनाने में केंद्र की मोदी सरकार लग गई है. 


कई दलों से बिठाया सामंजस्य 

आरिफ मोहम्मद खान कांग्रेस, जनता दल, बसपा से होते हुए वर्ष 2004 में वह भाजपा में शामिल हो गए. यानी वे सभी दलों के साथ बेहतर सामंजस्य बिठाने में सफल रहे हैं. उनके इस सियासी कौशल को ही अब सम्भवतः भाजपा भुनाना चाहती है. उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. हाल के समय में जदयू और भाजपा नेताओं के बीच दूरी बढ़ने की बातें आई. ऐसे में अब आरिफ के सहारे नीतीश कुमार से रिश्तों को और ज्यादा मजबूती देने की कोशिश होगी. 


मुसलमानों को बड़ा संदेश 

आरिफ मोहम्मद खान की पहचान प्रगतिशील मुसलमान की रही है. चाहे राजीव मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना हो या हिजाब विवाद या फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटोगे तो कटोगे’ वाले बयान का समर्थन करना. माना जा रहा है कि मुसलमान समुदाय के बीच भी एक संदेश देने की कोशिश है कि उनके हितों के लिए एक प्रोग्रेसिव विचार वाला राज्यपाल लाया गया है. 


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